नई दिल्ली (मा.स.स.). सुप्रीम कोर्ट ने देशद्रोह कानून पर रोक लगा दी है। अब इसके तहत नए केस नहीं दर्ज हो सकेंगे। इसके अलावा पुराने मामलों में भी लोग अदालत में जाकर राहत की अपील कर सकते हैं। सरकार का पक्ष रख रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी थी कि इस कानून की समीक्षा होने तक इसके तहत नए केस दर्ज करने पर रोक लगाना ठीक नहीं होगा। उनका कहना था कि संज्ञेय अपराधों में वरिष्ठ अधिकारी की संस्तुति पर ऐसे केस दर्ज किए जा सकते हैं। हालांकि अदालत ने केंद्र सरकार की दलीलों को ठुकराते हुए कानून पर रोक लगाने का फैसला दिया।
प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण की अध्यक्षता वाली पीठ से मेहता ने कहा कि 1962 में एक संविधान पीठ ने राष्ट्रद्रोह कानून की वैधता को कायम रखा था। इसके प्रावधान संज्ञेय अपराधों के दायरे में आते हैं। उन्होंने कोर्ट से कहा कि हां, ऐसे मामलों में एफआईआर दर्ज करने की निगरानी की जिम्मेदारी पुलिस अधीक्षक स्तर के अधिकारी को दी जा सकती है। केंद्र सरकार ने बुधवार को 1870 में बने यानी 152 साल पुराने राजद्रोह कानून (IPC की धारा 124-ए) पर सुप्रीम कोर्ट में जवाब दायर किया। इसके बाद कोर्ट ने केंद्र को इस कानून के प्रावधानों पर फिर से विचार करने की अनुमति दे दी।
राजद्रोह कानून पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद केन्द्रीय कानून मंत्री किरेन ने रिजिजू अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि भारतीय संविधान के प्रावधानों और मौजूदा कानूनों का सम्मान हो। किरेन रिजिजू ने आगे कहा कि हमने अपनी स्थिति पूरी तरह साफ कर दी है। इसके साथ ही , प्रधानमंत्री मोदी की मंशा के बारे में भी कोर्ट को बता दिया है। हम कोर्ट और इसकी स्वतंत्रता का सम्मान करते हैं। लेकिन एक लक्ष्ण रेखा (लाइन) है, जिसे सभी अंगों द्वारा अक्षरश: और भावना में सम्मान किया जाना चाहिए।
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