– प्रहलाद सबनानी
कई अनुसंधान प्रतिवेदनों के माध्यम से अब यह सिद्ध किया जा चुका है कि वर्तमान में अनियमित हो रहे मानसून के पीछे जलवायु परिवर्तन का योगदान हो सकता है। कुछ ही घंटों में पूरे महीने की सीमा से भी अधिक बारिश का होना, शहरों में बाढ़ की स्थिति निर्मित होना, शहरों में भूकम्प के झटके एवं साथ में सुनामी का आना, आदि प्राकृतिक आपदाओं जैसी घटनाओं के बार-बार घटित होने के पीछे भी जलवायु परिवर्तन एक मुख्य कारण हो सकता है। एक अनुसंधान प्रतिवेदन के अनुसार, यदि वातावरण में 4 डिग्री सेल्सियस से तापमान बढ़ जाय तो भारत के तटीय किनारों के आसपास रह रहे लगभग 5.5 करोड़ लोगों के घर समुद्र में समा जाएंगे। साथ ही, चीन के शांघाई, शांटोयु, भारत के कोलकाता, मुंबई, वियतनाम के हनोई एवं बांग्लादेश के खुलना शहरों की इतनी जमीन समुद्र में समा जाएगी कि इन शहरों की आधी आबादी पर इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा। वेनिस एवं पीसा की मीनार सहित यूनेस्को विश्व विरासत के दर्जनों स्थलों पर समुद्र के बढ़ते स्तर का विपरीत प्रभाव पड़ सकता है।
पूरे विश्व में उत्सर्जन वृद्धि के चलते जलवायु में भारी परिवर्तन महसूस किया जा रहा है। विकसित देशों ने आर्थिक प्रगति को गति देने के उद्देश्य से प्राकृतिक संसाधनों का अतिदोहन किया है, जिससे उत्सर्जन वृद्धि अत्यधिक मात्रा में हो रही है। उत्सर्जन वृद्धि को नियंत्रित करने के उद्देश्य से वैश्विक स्तर पर कई उपाय किए जाने का प्रयास किया जा रहा है। परंतु, विकसित देश जिन्हें इस ओर सबसे अधिक ध्यान देना चाहिए वे कम रूचि ले रहे हैं। वहीं दूसरी ओर भारत इस क्षेत्र में अतुलनीय कार्य करता हुआ दिखाई दे रहा है। दरअसल, वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन के सम्बंध में हुए एक समझौते (पेरिस समझौता) के अन्तर्गत, संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी सदस्य देश, इस बात पर राजी हुए थे कि इस सदी के दौरान वातावरण में तापमान में वृद्धि की दर को केवल 2 डिग्री सेल्सियस तक अथवा यदि सम्भव हो तो इससे भी कम अर्थात 1.5 डिग्री सेल्सियस पर रोक रखने के प्रयास करेंगे। उक्त समझौते पर, समस्त सदस्य देशों ने, वर्ष 2015 में हस्ताक्षर किए थे। परंतु, कई सदस्य देश, इस समझौते को लागू करने की ओर कुछ कार्य करते दिखाई नहीं दे रहे हैं।
हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मलेन (यूएनएफसीसीसी) को सूचना दिए जाने के लिए भारत के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान या अपडेटेड नैशनली डिटर्मिण्ड कोंट्रीब्यूशन्स (एनडीसी) को मंजूरी दी है। अपडेटेड एनडीसी, पेरिस समझौते के तहत आपसी सहमति के अनुरूप जलवायु परिवर्तन के खतरे का मुकाबले करने के लिए वैश्विक कार्रवाई को मजबूत करने की दिशा में भारत के योगदान में वृद्धि करने का प्रयास करता है। इस तरह के प्रयास, भारत की उत्सर्जन वृद्धि को कम करने के रास्ते पर आगे बढ़ने में भी मदद करेंगे। यह देश के हितों को संरक्षित करेगा और यूएनएफसीसीसी के सिद्धांतों व प्रावधानों के आधार पर भविष्य की विकास आवश्यकताओं की रक्षा करेगा।
भारत ने उत्सर्जन वृद्धि को कम करने के उद्देश्य से बहुत पहले (2 अक्टोबर 2015 को) ही अपने लिए कई लक्ष्य तय कर लिए थे। इनमें शामिल हैं, वर्ष 2030 तक वर्ष 2005 के स्तर से अपने सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को 30 से 35 प्रतिशत तक कम करना (भारत ने अपने लिए इस लक्ष्य को अब 45 प्रतिशत तक बढ़ा दिया है), ग़ैर-जीवाश्म आधारित ऊर्जा के उत्पादन के स्तर को 40 प्रतिशत तक पहुंचाना (भारत ने अपने लिए इस लक्ष्य को अब 50 प्रतिशत तक बढ़ा लिया है) और वातावरण में कार्बन उत्पादन को कम करना, इसके लिए अतिरिक्त वन और वृक्षों के आवरण का निर्माण करना, आदि। इन संदर्भों में अन्य कई देशों द्वारा अभी तक किए गए काम को देखने के बाद यह पाया गया है कि जी-20 देशों में केवल भारत ही एक ऐसा देश है जो पेरिस समझौते के अंतर्गत तय किए गए लक्ष्यों को प्राप्त करता दिख रहा है।
जी-20 वो देश हैं जो पूरे विश्व में वातावरण में 70 से 80 प्रतिशत तक उत्सर्जन फैलाते हैं। जबकि भारत आज इस क्षेत्र में काफी आगे निकल आया है एवं इस संदर्भ में पूरे विश्व का नेतृत्व करने की स्थिति में आ गया है। भारत ने अपने लिए वर्ष 2030 तक 550 GW सौर ऊर्जा का उत्पादन करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। भारत ने अपने लिए वर्ष 2030 तक 2.6 करोड़ हेक्टेयर बंजर जमीन को दोबारा खेती लायक उपजाऊ बनाने का लक्ष्य भी निर्धारित किया है। साथ ही, भारत ने इस दृष्टि से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सौर संधि करते हुए 88 देशों का एक समूह बनाया है ताकि इन देशों के बीच तकनीक का आदान प्रदान आसानी से किया जा सके।
आज इस बात को समझना भी बहुत ज़रूरी है कि सबसे अधिक उत्सर्जन किस क्षेत्र से हो से रहा है। भारत जैसे देश में जीवाश्म ऊर्जा का योगदान 70 प्रतिशत से अधिक है, जीवाश्म ऊर्जा, कोयले, डीजल, पेट्रोल आदि पदार्थों का उपयोग कर उत्पादित की जाती है। अतः वातावरण में उत्सर्जन भी जीवाश्म ऊर्जा के उत्पादन से होता है एवं इसका कुल उत्सर्जन में 35 से 40 प्रतिशत तक हिस्सा रहता है, इसके बाद लगभग 30 प्रतिशत हिस्सा परिवहन साधनों के उपयोग के कारण होता है क्योंकि इनमें डीजल एवं पेट्रोल का इस्तेमाल किया जाता है। इन दोनों क्षेत्रों में भारत में बहुत सुधार देखने में आ रहा है।
इस समय देश में सौर ऊर्जा की उत्पादन क्षमता बढ़ाई जा रही है। देश अब क्लीन यातायात की ओर तेजी से आगे बढ़ रहा है। बिजली से चालित वाहनों को प्रोत्साहन दिया जा रहा है एवं मेट्रोपॉलिटन शहरों में मेट्रो रेल का जाल बिछाया जा रहा है। LED बल्बों के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है तथा उज्जवला योजना के अंतर्गत ग्रामीण इलाकों में लगभग प्रत्येक परिवार में ईंधन के रूप में गैस के इस्तेमाल पर जोर दिया जा रहा है। इन सभी प्रयासों के चलते देश के वातावरण में उत्सर्जन के फैलाव में सुधार हो रहा है। यह सब अतुलनीय प्रयास कहे जाने चाहिए एवं भारत ने पूरे विश्व को दिखा दिया है कि उत्सर्जन के स्तर को कम करने के लिए किस प्रकार आगे बढ़ा जा सकता है।
भारत सरकार द्वारा देश में स्वच्छ ऊर्जा का उत्पादन बढ़ाने के उद्देश्य से कई प्रकार के नवोन्मेश निर्णय भी लिए जा रहे हैं। उदाहरण के तौर पर नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाने के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना को लागू करने से इस क्षेत्र में विनिर्माण क्षमताओं और निर्यात को बढ़ावा मिलेगा। इसके साथ ही, नवीकरणीय ऊर्जा में वृद्धि के साथ ही स्वच्छ ऊर्जा उद्योग (ऑटोमोटिव आदि) में कम उत्सर्जन वाले उत्पादों जैसे इलेक्ट्रिक वाहनों और कुशल उपकरणों का निर्माण व हरित हाइड्रोजन जैसी नवीन तकनीकों एवं ग्रीन जॉब्स में भी समग्र वृद्धि होगी। केंद्र सरकार एवं कई राज्य सरकारों ने इस सम्बंध में कई योजनाएं व कार्यक्रम भी शुरू किए हैं।
जिसके अंतर्गत जल, कृषि, वन, ऊर्जा और उद्यम, निरंतर गतिशीलता और आवास, कचरा प्रबंधन, चक्रीय अर्थव्यवस्था और संसाधन दक्षता आदि सहित कई क्षेत्रों में सुधार करने की दृष्टि से इन योजनाओं व कार्यक्रमों के तहत उचित उपाय किए जा रहे हैं। उपरोक्त उपायों के परिणामस्वरूप, भारत क्रमशः ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन से आर्थिक विकास को अलग कर रहा है। अकेले भारतीय रेलवे द्वारा अपने लिए तय किए गए वर्ष 2030 तक शुद्ध शून्य लक्ष्य से उत्सर्जन में सालाना 60 मिलियन टन की कमी आएगी। इसी तरह, भारत का विशाल एलईडी बल्ब अभियान सालाना 40 मिलियन टन उत्सर्जन को कम कर रहा है। इस प्रकार भारत विश्व के विकसित देशों सहित, समस्त देशों को उत्सर्जन वृद्धि पर अंकुश लगने के संदर्भ में राह दिखा रहा है।
लेखक वरिष्ठ समाजसेवी हैं.
नोट : लेखक द्वारा व्यक्त विचारों से मातृभूमि समाचार का सहमत होना आवश्यक नहीं है.
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