नई दिल्ली (मा.स.स.). भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ. संबित पात्रा ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि पिछले माह, 23 मार्च को सूरत की सेशन कोर्ट ने ओबीसी समुदाय के लिए आपत्तिजनक शब्द का प्रयोग कर उन्हें अपमानित करने की एवज में राहुल गाँधी को दोषी करार देते हुए अयोग्य ठहराया था और दंडित भी किया था। नतीजतन, वायनाड से सांसद रहे राहुल गाँधी को संसद सदस्यता से हाथ धोना पड़ा था।
साहिबजादे के चाटुकार आज सबसे ज्यादा छाती पीट रहे हैं लेकिन 2013 में डॉ मनमोहन सिंह की सरकार में जनप्रतिनिधि कानून में संशोधन करने का फैसला लिया गया था। इस कानून में संशोधन यह करना था कि सजा होने के बाद कितने दिनों बाद संसद सदस्यता जाएगी। इसके लिए तत्कालीन यूपीए सरकार एक अध्यादेश लाई थी। उस अध्यादेश के मेरिट पर हमें कोई टिप्पणी नहीं करनी, लेकिन यह सार्वजनिक है कि राहुल गांधी ने उस अध्यादेश को ‘नॉनसेंस’ कहते हुए फाड़ दिया था और अपनी पार्टी की सरकार को औकात दिखा दी थी। आज उसी कानून की चपेट में राहुल आए, तो कांग्रेस पार्टी को कष्ट हो रहा है।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने राहुलसे कहा था कि ओबीसी समाज के खिलाफ आपने जिस प्रकार के आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग किया है उसके लिए आप माफी मांग सकते हैं। लेकिन राहुलबोले- मैं राहुल हूं, माफी नहीं मांगूंगा। इतना अहंकार क्यों राहुल? दरअसल, दो R कभी साथ नहीं चल सकते… Rahul और Responsibility. राहुल, क्या यह हकीकत नहीं है कि ओबीसी समुदाय, जो समाज के पिछड़े वर्ग से आते हैं, उनके लिए आपने जातिसूचक अपशब्द का प्रयोग कर उन्हें अपमानित किया? देश के कानून के मुताबिक जब केस चलता है, तो राहुलपूरे ताम-झाम के साथ सूरत जा रहे हैं। क्या राहुलन्यायिक प्रक्रिया पर दबाव डालना चाहते हैं?
अपील करना राहुल गाँधी का लोकतांत्रिक अधिकार है लेकिन अपील करने के लिए एक वकील की उपस्थिति ही काफी होती है अथवा आपके बैटरी ऑफ़ वकील भी जाकर अपील कर सकते हैं लेकिन इतनी बड़ी फ़ौज सूरत ले जाकर राहुल क्या जतलाना चाहते हैं? आश्चर्य की बात तो यह कि राहुलने ओबीसी समुदाय के लिए अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया और अब इनकी घृष्टता ही कही जाएगी कि सूरत जाकर जले पर घी और कटे पर नमक छिड़कने का काम करना चाह रहे हैं। क्या राहुल सूरत जा कर OBC समाज के जख्मों पर नमक लगाने का काम नहीं कर रहे हैं? सूरत जाकर इस तरह का विरोध प्रदर्शन ओबीसी समुदाय के अपमान को बढ़ाने वाला है।
राहुल गांधी बड़े जोश के के साथ 2019 में कह रहे थे कि राफेल मामले में सुप्रीम कोर्ट में माफी नहीं मांगेगे। किन्तु राहुल गांधी को सुप्रीम कोर्ट में माफी मांगते हुए कहा कि “मुझे अफसोस है।“ उस वक्त सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि सिर्फ मौखिक मांगने से नहीं होगा बल्कि राहुल गांधी को एक एफिडेविट देकर लिखित माफी मांगनी होगी। राहुल, आपको OBC समाज से इतनी नफ़रत क्यों है? आपका भारतीय न्यायपालिका में विश्वास क्यों नहीं है? राहुल, आप कानूनन अयोग्य करार दिए गए हैं. आपके एजेंट दूसरे देशों में जाकर जो बयान दे रहे हैं या बयान दिलवा रहे हैं और उसका समर्थन कांग्रेस पार्टी भारत में कर रही है तो यह सवाल लाजिमी है कि आखिर भारतीय लोकतंत्र के प्रति ऐसी वितृष्णा क्यों?
राहुल के घमंड की सीमा देखिए कि ये अपने लिए देश में अलग क़ानून चाहते हैं। मतलब, कोर्ट में जो राहुल गाँधी के साथ हुआ, वह उचित नहीं था. इनके अनुसार, देश के सभी नागरिक द्वितीय दर्जे के हैं और गाँधी परिवार ही इनके शहंशाह और शहजादे हैं। कांग्रेस पार्टी को यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि इस भावना से देश अब निजात पा चुकी है। कांग्रेस के अन्दर भी दो मानदंड हैं। 1996 में ‘कैश फॉर वोट’ के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव पर केस चला। निचली अदालत ने उन्हें दोषी करार देते हुए 3 साल की जेल की सजा सुनाई. क्या जब पीवी नरसिम्हा पर कार्रवाई हुई तो एक भी गाँधी परिवार का व्यक्ति या कोई भी कांग्रेसी सड़क पर नौटंकी या हुड़दंग करता नजर आया? लेकिन अगर बात राहुल गांधी पर आए तो… क़ानून बदल डालो।
कर्नाटक के कांग्रेसी नेता डीके शिवकुमार पर भ्रष्टाचार के चलते कार्रवाई हुई, कभी राहुल गाँधी या प्रियंका गांधी ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस नहीं की, लेकिन गांधी परिवार पर बात आते ही… शहंशाह और शहज़ादे पर कार्रवाई कैसे? उत्तर प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू पर भी राहुल गाँधी के समान मानहानि का केस चला और उन्हें जेल की सजा हुई। क्या कभी राहुल गाँधी को अजय कुमार लल्लू के समर्थन में सड़क पर उतारते देखा गया। क्या अमेरिका और इंग्लैंड में राहुलइस मामले में कहते सुनने को मिले कि देश में लोकतंत्र खतरे में है? भारतीय जनता पार्टी राहुल गाँधी को साफ-साफ बताना चाहती है कि वह ओबीसी समुदाय को हल्के में नहीं ले सकती। आप पिछड़े समुदाय के लिए न तो आपत्तिजनक टिप्पणी कर सकते हैं और न ही उन्हें अपशब्द कह सकते हैं और न ही वे अपने इन दुर्भाग्यपूर्ण बयानों के बाद न्यायिक प्रक्रिया पर सवाल नहीं उठा सकते हैं।
इस देश ने अब बदलाव को गले लगा लिया है, इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। आज देश में पहली बार एक आदिवासी महिला राष्ट्रपति पद को सुशोभित कर रही हैं। आज ओबीसी समुदाय का एक व्यक्ति भारत के प्रधानमंत्री पद की शोभा बढ़ा रहे हैं। आज हमारे मंत्रिमंडल में ओबीसी समुदाय के कई गणमान्य व्यक्ति हैं। यह सब सरकार के ‘सबका साथ, सबका विश्वास, सबका प्रयास’ के आदर्श वाक्य को प्रदर्शित करता है; और इस प्रयास को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करने वाले को किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा।
भारत : 1857 से 1957 (इतिहास पर एक दृष्टि) पुस्तक अपने घर/कार्यालय पर मंगाने के लिए आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सकते हैं
https://www.amazon.in/dp/9392581181/