– प्रहलाद सबनानी
पारम्परिक रूप से भारतीय अर्थव्यवस्था में सबसे अधिक योगदान सेवा क्षेत्र का रहता आया है एवं रोजगार के सबसे अधिक नए अवसर भी सेवा क्षेत्र में ही निर्मित होते रहे हैं। इस दृष्टि से कोरोना महामारी के बाद अभी हाल ही में बहुत अच्छी खबर आई है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में सेवा क्षेत्र एक बार पुनः मजबूत आधार के रूप में उभर कर सामने आया है। कोरोना महामारी के खंडकाल में सेवा क्षेत्र ही सबसे अधिक बुरे तौर पर प्रभावित हुआ था एवं इसी क्षेत्र में ही रोजगार के सबसे अधिक अवसर प्रभावित हुए थे। परंतु, अब सेवा क्षेत्र में तेजी से हुए सुधार की वजह से देश का परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स यानी पीएमआई अगस्त 2022 में 57.2 अंकों पर पहुंच गया है, जो जुलाई 2022 में 55.5 अंकों के स्तर पर था।
आर्थिक गतिविधियों, विशेष रूप से सेवा क्षेत्र में हुए सुधार के चलते भारत में रोजगार भी पिछले 14 वर्षों में सबसे तेज गति से बढ़ा है। सेवा क्षेत्र में व्यापार, होटल और रेस्तरां, परिवहन, भंडारण और संचार आदि से जुड़ी गतिविधियों जैसी कई तरह की अन्य गतिविधियां भी शामिल रहती हैं। वैसे तो उद्योग क्षेत्र एवं कृषि क्षेत्र में भी आर्थिक गतिविधियों में सुधार दृष्टिगोचर है परंतु सेवा क्षेत्र में आए उच्छाल के चलते आज भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुकी है। ब्रिटेन को विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के स्थान से नीचे लाकर भारत अब विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। भारत से आगे अब केवल अमेरिका, चीन, जापान एवं जर्मनी हैं। ऐसी सम्भावना व्यक्त की जा रही है वर्ष 2030 के पूर्व भारत अमेरिका एवं चीन के बाद विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है।
भारतीय अर्थव्यस्था में लगातार तेज गति से हो रही वृद्धि के कारण देश में बेरोजगारी की दर में भी कमी आने लगी है। अप्रेल-जून 2022 तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था ने 13.5 प्रतिशत की विकास दर हासिल की है। जबकि विश्व की अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं जैसे, चीन की इस अवधि में जीडीपी वृद्धि दर 0.4 प्रतिशत रही है, स्पेन में 1.1 प्रतिशत, इटली में 1.0 प्रतिशत, फ्रांस में 0.5 प्रतिशत, जर्मनी में 0.1 प्रतिशत, ब्रिटेन में -0.10 प्रतिशत और अमेरिका में -0.6 प्रतिशत रही है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा जारी एक प्रतिवेदन में बताया गया है कि अप्रैल-जून 2022 तिमाही में भारत में शहरी बेरोजगारी की दर घटकर 7.6 प्रतिशत पर आ गई है, जो जनवरी-मार्च 2022 तिमाही में 8.2 प्रतिशत, अप्रेल-जून 2021 तिमाही में 12.7 प्रतिशत एवं अप्रेल-जून 2020 तिमाही में 8.9 प्रतिशत थी। इस प्रतिवेदन में यह भी बताया गया है कि देश की अर्थव्यवस्था कोरोना महामारी की चपेट से बाहर आ रही है और रोजगार एक बार फिर गति पकड़ रहा है।
उक्त प्रतिवेदन के अतिरिक्त देश के अलग-अलग क्षेत्रों में लोगों को रोजगार दिलाने वाले ‘स्टाफिंग’ उद्योग ने भी भारत में रोजगार के अवसरों को लेकर एक बड़ा दावा किया है। ‘स्टाफिंग’ उद्योग ने 2021-22 में 12.6 लाख कामगारों को जोड़ा है। जिसमें से अस्थायी नौकरियों में महिलाओं की भागीदारी 27 प्रतिशत रही है। अधिकतर रोजगार डिलिवरी सेवाओं के रूप में निर्मित हुए हैं। जिसमें कुल कामगारों की हिस्सेदारी 40 प्रतिशत की रही है। इंडियन स्टाफिंग फेडरेशन (आईएसएफ) के अनुसार, वित्त वर्ष 2020-21 में अस्थायी या काम के हिसाब से निश्चित अवधि के लिए नियुक्त कर्मचारियों की मांग केवल 3.6 प्रतिशत बढ़ी थी। कामगारों को दैनिक उपयोग का सामान बनाने वाली कंपनियों, ई-कॉमर्स और विनिर्माण जैसे क्षेत्रों में अधिक रोजगार मिला है।
केंद्र सरकार अब सेवा क्षेत्र के अलावा उद्योग क्षेत्र विशेष रूप से कपड़ा उद्योग पर भी विशेष ध्यान दे रही है क्योंकि इस क्षेत्र में रोजगार के नए अवसर निर्मित करने की अपार सम्भावनाएं मौजूद हैं। भारत में कपड़ा उद्योग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से केंद्र सरकार देश के विभिन्न हिस्सों में 75 टेक्सटाइल हब की स्थापना करने जा रही है। इससे देश के युवाओं के लिए रोजगार के करोड़ों नए अवसर निर्मित होंगे। वर्तमान में केवल तमिलनाडु का तिरुपुर ही भारत का प्रमुख टेक्सटाइल हब माना जाता है। इस हब में 10,000 से अधिक परिधान निर्माण इकाईयां कार्यरत हैं और इन इकाईयों में 6 लाख से अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं। देशभर में इस उद्योग का आकार 10 लाख करोड़ रुपए से अधिक का है और देश से कपड़े का निर्यात 3.5 लाख करोड़ रुपए का हो रहा हैं। केंद्र सरकार की योजना है कि आगामी 5 वर्षों में टेक्स्टायल हब से 10 लाख करोड़ के कपड़े का निर्यात किया जाय और इस उद्योग के आकर को 20 लाख करोड़ रुपए तक ले जाया जाय।
वित्तीय वर्ष 2021-22 में भारत से वस्त्र और परिधान का निर्यात 41 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए 4,440 करोड़ अमेरिकी डॉलर पर पहुंच गया है, जो अभी तक किसी भी वित्त वर्ष में सबसे अधिक है। कपड़ा उद्योग में विकास एवं रोजगार की सम्भावनाओं को देखते हुए केंद्र सरकार ने कपड़ा क्षेत्र के लिए उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना के अंतर्गत अभी हाल ही में विभिन्न कंपनियों के 61 आवेदनों को मंजूरी दी है। इससे 19,000 करोड़ रुपये से अधिक का नया निवेश इस क्षेत्र में होने जा रहा है। जिससे इस क्षेत्र में 184,917 करोड़ रुपये का नया कारोबार होगा एवं लगभग 2.50 लाख रोजगार के नए अवसर निर्मित होंगे। भारत में तेजी से आगे बढ़ते कपड़ा उद्योग से वर्ष 2030 तक 10,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर तक का निर्यात होने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। इस संदर्भ में विशेष रूप से संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और ऑस्ट्रेलिया से हाल ही में सम्पन्न किए गए मुक्त व्यापार समझौतों से भारत को बहुत लाभ होने की सम्भावना है। इसी प्रकार के समझौते यूरोपीय यूनियन, कनाडा, ब्रिटेन एवं अमेरिका से भी किए जा रहे हैं।
विभिन्न क्षेत्रों (सेवा, उद्योग एवं कृषि) में आर्थिक गतिविधियों के गति पकड़ने के चलते वैश्विक आर्थिक संकट के बीच वैश्विक क्रेडिट रेंटिंग एजेंसी मूडीज ने भारत की क्रेडिट रेटिंग को बरकरार रखा है। मूडीज के अनुसार, भारतीय बैंकिंग प्रणाली की गुणवत्ता में और सुधार होगा क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था अब महामारी के दौर से निकल रही है। भारत के विकास का स्थिर दृष्टिकोण दर्शाता है कि भारत में वित्तीय जोखिम अब कम हो रहे हैं। भारतीय बैंकों के पास पूंजी का पर्याप्त बफर उपलब्ध है, भारतीय बैंकों में तरलता की स्थिति भी संतोषजनक है और भारत में बैंकों तथा गैर-बैंकिंग संस्थानों के लिए वित्तीय जोखिम बहुत कम है। मूडीज ने यह भी कहा है कि वर्तमान में चल रहे वैश्विक आर्थिक संकट का भारत की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव नहीं पड़ेगा एवं भारत में मंदी आने की सम्भावना लगभग शून्य के बराबर है।
सेवा क्षेत्र एवं उद्योग क्षेत्र, विशेष रूप से कपड़ा उद्योग, में तेजी से लगातार हो रहे सुधार के साथ ही भारत अब आधुनिक बैंकिग में भी विश्व गुरू बन गया है। अमेरिका और चीन जैसे देश भी भारत से डिजिटल लेन-देन में पीछे हैं। वर्तमान में जारी वित्त वर्ष 2022-23 में भारत में अभी तक 566 लाख करोड़ रुपए का डिजिटल लेन-देन किया गया है। आज भारतीय डिजिटल बैंकिंग व्यवस्था पूरे विश्व में सबसे अधिक विकसित मानी जा रही है और न केवल विकासशील देश बल्कि विकसित देश भी भारतीय डिजिटल बैंकिग व्यवस्था को अपने देशों में लागू करने के प्रयास कर रहे हैं। भारत में आज प्रतिदिन लगभग 28.4 करोड़ का डिजिटल लेन-देन किया जा रहा है। उक्त वर्णित क्षेत्रों में लगातार हो रहे विकास के चलते एवं चीन के आर्थिक विकास में लगातार आ रही कमी तथा भारत द्वारा कई देशों के साथ सम्पन्न किए जा रहे मुक्त व्यापार समझौतों के कारण भारत से वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यात में तेज गति से वृद्धि होने की सम्भावनाएं बढ़ती जा रही है। जिसके कारण अब यह सोचा जाने लगा है कि अब भारत प्रतिवर्ष 10 प्रतिशत की आर्थिक विकास दर हासिल करने की ओर अग्रसर है।
लेखक आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं
नोट – लेखक द्वारा व्यक्त विचारों से मातृभूमि समाचार का सहमत होना आवश्यक नहीं है.
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