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कार्यकाल पूरा होने से पहले ही यूपीएससी अध्यक्ष मनोज सोनी ने दिया इस्तीफा

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नई दिल्ली. ट्रेनी आईएएस पूजा खेडकर को लेकर चल रहे विवाद के बीच बड़ी खबर सामने आई है। लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष (UPSC Chairperson) मनोज सोनी ने इस्तीफा दे दिया है। सोनी ने अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले अपना इस्तीफा राष्ट्रपति को भेजा है।

स्वीकार नहीं हुआ इस्तीफा!

हालांकि, सूत्रों को कहना है कि मनोज सोनी के इस्तीफे का मसला IAS पूजा खेडकर से जुड़ा नहीं है। कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) के सूत्र के अनुसार उनका इस्तीफा अभी स्वीकार नहीं किया गया है। सोनी ने 2017 में यूपीएससी में बतौर सदस्य ज्वॉइन किया था। 16 मई, 2023 को उन्हें यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन का अध्यक्ष बनाया गया।

सूत्रों के अनुसार, उन्होंने अपना इस्तीफा “बहुत पहले” सौंप दिया था। प्रशिक्षु आईएएस अधिकारी पूजा खेडकर के खिलाफ आरोपों के बाद यूपीएससी विवादों में घिर गया है, जिन्होंने कथित तौर पर सिविल सेवा में प्रवेश पाने के लिए पहचान पत्रों में जालसाजी की थी। यूपीएससी में शामिल होने से पहले, डॉ सोनी ने कुलपति के रूप में तीन कार्यकाल पूरे किए। इनमें 01 अगस्त 2009 से 31 जुलाई 2015 तक डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर मुक्त विश्वविद्यालय (बीएओयू) के कुलपति के रूप में लगातार दो कार्यकाल और अप्रैल 2005 से अप्रैल 2008 तक महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय बड़ौदा (बड़ौदा एमएसयू) के कुलपति के रूप में एक कार्यकाल शामिल है। बड़ौदा एमएसयू में शामिल होने के समय, डॉ. सोनी भारत और एमएसयू में सबसे कम उम्र के कुलपति थे।

डॉ. सोनी ने उच्च शिक्षा और लोक प्रशासन के कई संस्थानों के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स में काम किया है। वह गुजरात विधानमंडल के एक अधिनियम द्वारा गठित अर्ध-न्यायिक निकाय के सदस्य भी थे, जो गुजरात में गैर-सहायता प्राप्त पेशेवर संस्थानों की फीस संरचना को नियंत्रित करता है।

कांग्रेस ने दी प्रतिक्रिया

यूपीएससी अध्यक्ष मनोज सोनी द्वारा निजी कारणों का हवाला देते हुए इस्तीफा दिए जाने के बाद, कांग्रेस ने कहा कि यूपीएससी से जुड़े मौजूदा विवाद के कारण उन्होंने स्पष्ट रूप से पद से हटने का फैसला किया है। आधिकारिक सूत्रों ने शनिवार को बताया कि सोनी ने मई 2029 में अपने कार्यकाल की समाप्ति से पहले निजी कारणों का हवाला देते हुए इस्तीफा दिया है।

कांग्रेस महासचिव और संचार प्रभारी जयराम रमेश ने यह भी कहा कि 2014 से सभी संवैधानिक निकायों की पवित्रता और स्वायत्तता को बहुत नुकसान पहुंचा है। उन्होंने आगे कहा, “मोदी 2017 में गुजरात से अपने पसंदीदा ‘शिक्षाविदों’ में से एक को यूपीएससी सदस्य के रूप में लाए और उन्हें छह साल के कार्यकाल के लिए 2023 में अध्यक्ष बनाया। लेकिन इस तथाकथित प्रतिष्ठित सज्जन ने अब अपने कार्यकाल की समाप्ति से पांच साल पहले ही इस्तीफा दे दिया है। जो भी कारण दिए जा सकते हैं, यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि यूपीएससी से जुड़े मौजूदा विवाद को देखते हुए उन्हें बाहर करना पड़ा।”

साभार : अमर उजाला

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