नई दिल्ली (मा.स.स.). सुप्रीम कोर्ट ने 22 अगस्त 2017 को केवल तीन तलाक बोल कर शादी तोड़ने को असंवैधानिक बताया। तलाक-ए-बिद्दत कही जाने वाली इस प्रक्रिया पर अधिकतर मुस्लिम उलेमाओं ने भी कहा था कि यह कुरान के मुताबिक नहीं है। गाजियाबाद की बेनजीर हिना की ओर से सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें यह मांग की गई है कि तलाक-ए-हसन और तलाक-ए-अहसन को भी तलाक-ए-बिद्दत (तीन तलाक) की तरह क्राइम घोषित किया जाए।
याचिका में कहा गया है कि तलाक-ए-हसन और एकतरफा तलाक के अन्य रूपों की प्रथा ना तो मानव अधिकारों और ना ही लैंगिक समानता के आधुनिक सिद्धांतों के अनुरूप है। पीड़िता के मुताबिक जब उसके पिता ने दहेज देने से इनकार कर दिया तो उसके पति ने एक वकील के माध्यम से एकतरफा गैर न्यायिक तलाक-ए-हसन दिया। याचिकाकर्ता ने मुस्लिम पर्सनल ला (शरीयत) आवेदन अधिनियम 1937 की धारा-2 को निर्देशित करने की भी मांग की है। उसका कहना है कि यह अनुच्छेद 14, 15, 21, 25 का उल्लंघन करती है क्योंकि यह तलाक-ए-हसन और एकतरफा गैर न्यायिक तलाक को वैध मानती है।
22 अगस्त 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने एक साथ तीन तलाक बोल कर शादी रद्द करने को असंवैधानिक करार दिया था। तलाक-ए-बिद्दत कही जाने वाली इस व्यवस्था को लेकर अधिकतर मुस्लिम उलेमाओं का भी मानना था कि यह कुरान के मुताबिक नहीं है। कोर्ट के फैसले के बाद सरकार एक साथ तीन तलाक बोलने को अपराध घोषित करने वाला कानून भी बना चुकी है। लेकिन तलाक-ए-हसन और तलाक-ए-अहसन जैसी व्यवस्थाएं अब भी बरकरार हैं। इनके तहत पति 1-1 महीने के अंतर पर 3 बार लिखित या मौखिक रूप से तलाक बोल कर शादी रद्द कर सकता है।