नई दिल्ली (मा.स.स.). भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने धान की पराली के तेजी से अपघटन के लिए कवक प्रजातियों का एक माइक्रोबियल कंसोर्टियम – पूसा अपघटक (डीकंपोजर) विकसित किया है। इस कंसोर्टियम के उपयोग से खेत में ही धान की पराली सड़ने की प्रक्रिया तेज हो जाती है। साल 2021 में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीटी) दिल्ली ने लगभग 5.7 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में अपघटक का उपयोग किया था। सैटेलाइट इमेजिंग और निगरानी के माध्यम से यह देखा गया कि जहां इस अपघटक का उपयोग किया गया था, वहां 92 फीसदी क्षेत्र में पराली को जलाया नहीं गया था। जैसा कि कुछ अखबार की खबरों बताया गया है, इन राज्यों में जैव-अपघटक के उपयोग का कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं देखा गया।
पड़ोसी राज्यों यानी पंजाब, हरियाणा व उत्तर प्रदेश में पराली जलाने के कारण दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु प्रदूषण का समाधान करने और फसल अवशेषों के अपने स्थान पर प्रबंधन के लिए जरूरी मशीनरी को सब्सिडी देने के उद्देश्य से कृषि और किसान कल्याण विभाग पहले से ही 2018-19 से केंद्रीय क्षेत्र की योजना ‘फसल अवशेष प्रबंधन’ कार्यान्वित कर रहा है। यह योजना किसानों, सहकारी समितियों, किसान उत्पादक संगठनों और पंचायतों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के माध्यम से खेतों में और इससे बाहर फसल अवशेष प्रबंधन मशीनों के उपयोग को बढ़ावा देती हैं। यह योजना भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के तहत विभिन्न राज्य एजेंसियों और 3 एटीएआरआई व 60 कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके) के माध्यम से पराली प्रबंधन पर जन जागरूकता उत्पन्न करने पर भी ध्यान केंद्रित करती है। जैव- अपघटक के लाभों को देखते हुए फसल अवशेष प्रबंधन योजना के तहत इसके प्रावधान किए गए हैं और राज्यों को बड़े पैमाने पर किसानों के खेतों में इस तकनीक को दिखाने की सलाह दी गई है। चालू वर्ष के दौरान राज्यों ने 8.15 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में इस तकनीक के उपयोग का लक्ष्य रखा है।
साल 2018-19 से 2021-22 के दौरान इन राज्यों को 2440.07 करोड़ रुपये की धनराशि जारी की गई है। वहीं, चालू वर्ष के दौरान अब तक 601.53 करोड़ रुपये जारी किए जा चुके हैं। इस धनराशि से राज्यों ने 2 लाख से अधिक मशीनों की आपूर्ति की है और चालू वर्ष के दौरान 47,000 और मशीनें उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा है। इसके तहत आपूर्ति की गई मशीनों में बेलर और रेक भी शामिल हैं, जिनका उपयोग खेतों से बाहर अपघटक के उपयोग के लिए पुआल को गांठों के रूप में जमा किया जाता है। आगामी मौसम में धान की पराली जलाने पर प्रभावी नियंत्रण के लिए राज्यों से सूक्ष्म स्तर पर एक व्यापक कार्य योजना तैयार करने, मशीनों के प्रभावी उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए एक प्रणाली स्थापित करने, सीआरएम मशीनों के साथ एक सराहनीय मोड में जैव-अपघटक के उपयोग को बढ़ावा देने, आसपास के उद्योगों जैसे बायोमास आधारित विद्युत संयंत्रों, बायो-एथेनॉल संयंत्रों आदि से मांग की मैपिंग के माध्यम से पराली के बाहरी उपयोग को बढ़ावा देने के लिए कहा गया है। इसके अलावा इस क्षेत्र में किसानों की जन जागरूकता के लिए सभी हितधारकों की भागीदारी के साथ इलेक्ट्रॉनिक/प्रिंट मीडिया, सोशल मीडिया के साथ-साथ किसान मेलों, प्रकाशनों, संगोष्ठियों और एडवाइजरी के साथ बृहद अभियानों के माध्यम से आईईसी गतिविधियों को शुरू करने के लिए भी कहा गया है। अगर उपरोक्त ढांचे के तहत पहले से अनुरोध किए गए सभी कार्यों को राज्य के स्तर पर समग्र रूप से पूरा किया जाता है, तो पराली जलाने को प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया जा सकता है।
राज्य सरकारों के कृषि/वन और पर्यावरण/विद्युत विभागों की संयुक्त निगरानी टीम नियमित रूप से पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली-एनसीआर के अन्य आसपास के क्षेत्रों में फसल अवशेष जलाने के मुद्दे की दैनिक आधार पर निगरानी कर रही है। इसके अलावा वायु गुणवत्ता निगरानी आयोग भी इस स्थिति पर अपनी गहरी दृष्टि बनाए हुए है।