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जी20 : एक टिकाऊ भविष्य के लिए जीवंत विरासत का दोहन विषय पर आयोजित होगा दूसरा वेबिनार

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नई दिल्ली (मा.स.स.). वैश्विक विषयगत वेबिनार की श्रृंखला के एक हिस्से के रूप में जी20 की भारत की अध्यक्षता के तहत संस्कृति कार्य समूह (सीडब्ल्यूजी) द्वारा आयोजित और ज्ञान भागीदार के रूप में यूनेस्को (पेरिस) द्वारा प्रेरित “एक टिकाऊ भविष्य के लिए जीवंत विरासत का दोहन” विषय पर दूसरा वेबिनार 13 अप्रैल 2023 को दोपहर 12.30 बजे से रात 8.30 बजे (भारतीय समयानुसार) के लिए निर्धारित है। यह वेबिनार जी20 के सदस्य देशों और अतिथि राष्ट्रों के साथ-साथ कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों सहित 29 देशों के विशेषज्ञों को एक मंच पर लाकर जीवंत विरासत के महत्व और स्थिरता की दिशा में इसकी भूमिका के बारे में विचारों का आदान – प्रदान करेगा।

इस वेबिनार का उद्देश्य एक समावेशी संवाद को बढ़ावा देना और एक टिकाऊ भविष्य के लिए जीवंत विरासत के दोहन के बारे में विशेषज्ञों के दृष्टिकोण से प्रेरित गहन चर्चा की सुविधा प्रदान करना है। इसका लक्ष्य ज्ञान साझा करने की प्रक्रिया को बढ़ावा देना;  उत्कृष्ट कार्यप्रणालियों और अनुभवों से लाभ उठाना; जीवंत विरासत से जुड़ी कार्यप्रणालियों के उपयोग के क्रम में पैदा होने वाले अंतरालों, जरूरतों और अवसरों की पहचान करना है। यह वेबिनार मूर्त और कार्रवाई-उन्मुख परिणामों को तैयार करने में जी20 के सदस्य देशों के दृष्टिकोण के बारे में भी जानकारी देगा। इसमें वक्ताओं के लिए तीन खंड होंगे और विशेषज्ञों को उनके संबंधित टाइम जोन के आधार पर इन खंडों में स्थान दिया जाएगा। इस वेबिनार को खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ), विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (डब्ल्यूआईपीओ) के प्रतिनिधियों द्वारा इस विषय पर विशेषज्ञता के साथ क्रमिक रूप से संचालित किया जाएगा। इसे यूनेस्को (पेरिस) के यूट्यूब चैनल पर लाइव स्ट्रीम किया जाएगा।

जीवंत विरासत सामाजिक प्रथाओं, परंपराओं और एक समुदाय विशेष के इतिहास, पहचान एवं मूल्यों को दर्शाने वाले पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित ज्ञान का एक मूर्त रूप है। यह समुदायों के लिए सामाजिक पूंजी के रूप में कार्य करता है, साझा पहचान की भावना प्रदान करता है, सामाजिक सामंजस्य को बढ़ावा देता है, और पीढ़ी दर पीढ़ी सांस्कृतिक निरंतरता को सुनिश्चित करता है। इनमें से कई प्रथाएं प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग और पुन: उपयोग को प्राथमिकता देती हैं, अपशिष्ट में कमी लाने और सामाजिक, आर्थिक एवं पर्यावरणीय कारकों के बीच संतुलन बनाए रखने में योगदान करती हैं तथा  इस प्रकार स्थिरता सुनिश्चित करने में योगदान करती हैं। हालांकि, इन पारंपरिक प्रथाओं को अंतरराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा स्वदेशी समुदायों के तत्वों, विचार या ज्ञान के दुरुपयोग और सांस्कृतिक विनियोग के खतरे का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा, क्षेत्र में सीमित अनुसंधान के साथ-साथ सामुदायिक समूहों की भागीदारी के अभाव के कारण, इन प्रथाओं और ज्ञान प्रणालियों के महत्व को पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया गया है। प्राथमिकता तीन और चार से संबंधित वैश्विक विषयगत वेबिनार क्रमशः 19 और 20 अप्रैल को निर्धारित है।

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