कानपुर (मा.स.स.). वाल्मीकि समाज द्वारा वाल्मीकि जयंती के अवसर पर नानाराव पार्क, कानपुर में आयोजित कार्यक्रम को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि वाल्मीकि जयंती के पुण्य पर्व पर उपस्थित होकर मैं अपने आप को धन्य मान रहा हूं। कृष्णलाल जी ने मुझे मिठाई और अपने आपको बताशा कहा। मुझे आप लोगों में बताशा बनकर रहना ज्यादा पसंद है। मैं नागपुर में संघ का प्रचारक था, तब से मेरा संबंध वाल्मीकि समाज से है। वाल्मीकि समाज के कार्यक्रम में मैं कई बार पहले भी आ चुका हूं, जो पहला वाल्मीकि मंदिर कुठुरपेठ में बना, उसके उद्घाटन में भी मैं था। किन्तु वाल्मीकि जयंती के अवसर पर सामान्यतः मैं यात्रा में रहता था, इसलिये यह पहला अवसर है, जब मैं वाल्मीकि जयंती के कार्यक्रम में शामिल हुआ हूं। समस्त हिन्दू समाज में महर्षि वाल्मीकि का गौरव करना चाहिए। क्योंकि यदि वाल्मीकि जी न होते, तो हमें श्री राम पता ही नहीं होते।
डा. बाबासाहब अम्बेडकर ने कहा था कि हमने व्यवस्था दी है, अब तक जो अछूत कहे जाते थे, अब उनको बराबरी का अधिकार मिलेगा। लेकिन केवल व्यवस्था बनाने से कुछ नहीं होगा, मन बदलना पड़ेगा, मन में यह जागृति करनी पड़ती है और इसलिये डॉक्टर साहब ने कहा कि हमने यह व्यवस्था करके राजनीतिक और आर्थिक स्वतंत्रता प्रदान की है, लेकिन यह तभी सार्थक होगी, साकार होगी, जब सामाजिक स्वतंत्रता आयेगी और इसलिये दूसरे डॉक्टर साहब ने नागपुर से 1925 से उस भाव को लाने का प्रयास शुरु किया, संघ के रूप में, सामाजिक समरसता का भाव, अपने पन का भाव। अपनापन मेरे पास है कि नहीं। जितना है, उतना लेकर मैं आपके लिये दौड़ता हूं, आप मेरे लिये दौड़ो। ये अपनेपन का चमत्कार है। बांग्ला में एक कहावत है, अगर अच्छे लोग हैं, अपनेपन को मानते हैं, तो इमली के पत्ते पर भी 9 लोग बैठ सकते हैं। ये अपनापन चाहिए, उसके आधार पर हम प्रयास करेंगे। हम प्रयास करेंगे, यह व्यवस्था बन गई। उस व्यवस्था का लाभ लेने लायक हम अपने आप को बनायेंगे। लायक बनना यानि कैसा बनना, तो वाल्मीकि रामायण पढ़ों, श्री राम का चरित्र दिया है, वाल्मीकि जी ने उनके अनुकरणीय गुणों का वर्णन किया है।
वाल्मीकि जी दुनिया में जिस व्यक्ति को मनुष्य बनना है, उसके लिये महत्वपूर्ण हैं। आराध्य हैं। उनकी जयंती सबको मनानी चाहिए। उन्होंने हमें बताया, हमको योग्य होना तो कैसे होना है। चाहे जैसे संकट हो, हारना नहीं, प्रयत्न करते रहना। आगे बढ़ना। सहायता जरुर आयेगी। वाल्मीकि जी ने जो श्रीराम का इतिहास लिखा है, उसमें बताया है कि कुंभकरण का वध होने तक रामजी की सहायता को कोई नहीं था। केवल वानर और रामजी। जब विश्वास हो गया कि श्रीराम जीत सकते हैं, रावण को हरा सकते हैं, तो मदद के लिये इंद्र ने रथ बाद में भेजा। तो इसके लिये हमको एक-दूसरे की सहायता करनी है। वाल्मीकि जी का सार है, यह हम लोगों के लिये। कार्यक्रम का संचालक डॉ. रतन लाल ने किया। वाल्मीकि समाज ने संघ के कुछ प्रमुख पदाधिकारियों को भी आमंत्रित किया था, जिनमें अनिल ओक जी, क्षेत्र प्रचारक अनिल, प्रान्त प्रचारक श्री राम, सह प्रान्त प्रचारक रमेश जी, प्रान्त प्रचार प्रमुख डाक्टर अनुपम, सह प्रान्त कार्यवाह भवानीभीख, क्षेत्र सम्पर्क प्रमुख सुरेश व प्रान्त सह व्यवस्था प्रमुख विकास थे।
समारोह में प्रमुख रूप से किशनलाल सुदर्शन, दया कुमार, धीरज कुमार वाल्मीकि, अरुण समुंद्रे, राम जियावन, शुभेंदु, दया कुमार, संजीत कुमार, चंदन हजारिया, हरि बाबू, सूरज तुकैल, दिलीप भारती, सुशील एडवोकेट, ज्ञान प्रकाश भोला, बाबू हजारिया, जगदीश हजारिया, सुनील बुंदेला, महेश हठी, सुशील सेखा, राज कुमार वर्मा, माता प्रसाद, कुसुम बख्शी, आरती, प्रकाश हजारिया, बबलू खोटे, डीडी सुमन, राम गोपाल, प्रतिभा चौधरी, दीपशिखा, पूनम, शिवा व मुन्ना पहलवान आदि उपस्थित रहे।