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आजादी के अमृत महोत्सव के वर्ष में सकल्प लें कि सहकारिता आंदोलन सदियों तक चले : अमित शाह

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नई दिल्ली (मा.स.स.). केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने आज नई दिल्ली के विज्ञान भवन में ग्रामीण सहकारी बैंकों के राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित किया। अमित शाह ने उत्कृष्ट राज्य सहकारी बैंकों, ज़िला केन्द्रीय सहकारी बैंकों और प्राथमिक कृषि ऋण समितियों को पुरस्कार भी प्रदान किए। इस अवसर पर सहकारिता राज्यमंत्री बी एल वर्मा सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

इस अवसर पर अपने संबोधन में अमित शाह ने कहा कि इस प्रकार के आयोजन ना केवल एक-दूसरे की बेस्ट प्रैक्टिसिस के आदान प्रदान बल्कि पूरे भारत के कृषि ऋण के क्षेत्र में काम करने वाले सभी सहकारी कार्यकर्ताओं के लिए एक कॉमन थ्रस्ट एरिया का निर्माण करने में भी बहुत उपयोगी सिद्ध होते हैं। उन्होंने कहा कि इतने सारे बैंक, डिस्ट्रिक्ट कोऑपरेटिव बैंक और PACS अलग-अलग प्रकार से अलग-अलग क्षेत्रों में सहकारिता के सिद्धांत के आधार पर ही काम कर रहे हैं। सहकारिता और इसके व्याप्त को बढ़ाने और सहकारिता के माध्यम से कृषक, कृषि और देश की समृद्धि बढ़ाने के लिए अगर हमारा थ्रस्ट एरिया कॉमन नहीं होगा तो परिणाम नहीं मिलेंगे।

केन्द्रीय सहकारिता मंत्री ने कहा कि भारत के लगभग 120 साल पुराने सहकारिता आंदोलन की बहुत सारी उपलब्धियां हैं। उन्होंने कहा कि कुछ राज्यों में हर क्षेत्र में सहकारिता आंदोलन आगे बढ़ा है, कुछ राज्यों में सहकारिता आंदोलन संघर्ष कर रहा है जबकि कुछ राज्यों में सहकारिता आंदोलन सिर्फ़ किताबों में रह गया है। अगर हम पूरे देश में सहकारिता आंदोलन का समविकास करना चाहते हैं और इसका व्यापत बढ़ाना चाहते हैं तो हमें इसकी अलग रणनीति सोचनी होगी। शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में भारत सरकार ने एक बहुत महत्वपूर्ण निर्णय के तहत कृषि मंत्रालय से अलग कर सहकारिता मंत्रालय गठित किया है। उन्होंने कहा कि पूरे देश के सहकारिता के चित्र को ध्यान में रखकर सहकारिता की भावना से राज्यों को साथ लेकर भारत सरकार का सहकारिता मंत्रालय काफ़ी कुछ कर सकता है।

अमित शाह ने कहा कि हमारे कृषि ऋण के खाके को मज़बूती प्रदान करने के साथ साथ इसमें सुधार की भी ज़रूरत है। हर क्षेत्र में सहकारिता पहुंचे और इसके माध्यम से ही कृषि ऋण मिले, इस पर काम किए जाने की ज़रूरत है। आज नरेंद्र मोदी जी देश के प्रधानमंत्री हैं और सहकारिता क्षेत्र के विस्तार और इसे समृद्ध बनाने के लिए इससे ज्यादा अनुकूल समय और कोई नहीं हो सकता। शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी का विज़न है कि समाज के अंतिम व्यक्ति तक अर्थतंत्र को पहुंचाना और इसके विकास के साथ उस अंतिम व्यक्ति का भी विकास करना है तो ये सहकारिता के अलावा कोई नहीं कर सकता।

केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि देश में लगभग साढ़े आठ लाख सहकारी संस्थाएं हैं जिनमें 1,78,000 अलग-अलग प्रकार की क्रेडिट सोसायटीज़ हैं। कृषि ऋण के क्षेत्र में 34 राज्य सहकारी बैंक हैं जिनकी 2,000 से ज़्यादा शाखाएं हैं, 351 ज़िला सहकारी बैंक हैं जिनकी 14 हज़ार शाखाएं हैं और लगभग 95 हज़ार PACSहैं। इन सबको मिलाकर अगर देखें तो पता चलता है कि हमारे पूर्वजों ने एक मज़बूत आधार हमें दिया है और इस नींव पर आज़ादी के अमृत महोत्सव के वर्ष में एक मज़बूत इमारत बनाने का हमारा संकल्प होना चाहिए।

शाह ने कहा कि PACS हमारी सहकारिता कृषि ऋण सिस्टम की आत्मा हैं और मोदी जी के नेतृत्व में PACS का कंप्यूटरीकरण कर इसे अधिक पारदर्शी व सशक्त बनाने का काम किया जा रहा है और जब तक ये ठीक नहीं चलते तब तक कृषि ऋण की व्यवस्था ठीक नहीं चल सकती और इसके साथ ही इनका दायरा बढ़ना भी बेहद ज़रूरी है। देश में तीन लाख पंचायतें हैं और कुल 95 हज़ार में से अच्छे चलने वाले पैक्स 65 हज़ार हैं, तब भी लगभग 2 लाख पंचायतें ऐसी हैं जहां पैक्स का अस्तित्व ही नहीं है।

सभी राज्य और ज़िला सहकारी बैंकों का सबसे पहले काम हर पंचायत में पैक्स की पांच साल की एक रणनीति तैयार करना होना चाहिए। हर ज़िला सहकारी बैंक को अपने क्षेत्र में, हर पंचायत में कैसे पैक्स बन सकता है, इसकी पांच साल की रणनीति बनानी चाहिए और हर राज्य सहकारी बैंक को इस रणनीति की मॉनिटरिंग करना चाहिए और नाबार्ड को भी अपनी विविध योजनाओं के साथ इस रणनीति की पुष्टि करनी चाहिए।सहकारिता मंत्रालय बनने के बाद सबसे पहली योजना भारत सरकार लाई है कि पैक्स को कंप्यूटराइज़्ड कर दिया जाए, और, पैक्स, डिस्ट्रिक्ट और स्टेट कोऑपरेटिव बैंक को ऑनलाइन जोड़ दिया जाए।

पैक्स को कंप्यूटराइज करने से उसके मानव संसाधन बल का अपने आप अपग्रेडेशन हो जाएगा, फाइनेंस के प्रूडेंशियल नॉर्म्स अपने आप पैक्स में अप्लाई हो जाएंगे, ऑडिट की सारी व्यवस्थाएं अपने आप अकाउंटिंग सिस्टम में आ जाएंगी औरअपने आप अलर्ट मिलने शुरू हो जाएंगे। कंप्यूटराइजेशन तभी सफल हो सकता है जब डिस्ट्रिक्ट कोऑपरेटिव बैंक्स इसे नीचे तक पहुंचाने का काम करें। उन्होंने कहा कि कई राज्यों ने कंप्यूटराइजेशन पूरा कर लिया है, लेकिन इसमें एकरूपता नहीं है। पूरे देश की एग्रीकल्चर क्रेडिट सिस्टम को एक कॉमन सॉफ्टवेयर के तहत लाना बेहद ज़रूरी है। उन्होंने कहा कि सुधार अपने यहां से शुरू करना होगा और अगर हमारे एडमिनिस्ट्रेशन में सुधार और पारदर्शिता आती है तो सहकारी बैंक या पैक्स के साथ कोई अन्याय नहीं कर सकता।

केन्द्रीय मंत्री ने कहा कि हमें PACS का दायरा बढ़ाना पड़ेगा, ज्यादा से ज्यादा किसान पैक्स के दायरे में आएं, ये प्रयास करना होगा। पैक्स आज भी किसानों के प्रति मानवीय दृष्टिकोण रखकर फाइनेंस का काम करते हैं। इस देश के किसान को मानवीय दृष्टिकोण के साथ किए गए फाइनेंस की जरूरत है। उन्होंने कहा कि पैक्स के कर्मचारियों में भी प्रोफेशनलिज्म लाना होगा, आज कोई गांव ऐसा नहीं है जहाँ पढ़े लिखे बच्चे नहीं हैं, जहाँ कंप्यूटर का जानकार युवा नहीं है। हमें भी पैक्स के कर्मचारियों का अपग्रेडेशन करने के लिए मानव संसाधन नीति को मजबूत करना होगा। शाह ने कहा कि मोदी सरकार Model Bye-Laws लाकर PACS को सुदृढ़ करने के साथ-साथ इनकी viability बढ़ाकर PACS को multipurpose बनाने का काम कर रही है।

भारत सरकार ने इसके मॉडल बाइलॉज बनाकर सभी राज्यों को भेजे हैं और लगभग सभी स्टेट कोऑपरेटिव बैंक्स, डिस्ट्रिक्ट कोऑपरेटिव बैंक और सहकारिता से जुड़ी कई संस्थाओं और राज्य सरकारों के सुझाव मांगे गए थे, जिन पर निर्णय 15 दिन के बाद किया जाएगा। पैक्स के मॉडल बाइलॉज सहकारिता मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध हैं उनका अध्ययन करके अपने सुझाव सहकारिता मंत्रालय को भेज दें। बहुत समय के बाद देशभर की सभी पैक्स केसमान मॉडल बाइलॉज हो इसके लिए ये इनीशिएटिव लिया गया है। इस इनीशिएटिव में आप सबकी सहभागिता और सहकार, दोनों होना चाहिए तभी यह बाइलॉज परिपूर्ण बनेंगे। इन बाइलॉज में कई प्रकार की व्यवस्थाएं ऑटोमेटिक हो जाएंगी।

यह नए बाइलॉज आने के बाद पैक्स सिर्फ एग्रीकल्चर फाइनेंस करने वाली संस्था नहीं होगी।इनकी वायबिलिटी लाने के लिए कई नए क्षेत्र खोले गए हैं। जैसे, गैस, पानी का वितरण, पीसीओ, भंडारण और एफपीओ का काम पैक्स कर सकेंगे। इस प्रकार के 22 नए कामों को पैक्स के नए बाइलॉज में शामिल कर सुझाव लेने के लिए भारत सरकार ने सबके पास भेजे हैं। इन सारी व्यवस्थाओं को अगर हम ढंग से करते हैं तो 3 लाख पैक्स को वाइबल बनाना कोई बहुत बड़ी बात नहीं है। जैसे-जैसे PACS बढ़ेंगे और मजबूत होंगे वैसे-वैसे जिला और स्टेट कोऑपरेटिव बैंक अपने आप मजबूत होती जाएंगी। उन्होंने कहा कि अगर 3 लाख पैक्स का बेस बन जाता है तो कोऑपरेटिव को एक्सपेंड करने से कोई नहीं रोक सकता।

अमित शाह ने कहा कि भारत सरकार ने ग्रामीण सहकारी बैंकों का विस्तार करने की भी एक योजना बनाई जिसे कई जगह खेती बैंक कहते हैं। ग्रामीण सहकारी बैंक आज किसान को डायरेक्ट फाइनेंस करते हैं और अभी विचार हो रहा है कि ग्रामीण सहकारी बैंक भी पैक्स के माध्यम से मीडियम और लॉंग टर्म फाइनेंस कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि हमने सहकारिता के क्षेत्र में विगत 100 सालों में बहुत अच्छा काम किया है, मगर यह पर्याप्त नहीं है। आजादी के अमृत महोत्सव के वर्ष में हमें संकल्प करना चाहिए कि जो किया है इससे बहुत अच्छा अगले 100 साल में करके हमारा सहकारिता आंदोलन सदियों तक चले, ऐसा मजबूत खाका भारत में खड़ा करना है।

पैक्स के लगभग 13 करोड़ सदस्य हैं, जिनमें से 5 करोड़ सदस्य ऋण लेते हैं और पैक्स हर साल लगभग 2 लाख करोड़ रूपए से अधिक का ऋण वितरण करता है। उन्होंने कहा कि अगर पैक्स की संख्या 5 गुना होती है, तो यह 2 लाख करोड़, 10 लाख करोड़ तक पहुंच सकता है। सहकारिता के माध्यम से 10 लाख करोड़ के कृषि फाइनेंस का हमारा लक्ष्य होना चाहिए। उन्होंने बताया कि बीमार पैक्स के लिए भी एक प्रोविज़न बाईलॉज में राज्यों को सुझाया गया है। बीमार पैक्स को लिक्विडेट कर नया पैक्स बनाया जाए। गांव के किसानों को सहकारिता के लाभों से वंचित नहीं रखना चाहिए और नया पैक्स बनाने का प्रोविजन भी कानूनन बायलॉजमें और राज्यों के सहकारिता कानून में करना होगा, तब हम तीन लाख पैक्स तक पहुंच पाएंगे।

केन्द्रीय सहकारिता मंत्री ने कहा कि 1992 से 2022 तक हमारे फायनेंस में गिरावट आई है और हम सबके लिए यह चिंता का विषय है कि सहकारिता के माध्यम से एग्रीकल्चर फाइनेंस कम होता जा रहा है। उन्होंने कहा कि सहकारिता विभाग ने बहुत सारे इनिशिएटिव लिए हैं। हम एक सहकारिता यूनिवर्सिटी बनाने जा रहे हैं, डेटाबेस बनाने पर काम हो रहा है, जिससे कहाँ सहकारिता के विस्तार करने की जगह है वह इंगित हो जाए। एक एक्सपोर्ट हाउस भी बनाना चाहते हैं जो पैक्स से लेकर एपैक्स तक और कई प्रकार की सहकारी सोसाइटीज के उत्पादों को एक्सपोर्ट के लिए एक अच्छा प्लेटफार्म देगा।

कृषि ऑर्गेनिक प्रोडक्ट्स के लिए भी अमूल के ब्रांड के तहत हम मार्केटिंग की व्यवस्था कर रहे हैं। इसके साथ-साथ सहकारिता में एक नए प्रकार की संवाद की व्यवस्था के लिए भी एक प्लेटफार्म तैयार कर रहे हैं। गांव से लेकर जिले और राज्य को जोड़ते हुए दिल्ली तक एक मजबूत कम्युनिकेशन का प्लेटफार्म भी बनाने जा रहे हैं। हाल ही में पैक्स के माध्यम से हमने GeM से खरीदी का भी निर्णय किया है जिससे पैक्स को पारदर्शिता लाने में आसानी होगी। सहकारी नीति भी बना रहे हैं, जिस पर बहुत तेजी से काम चल रहा है। इस प्रकार के सम्मेलन को हम परिणामलक्षी बनाने का एक संस्कार और कार्य संस्कृति पैदा करें। उन्होंने कहा कि आप सभी ने अभी तक सहकारिता के लिए काफी कुछ किया है और देश में सहकारिता की एक मजबूत नींव मौजूद है और इस पर एक बुलंद इमारत बनाने का काम आजादी के अमृत महोत्सव के वर्ष से आजादी की शताब्दी तक के 25 साल में हम करेंगे और 3 लाख पैक्स के हमारे लक्ष्य को सिद्ध करने के लिए आप लोग आज से ही कार्यरत हों।

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