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वैज्ञानिकों ने ग्लोबल वार्मिंग रोकने वाले हिमालयी ग्लेशियरों के मामले में दिए सुझाव

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नई दिल्ली (मा.स.स.). शोधकर्ताओं ने इस रहस्य को सुलझाने की दिशा में महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है कि काराकोरम रेंज में ग्लेशियरों के कुछ हिस्से ग्लोबल वार्मिंग के कारण हिमनदों को पिघलने से क्यों रोक रहे हैं और पूरे विश्व में ग्लेशियरों (हिमनदों) का द्रव्यमान खोने की उस प्रवृत्ति को कैसे झूठला रहे हैं जिसका हिमालय भी कोई अपवाद नहीं है। उन्होंने ‘कराकोरम विसंगति’ नामक इस घटना को पश्चिमी विक्षोभ (डब्‍ल्यूडी) के अभी हाल में हुए पुनरुद्धार के लिए जिम्मेदार ठहराया है।

हिमालय के ग्लेशियरों का भारतीय संदर्भ में विशेष रूप से उन लाखों निवासियों के लिए जो अपनी दैनिक जल आवश्यकताओं के लिए इन बारहमासी नदियों पर निर्भर करते हैं, बहुत महत्व है। ये ग्‍‍लेशियर ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव के कारण तेजी से कम हो रहे हैं। आने वाले दशकों में जल संसाधनों पर दबाव कम करना बहुत जरूरी है। इसके विपरीत, पिछले कुछ दशकों से मध्य कराकोरम के ग्लेशियर आश्चर्यजनक रूप से या तो अपरिवर्तित रहे हैं या उनमें बहुत कम परिवर्तन हुआ है। यह घटना ग्लेशियोलॉजिस्टों को हैरान कर रही है और जलवायु परिवर्तन से इंकार करने वालों को भी इस बारे में कुछ नहीं सूझ रहा है।

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (आईआईएसईआर) भोपाल के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. पंकज कुमार ने इस घटना को बहुत अजीबोगरीब पाया है क्योंकि यह व्यवहार बहुत छोटे क्षेत्र तक ही सीमित पाया गया है, पूरे हिमालय में केवल कुमलुम पर्वतमाला में इसी तरह के रुझान दिखाने का एक और उदाहरण मिलता है। उनकी देखरेख में अभी हाल ही में किए गए एक अध्ययन ने क्षेत्र के अन्य ग्लेशियरों के प्रतिकूल कुछ क्षेत्रों में ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों के विपरीत एक नए सिद्धांत को प्रस्तुत किया गया है।

अमेरिकन मेटियोरोलॉजिकल सोसाइटी के जर्नल ऑफ क्लाइमेट में प्रकाशित एक पेपर में, उनके समूह ने यह दावा किया कि 21वीं सदी के आगमन के बाद से कराकोरम विसंगति उत्‍प्रेरित करने और बनाए रखने में पश्चिमी विक्षोभ का अभी हाल में हुआ पुनरुद्धार बहुत महत्वपूर्ण रहा है। अध्ययन को विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के जलवायु परिवर्तन कार्यक्रम द्वारा भी समर्थन दिया गया था। यह पहली बार हुआ है कि एक अध्ययन उस महत्व को सामने लाया है जो संचय अवधि के दौरान उस डब्लूडी-वर्षा इनपुट को बढ़ाता है जो क्षेत्रीय जलवायु विसंगति को संशोधित करने में भूमिका निभाता है।

डॉ. कुमार के पीएच.डी. छात्र आकिब जावेद और इस अध्ययन के प्रमुख लेखक ने कहा कि  डब्ल्यूडी सर्दियों के दौरान इस क्षेत्र के लिए बर्फबारी के प्राथमिक फीडर हैं। हमारे अध्ययन से यह पता चलता है कि इनका कुल मौसमी हिमपात की मात्रा में लगभग 65 प्रतिशत और कुल मौसमी वर्षा में लगभग 53 प्रतिशत योगदान हैं, जिससे वे आसानी से नमी के सबसे महत्वपूर्ण स्रोत बन जाते हैं। कराकोरम को प्रभावित करने वाले डब्ल्यूडी की वर्षा की तीव्रता में पिछले दो दशकों में लगभग 10 प्रतिशत वृद्धि हुई है, जो केवल क्षेत्रीय विसंगति को बनाए रखने में अपनी भूमिका में बढ़ोत्तरी करती है।

समूह ने पिछले चार दशकों में कराकोरम-हिमालयी क्षेत्र को प्रभावित करने वाले डब्लूडी की एक व्यापक सूची को ट्रैक और संकलित करने के लिए तीन अलग-अलग वैश्विक रीएनालिसिस डेटासेट के लिए एक ट्रैकिंग एल्गोरिदम (रीडिंग विश्वविद्यालय में विकसित) लागू किया है। कराकोरम से गुजरने वाली ट्रेक के विश्लेषण से पता चला है कि बड़े पैमाने पर संतुलन के आकलन में एक महत्वपूर्ण कारक के रूप में बर्फबारी की भूमिका रहती है।

पिछले अध्ययनों में हालांकि वर्षों से विसंगति को स्थापित करने और बनाए रखने में तापमान की भूमिका पर प्रकाश डाला है और ऐसा पहली बार हुआ है कि विसंगतियों को पोषित करने में वर्षा के प्रभाव पर प्रकाश डाला गया है। शोधकर्ताओं ने विसंगति के पोषण में वर्षा के प्रभाव का भी निर्धारण किया है।

वैज्ञानिकों की गणना से यह पता चलता है कि हाल के दशकों में काराकोरम के मुख्य ग्लेशियर क्षेत्रों में हिमपात की मात्रा के डब्ल्यूडी के योगदान में लगभग 27 प्रतिशत बढ़ोत्तरी हुई है, जबकि गैर-डब्ल्यूडी स्रोतों से होने वाली बारिश में लगभग 17 प्रतिशत की कमी आई है जो एक बार फिर उनके दावों को मजबूत करती है।

डॉ. कुमार ने कहा कि यह विसंगति एक हल्की सी लेकिन अ‍परिहार्य देरी की दिशा में एक उम्मीदभरी आशा की किरण प्रदान करती है। विसंगति को नियंत्रित करने में डब्‍ल्‍यूडी की पहचान होने के बाद उनके भविष्य का व्यवहार हिमालय के ग्लेशियरों के भाग्य का अच्छी तरह फैसला कर सकता है।

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