वाशिंगटन. जिस तरह यूक्रेन का भविष्य अंधेरे में दिख रहा है उसी तरह उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) का क्या होगा यह भी सवालों के घेरे में आ गया है. यूक्रेन के बाहर यूरोपीय सुरक्षा के लिए अमेरिका की प्रतिबद्धता के बारे में कई संदेह और सवाल खड़े हो गए हैं. सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या राष्ट्रपति ट्रंप अपने पूर्ववर्ती हैरी ट्रूमैन की तरफ से 1949 में किए गए उस वादे को निभाएंगे कि नाटो सहयोगी पर हमले को अमेरिका पर हमला माना जाएगा.
संयुक्त राज्य अमेरिका नाटो का अग्रणी और संस्थापक सदस्य रहा है. नाटो के गठन ने संयुक्त राज्य अमेरिका की पारंपरिक विदेश नीति को उलट दिया, जो अलग-थलग रहने पर आधारित थी. इसी नीति की वजह से अमेरिका जितना संभव हो सका प्रथम विश्व युद्ध और द्वितीय विश्व युद्ध से बाहर रहा. दोनों ही अवसरों पर, उसकी नौसैनिक परिसंपत्तियों पर हमले ने अंततः उसे युद्ध की स्थिति में धकेल दिया.
हालांकि डोनाल्ड ट्रंप बिल्कुल अलग राह पर चल रहे हैं. उन्होंने पिछले दिनों स्पष्ट कहा था कि यूक्रेन को नाटो मेंबरशिप भूल जानी चाहिए. उन्होंने कहा था, “नाटो, आप इसके बारे में भूल सकते हैं. मुझे लगता है कि शायद यही कारण है कि यह सब शुरू हुआ.” साफ है तीन साल के रूस-यूक्रेन युद्ध ने न सिर्फ यूक्रेन को बल्कि पूरे यूरोप के सामने एक बड़ा संकट खड़ा कर दिया है.
साभार : एबीपी न्यूज
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