विभिन्न ग्रहों के रत्न शुक्ल पक्ष में संबंधित ग्रह के दिन धारण करना चाहिए। यदि उस दिन चंद्रमा उसी ग्रह के नक्षत्र में गोचर कर रहा हो तो वह सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त होगा। विभिन्न रत्नों के धारण हेतु कौन सा नक्षत्र शुभ होगा?
विवरण: – माणिक्य – कृतिका, उ.फा., उ.षा., मोती-राहिणी, हस्त, श्रवण, मूँगा-मृगशिरा, चित्रा, घनिष्ठा, पन्ना- अश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती, पुखराज – पुनर्वसु, विशाखा, पू.भा., हीरा – भरणी, पू. फा., पू.षा., नीलम – पुष्य, अनराधा, उ.भाद्र, गोमेद – आर्द्रा, स्वाती, शतभिषा, लहसुनिया – अश्वनी, मघा, मूल।
रत्न धारण के समय संबंधित ग्रह के मंत्र का 108 माला जप करके अभिमंत्रित करना चाहिए या किसी योग्य विद्वान से अभिमंत्रित करवा लेना चाहिए। कोई भी रत्न बिना अभिमंत्रित किये अपना पूरा फल नहीं देता है। रत्न धारण करने के बाद उस रत्न से संबंधित वस्तुओं का दान उस ग्रह से संबंधित व्यक्ति को करना चाहिए। जैसे बुध का रत्न धारण करने के बाद किन्नर को हरा वस्त्र हरे फल, हरी मूँग या हरी उड़द की दाल, धन दान करना चाहिए। परस्पर शत्रु ग्रह के रत्नों को कभी नहीं पहनना चाहिए। विभिन्न ग्रहों के रत्न अलग-अल धातु की अंगूठियों में पहने जाते हैं। अंगूठी धारण करने का प्रत्येक रत्न का अलग-अलग मुहूर्त होता है। सभी प्रमुख रत्नों के उपरत्न भी होते हैं जिनका वजन व चयन जन्मकुण्डली देख कर ही निर्धारित किया जा सकता है।
रत्नों का चयन व्यक्ति की जन्म लग्न के अनुसार किया जाता है। कुछ रत्न आजीवन पहने जा सकते हैं कुछ रत्न केवल दशा-अंतर्दशा-विशेष गोचरीय स्थिति में पहनने चाहिए। लग्नेश, पंचमेश, भाग्येश के रत्न सदैव लाभदायक नहीं होते, यदि भाग्येश निर्बल है तथा उसका कुण्डली के अन्य शुभ एवं योगकारक ग्रहों से कोई संबंध नहीं है तो ऐसे व्यक्ति को भाग्येश का रत्न बहुत सफलता नहीं देता। ऐसी स्थिति में उसे अपनी जन्मकुण्डली का विधिवत किसी योग्य विद्वान से विश्लेषण करवा कर रत्न का चयन करना चाहिए तथा शुभ मुहूर्त में अभिमंत्रित करवा कर रत्न धारण करना चाहिए।
प्रत्येक लग्न वाले को अपने उच्च, स्व राशि में स्थित होने पर लग्नेश, पंचमेश, भाग्येश का रत्न धारण करने की कोई आवश्यकता नहीं होती है। जैसे – वृष या तुला लग्न वाले को शुक्र के मीन, वृष, तुला में होने पर शुक्र का रत्न हीरा या ओपल धारण करने की कोई आवश्यकता नहीं है। किसी व्यक्ति की जन्मकुण्डली नहीं होने पर रत्न का चयन अवकहड़ा चक्र के अनुसार, जन्म मास के अनुसार, अंक ज्योतिष के अनुसार भी किया जा सकता है।
किसी मंहगे रत्न के विकल्प के रूप में औषधियों व वनस्पतियों का भी प्रयोग किया जा सकता है। जैसे शुक्र ग्रह का रत्न हीरा के स्थान पर विधिवत अभिमंत्रित किया हुआ केवड़ा जल प्रयोग किया जा सकता है। मंगलग्रह के लिए पान का इत्र, बृहस्पति के लिए गेंदा का इत्र, राहु के लिए लोबान का इत्र, सूर्य के लिए दालचीनी का तेल अभिमंत्रित करके प्रयोग किया जा सकता है।
साभार: श्याम जी शुक्ल, मो.: 8808797111
भारत : 1857 से 1957 (इतिहास पर एक दृष्टि) पुस्तक अपने घर/कार्यालय पर मंगाने के लिए आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सकते हैं
https://vyaparapp.in/store/Pustaknama/15
https://www.meesho.com/hindi-paperback-history-books/p/2r4nct