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अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने खत्म किया विश्वविद्यालय में प्रवेश के लिए जातिगत आरक्षण

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वाशिंगटन. अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने यूनिवर्सिटी एडमिशन में नस्ल और जातीयता के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया. इससे दशकों सकारात्मक भेदभाव कही जाने वाली पुरानी प्रथा को बड़ा झटका लगा है. फैसले से अफ्रीकी-अमेरिकियों व अन्य अल्पसंख्यकों को शिक्षा के अवसरों के लिए प्रोत्साहन मिलेगा. चीफ जस्टिस जॉन रॉबर्ट्स ने बहुमत की राय में लिखा, “छात्र के साथ एक व्यक्ति के रूप में उसके अनुभवों के आधार पर व्यवहार किया जाना चाहिए, नस्ल के आधार पर नहीं.” कोर्ट के फैसले पर अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा, ”इसने हमें यह दिखाने का मौका दिया कि हम मेज पर एक सीट से कहीं अधिक योग्य हैं.”

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यूनिवर्सिटी किसी आवेदक के व्यक्तिगत अनुभव पर विचार करने के लिए स्वतंत्र है,  चाहे, उदाहरण के लिए अपने आवेदन को अकादमिक रूप से अधिक योग्य आवेदकों से अधिक महत्व देते हुए वे नस्लवाद का अनुभव करते हुए बड़े हुए हों. रॉबर्ट्स ने लिखा, लेकिन मुख्य रूप से इस आधार पर निर्णय लेना कि आवेदक गोरा है, काला है या अन्य है, अपने आप में नस्लीय भेदभाव है. उन्होंने कहा, “हमारा संवैधानिक इतिहास उस विकल्प को बर्दाश्त नहीं करता है.” कोर्ट ने एक एक्टिविस्ट ग्रुप स्टूडेंट्स फॉर फेयर एडमिशंस का पक्ष लिया. इस ग्रुप ने देश में उच्च शिक्षा के सबसे पुराने निजी और सार्वजनिक संस्थानों, खास तौर पर हार्वर्ड यूनिवर्सिटी और उत्तरी कैरोलिना यूनिवर्सिटी (UNC) पर उनकी एडमिशन की नीतियों को लेकर मुकदमा दायर किया था.

स्टूडेंट्स फॉर फेयर एडमिशंस ने दावा किया कि नस्ल-प्रेरित एडमिशन पॉलिसियां दो विश्वविद्यालयों में प्रवेश के लिए प्रतिस्पर्धा करने वाले समान या अधिक योग्य एशियाई अमेरिकियों के साथ भेदभाव करती हैं. अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर मिशेल ओबामा ने ट्विटर पर अपने विचार शेयर किए. इसके बाद उनके पति और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ने उनके रिट्वीट करते हुए लिखा- ”अधिक न्यायपूर्ण समाज की दिशा में सकारात्मक विभेद (Affirmative action) कभी भी पूर्ण उत्तर नहीं था. लेकिन उन छात्रों की पीढ़ियों के लिए जिन्हें अमेरिका के अधिकांश प्रमुख संस्थानों से व्यवस्थित रूप से बाहर रखा गया था, इसने यह दिखाने का मौका दिया कि हम मेज पर एक सीट से कहीं अधिक योग्य हैं.”

हार्वर्ड और यूएनसी, कई अन्य प्रतिस्पर्धी अमेरिकी स्कूलों की तरह अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए आवेदक की नस्ल या जातीयता को एक कारक मानते हैं. इस तरह की नीतियां 1960 के दशक में सिविल राइट्स मूवमेंट से उत्पन्न हुईं, जिनका उद्देश्य अफ्रीकी अमेरिकियों के खिलाफ उच्च शिक्षा में भेदभाव की रूढ़ि को बरकरार रखने में मदद करना था. गुरुवार का फैसला कंजरवेटिव की जीत है. कुछ लोगों ने तर्क दिया है कि सकारात्मक भेदभाव मौलिक रूप से अनुचित है. अन्य लोगों ने कहा है कि नीति की आवश्यकता पूरी हो गई है क्योंकि अश्वेतों और अन्य अल्पसंख्यकों के लिए शिक्षा के अवसरों में काफी सुधार हुआ है.

साभार : एनडीटीवी

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