– डा0 घनश्याम बादल
आज, जल संरक्षण दिवस है । जल जहां आसानी से उपलब्ध है वहां इसकी महत्ता का भान कम ही हो पाता है । पर, जानकार जानते हैं कि जल कितना महत्वपूर्ण है और मानव जीवन के लिए जल का कितना महत्व है । कहा जाता है ‘‘ जल है तो जीवन है।‘‘ और सच भी है यदि जल न हो तो पृथ्वी पर जीवन की कल्पना भी मुश्किल है । पृथ्वी के धरातल का करीब 75 प्रतिशत भाग जल से ढका हुआ है । रसायन विज्ञान में H2O कहे जाने वाला यह तरल पदार्थ अलग अलग भाषाओं में मम ,जल , वारि , अंबु , तोय ,पानी , आब ,वाटर आदि कितने ही नामों से जाना जाता है , नाम कुछ भी हो पर जीवन की दृष्टि से अगर कुछ अपरिहार्य है तो वह जल यानि वाटर ही है ।
इत्ता पानी , कित्ता पानी ?
बारिश, भू गर्भ और समुद्रों तथा नदियों से मिलने वाले जल को जीवन कहा कहा जाता है । कहने को कहा जाता है कि जल पृथ्वी पर असीमित मात्रा में उपलब्ध है अतः इसके खत्म होने की संभावना नहीं के बराबर है पर जब हम इसे वैज्ञानिकों के नज़रिए से देखते हैं तो पता चलता है कि ऐसा कदापि नहीं है । पर्यावरणविदों के अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि यूं तो पृथ्वी पर कुल मिलाकर 1335 मिलियन क्यूबिक किलोमीटर पानी है यानि अगर हम एक किलोमीटर लंबा व इतना ही चौड़ा व ऊंचा घनाकृति का डब्बा बनाएं तो सारी पृथ्वी के पानी को इकट्ठा करने के लिए ऐसे 13 अरब 35 करोड़ डब्बों की ज़रुरत पड़ेगी । मगर , अगर पानी को किफायत से उपयोग में नहीं लाया गया तो एक दिन यह खत्म भी हो सकता है और जिस दिन ऐसा होगा उस दिन धरती पर जीवन का आखिरी दिन होगा ।
जल नहीं तो जीवन नहीं :
वातावरण में भी हर समय करीब 13 हजार घन किलोमीटर जल विभिन्न रूपों में मौजूद रहता है अगर किसी भी कारण से यह सारा जल एक साथ पृथ्वी पर गिर जाए तो सारी धरती पर 25 मिलीमीटर ऊंची पानी की एक परत खड़ी हो जाएगी और इस का मतलब यह होगा कि करीब दस ईंच ऊंची उस परत की वजह से वायुमंडल में घुली जो ऑक्सीजन सभी जीव जंतु पाते हैं वह उन्हे नहीं मिल सकेगी और उसके चलते बाढ़ व दूसरे कारणों से केवल पांच सात दिनों में पृथ्वी से जीवन खत्म हो जाएगा क्योंकि भोजन न मिलने से भले ही जीवजंतु 15 दिन तक जी लेते हों पर जल न मिलने से वह किसी भी हालत में पांच दिन से ज़्यादा जिंदा नहीं रह पांएगें तो समझ सकते हैं कि जीवन देने या जीवन लेने में पानी कितना महत्वपूर्ण है ।
सीमित है पोटेबल वाटर :
धरातल पर पानी तो बहुत है पर, पृथ्वी पर पीने लायक पानी कितना है ? तो जान लीजिए कि कुल पानी का 97 प्रतिशत तो समुद्री जल है जिसे पीया नहीं जा सकता है अब बचे 3 प्रतिशत जल में से भी केवल आधे प्रतिशत जल का ही उपयोग मानव अपने पीने के लिए कर सकता है यानि पानी तो बहुत है पर , पीने लायक पानी बहुत ही सीमित मात्रा में है और इस का भंडारण पृथ्वी के केवल एक मिलोमीटर नीचे तक ही है । इसपलिऐ हमें पानी का उपयोग किफायत से करना चाहिए क्योंकि जल है तो जीवन है ।
खतरनाक है खारा जल :
अगर समुद्रीजल भी पीने लायक होता तो इतना संकट न होता पर चूंकि समुद्र का जल नमकीन होता है जिसके पीने से आंत फटने का खतरा रहता है तो उसे पिया नही जा सकता है । अब समुद्री जल नमकीन कैसे हो जाता है ? इसकी एक वजह है कि जब वर्षा का जल पृथ्वी पर गिरता है तो वह वायुमंडल की कार्बन डाई ऑक्साइड़ के संपर्क में आने से अम्लीय हो जाता है और फिर वह चट्टानों को काटने लगता है और इसके टूटे हुए आयन जीवों को अपने साथ बहा ले जाते हैं समुद्र तक पंहुचते – पंहुचते इसकी मात्रा इतनी बढ़ जाती है कि क्लोराइड़ व सोडियम की मात्रा सहित विघटित आयनों का प्रतिशत करीब 90 प्रतिशत तक हो जाता है और यह जल इतना अम्लीय व नमकीन हो जाता है कि इसे पीना असंभव है ।
अनिवार्य है जलसंरक्षण :
जल की एक खास बात यह है कि यह असानी से अपनी अवस्था बदल लेता है और ठोस यानि बर्फ , गैस यानि वाष्प और द्रव यानि जल में बदल जाता है। और इसी जलचक्र प्रक्रिया के चलते जल की लगातार आपूर्ति होती रहती है । अब जल इतना ज़रुरी है कि इसका संरक्षण बहुत ही महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि अगर जल किसी भी कारण से समाप्त या कम हो गया तो समझिए कि चांद या मंगल की ही तरह पृथ्वी से पादप, मानव व जंतुजीवन के साथ पूरा जीवन भी खत्म होना सुनिश्चत है ।
कैसे बचाएं जल ?:
जल संरक्षण के एक नहीं अनेक तरीके हैं । सबसे पहला तो यही है कि किसी भी तरह से इसे बर्बाद न होनें दें , प्रदूषित न होंने दें , इसका उपयोग किफ़ायत व समझदारी से तथा जितना ज़रुरी हो उतना ही करें । बारिश के पानी को यूं ही बहकर नालियों , नदियों या समुद्र में न जाने दें बल्कि उसे स्टोर करने के तरीके ढूंढें ।
एक ही पानी का बार बार उपयोग करें जैसे नहाने के बाद पानी को बहकर नलियों में जाने देने के बजाय उसे घर के पौधों की सिंचाई के काम में ले सकते हैं । वर्षा के जल को छतों या बांधों में इकट्ठा किया जा सकता है । मंजन करते वक्त , शेविंग करते समय , मुंह हाथ धोते समय टोंटी को खुला न छोड़ें हो सके तो सेंसर वाले नल उपयोग में लाएं जो हाथ नल के नीचे लाने पर ही चलें बाकी समय स्वयं ही बंद रहें । नल के खराब होने पर तुरंत उस की मरम्मत करवा लें सब्जी फल आदि धोने के बाद पानी को फेंकें नहीं अपितु उसे घर के फूल पौधों को सींचने के काम में ले आएं । ऐसी वाशिंग मशीनें उपयोग में लाएं जिनमें पानी की खपत न्यूनतम हो । नहाने के लिए बजाय ज़्यादा पानी खराब करने के बजाय एक शावर लें । घर में अशुद्ध पानी को फिर काम में लेने के लिए फिल्टर करेंगें तो भी आप पृथ्वी से जीवन को खत्म होने से बचाने में योगदान दे रहे होगें ।
और हां, आज तो कृत्रिम पानी का उत्पादन भी एक विकल्प है पर याद रहे जो लाभ प्राकृतिक पानी से मिल सकता है वह मानव उत्पादित पानी से नहीं ही मिलने वाला है तो प्राकृतिक जल को बचाना , उसका सही प्रयोग करना बेहद ज़रुरी व समय की मांग है । ऐक बार फिर याद रखिए जल है तो जीवन है , जल है तो कल है ।
लेखक हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकार हैं ।
नोट : लेख में लेखक द्वारा व्यक्त विचारों से मातृभूमि समाचार का सहमत होना आवश्यक नहीं है।