नई दिल्ली. सद्गुरु जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है. सुप्रीम कोर्ट ने फाउंडेशन (Supreme Court On Isha Foundation) के खिलाफ हाईकोर्ट में चल रही कार्रवाई को रद्द कर दिया है. हालांकि अदालत ने साफ किया कि इस फैसले का असर सिर्फ इसी केस तक सीमित रहेगा. अदालत ने कहा कि मद्रास हाईकोर्ट के लिए इस तरह की याचिका पर जांच का आदेश देना पूरी तरह अनुचित था. पिता की याचिका गलत है, क्योंकि दोनों लड़कियां बालिग हैं और वे अपनी मर्जी से आश्रम में रह रही हैं. सुप्रीम कोर्ट ने दो महिलाओं के पिता द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण (हेबियस कॉर्पस केस) बंद कर दिया. उन्होंने दावा किया था कि उनकी बेटियों को आश्रम में “बंदी” बनाकर रखा गया है.लेकिन बेटियों का कहना है कि वे अपनी मर्जी से वहां रह रही हैं.
CJI ने क्या कहा ?
- सहमति, स्वेच्छा से है, कोई जबरदस्ती नहीं है, कुछ भी नहीं बचा है..
- यहां तक कि पुलिस ने भी कहा कि महिलाएं अपनी मर्जी से वहां रह रही हैं.
- महिलाएं बालिग हैं; उन्हें यह तय करने दें कि उन्हें कहां रहना है..
- बच्चों का विश्वास जीतने की कोशिश करें, सूट या बंदी प्रत्यक्षीकरण न करें..
- हाईकोर्ट और अब सुप्रीम कोर्ट में कार्यवाही केवल बंदी प्रत्यक्षीकरण से संबंधित है.
- हम फाउंडेशन के खिलाफ दर्ज अन्य मामलों पर टिप्पणी नहीं करेंगे.
- हाई कोर्ट को अन्य मामलों पर आदेश देकर अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण नहीं करना चाहिए.
- इस आदेश का दायरा केवल पिता द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण से संबंधित है.
- यह आदेश ईशा फाउंडेशन को विनियामक अनुपालन का पालन करने के लिए कहने के रास्ते में नहीं आएगा.
CJI ने ईशा फाउंडेशन के वकील से क्या कहा?
CJI ने ईशा फाउंडेशन के वकील मुकुल रोहतगी से कहा कि जब आपके आश्रम में महिलाएं और नाबालिग बच्चे हों तो वहां आंतरिक शिकायत कमेटी (ICC) का होना ज़रूरी है. हमारा विचार किसी संगठन को बदनाम करने का नहीं है, लेकिन कुछ ज़रूरतें हैं, जिनका पालन किया जाना चाहिए. आपको संस्था पर यह दबाव डालना होगा कि इनका पालन किया जाना चाहिए.
राज्य पुलिस करती रहेगी शिकायत की जांच
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ईशा फाउंडेशन के खिलाफ जो शिकायत है उसकी जांच राज्य पुलिस करती रहेगी. हमारा आदेश पुलिस की जांच मे आड़े नहीं आएगा. उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट के सामने जो मुद्दा था उसपर ही बात करनी चाहिए थी। दूसरी टिप्पणियां नहीं करनी चाहिए थी
दोनों महिलाएं अपनी मर्जी से आश्रम में रह रहीं
ईशा फाउंडेशन को लेकर मीडिया में चल रही तमिलनाडु पुलिस की स्टेटस रिपोर्ट पर मुकुल रोहतगी ने सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि ये निजता का सवाल है. वहीं सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर सवाल उठाए हैं. CJI ने कहा कि 8 साल पहले मां ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की थी, अब पिता ने दायर की है. हाईकोर्ट ने दोनों बच्चों को पेशी के लिए बुलाया है. हाईकोर्ट ने पुलिस को जांच करने को कहा है. अदालत ने कहा कि दोनों महिलाओं से बात कर उनका स्टेटमेंट रिकॉर्ड किया गया है. दोनों महिलाओं ने कहा है कि वे अपनी मर्जी से वहां रह रही हैं, जिसके बाद बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका बंद करनी होगी.
ईशा फाउंडेशन में बंदी प्रत्यक्षीकरण केस
पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि ईशा फाउंडेशन में पिछले कुछ सालों में गुमशुदगी से संबंधित शिकायतें और सुसाइड जांच दर्ज की गई है. पुलिस ने कहा कि बंदी प्रत्यक्षीकरण केस में कथित बंदी अपनी मर्जी से योगा केंद्र में रह रहे हैं. हलफनामे में ये भी कहा गया कि पिछले 15 सालों में ईशा फाउंडेशन के अधिकार क्षेत्र वाले अलंदुरई पुलिस स्टेशन में गुमशुदगी के 6 मामले दर्ज किए गए, 5 छोड़ दिए गए लेकिन छठवें की जांच हो रही है. गुम शख्स का अब तक पता नहीं चल सका है.
लड़कियों के पिता ने HC में दायर की थी याचिका
रिटायर्ड प्रोफेसर एस कामराज ने फाउंडेशन के खिलाफ मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. उन्होंने आरोप लगाया था कि उनकी बेटियों लता और गीता को आश्रम में बंधक बनाकर रखा गया है. उनकी इसी याचिका पर हाईकोर्ट ने 30 सितंबर को ईशा फाउंडेशन से जुड़े सभी क्रिमिनल केसों की डिटेल मांगी थी. 1 अक्टूबर को 100 से ज्यादा पुलिसकर्मी फाउंडेशन के हेडक्वार्टर पहुंच गए. वहीं सद्गुरु ने मद्रास हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. उसी पर आज सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की है.
साभार : एनडीटीवी
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