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भारत आने के लिए अफगान तालिबान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी की यात्रा पर अस्थायी रूप से रोक हटाई

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काबुल. 15 अगस्त 2021 को जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया था तो भारतीय अधिकारी काबुल स्थिति दूतावास बंदकर दिल्ली लौट आए थे। उस वक्त माना गया कि अफगानिस्तान का दरवाजा अब दिल्ली के लिए हमेशा के लिए बंद हो गया है। लेकिन आज करीब चार सालों के बाद तालिबान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी 9 अक्टूबर को भारत आ रहे है। ऐसा शायद ही किसी ने सोचा होगा। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने मुत्ताकी के दिल्ली दौरे को मंजूरी दे दी है और वो 16 अक्टूबर से पहले भारत आ सकते हैं।

तालिबान और भारतीय अधिकारियों के बीच अभी तक दुबई और काबुल में मुलाकात होती रही है और ये पहली बार होगा, जब तालिबान के शीर्ष नेतृत्व का कोई अधिकारी भारत आ रहा हो। इसीलिए आमिर खान मुत्ताकी का दिल्ली दौरा सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं है। इस साल की शुरूआत में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने मुत्ताकी से टेलीफोन पर बात की थी और इस साल जून में, भारत ने हैदराबाद स्थित अफगान वाणिज्य दूतावास का नियंत्रण तालिबान की तरफ से नियुक्त किए गये मोहम्मद रहमान को वाणिज्य दूतावास प्रतिनिधि के रूप में सौंप दिया था।

तालिबान के विदेश मंत्री का भारत दौरा

अफगानिस्तान में आने वाले हर आपदा के समय भारत प्रतिक्रिया देने वाला पहला देश रहा है। हालिया भूकंप के समय भी भारत ने तत्काल राहत सहायता भेजी थी। इसके अलावा अफगान नागरिकों और भारतीय नागरिकों के बीच का रिश्ता भी काफी मजबूत है और ये एक बड़ी वजह है, जिसने तालिबान को भारत के साथ रिश्ता मजबूत करने को मजबूर किया है। नई दिल्ली ने करीब 50,000 टन गेहूं, 330 टन दवाइयां और अन्य खाद्य एवं आश्रय सामग्री अफगान जनता तक पहुंचाई है, जबकि सितंबर के भूकंप के तुरंत बाद राहत सामग्री भेजना भी भारत की अफगानिस्तान को लेकर तत्परता को दर्शाता है। भारत जानता है, कि अफगानिस्तान उसके लिए कितना महत्वपूर्ण है, खासकर उस वक्त जब तालिबान और पाकिस्तान बार बार युद्ध के मुहाने पर खड़े हो रहे हैं। तालिबान और पाकिस्तान के बीच का रिश्ता चीन की मध्यस्थता के बावजूद निम्नतम स्तर पर है।

जियो-पॉलिटिकल एक्सपर्ट और मिडिल ईस्ट के जर्नलिस्ट उमर वज़िरी ने लिखा है कि पाकिस्तान के साथ तालिबान के रिश्ते खराब होने के पीछे कई वजहें हैं। दशकों तक पाकिस्तान ने तालिबान को अपना प्रॉक्सी माना और उन्हें आश्रय, हथियार और वित्तीय सहायता दी। लेकिन पाकिस्तान ने इसके साथ ही अफगानिस्तान को अपना पांचवां राज्य भी मानना शुरू कर दिया। पाकिस्तान ने अफगानों को अपना गुलाम मानना शुरू कर दिया और पाकिस्तान चाहता था कि तालिबान की विदेश नीति इस्लामाबाद से तय हो। जिसे मानने से तालिबान ने साफ इनकार कर दिया। इसके बाद दिसंबर 2024 में पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में भीषण हवाई हमला करते हुए दर्जनों अफगानों को मार डाला और पाकिस्तान में रहने वाले लाखों अफगानों को देश से बाहर कर दिया।

तालिबान ने अफगान शरणार्थियों को बाहर निकालने की घटना को पाकिस्तान का विश्वासघात माना है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सीमा, जिसे डूरंड लाइन कहा जाता है, उसपर भी पाकिस्तान और तालिबान के बीच विवाद है। तालिबान ने डूरंड लाइन पर पाकिस्तान की तरफ से लगाए गये बाड़ को उखाड़ फेंका है।

भारत पर भरोसा क्यों कर रहा है तालिबान?

तालिबान, भारत को लेकर अफगानों के दिल में प्यार को महसूस कर रहा है। इसके अलावा तालिबान, पाकिस्तान की हरकतों से परेशान रहा है। तालिबान भी अफगानिस्तान में विकास चाहता है और वो चाहता है कि भारत, अफगानिस्तान में चलाए जा रहे अपने डेवलपमेंट प्रोजेक्ट को फिर से शुरू करे। इसीलिए तालिबान ने कई दफे भारत को अपना सहयोगी कहकर संबोधित किया है। तालिबान ने पहलगाम आतंकी हमले की ना सिर्फ आलोचना की थी, बल्कि भारत के ‘जवाब देने के अधिकार’ का भी समर्थन किया था। भारत ने अफगानिस्तान में 2000 के दशक से संसद भवन, सड़कें, बांध और स्कूल बनाने जैसे विकास कार्यों में योगदान दिया है। साथ ही, चाबहार पोर्ट के माध्यम से पाकिस्तान के बंदरगाह कनेक्शन को बायपास कर अफगानिस्तान को समुद्री मार्ग उपलब्ध कराना भी रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है। भारत ने तालिबान के साथ औपचारिक मान्यता दिए बिना बातचीत कर संतुलन बनाए रखा है।

उमर वज़िरी ने कहा है कि तालिबान का भारत को लेकर सकारात्मक नजरिया न सिर्फ पाकिस्तान के लिए चेतावनी है, बल्कि दक्षिण एशियाई भू-राजनीति में बहुत बड़े बदलाव का संकेत भी देता है। पाकिस्तान की नीतियों, अफगानिस्तान में हवाई हमले, अफगान शरणार्थियों को बेइज्जत कर बाहर निकालना, सीमा विवाद ने पाकिस्तान को लेकर तालिबान के विश्वास को खत्म कर दिया है। जबकि भारत की दीर्घकालिक मदद, व्यापारिक विकल्प और सम्मानजनक संवाद तालिबान को पाकिस्तान की पकड़ से आजाद कर रहे हैं। मुत्ताकी की नई दिल्ली यात्रा इस बदलाव का प्रतीक बन गई है, जिससे साफ संदेश जाता है कि अफगानिस्तान अब पाकिस्तान की छाया से बाहर निकल कर भारत की तरफ बढ़ रहा है।

साभार : नवभारत टाइम्स

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