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यूं रुला कर जाना हंसी के ‘गजोधर’ का

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– डॉ घनश्याम बादल

महज 58 साल की कम उम्र में स्टैंडअप कॉमेडी के  किंग राजू श्रीवास्तव 42 दिनों तक एम्स में बीमारी से जूझने के बाद अंततः जिंदगी की लड़ाई हार गए । यह  सच है कि शारीरिक रूप से राजू श्रीवास्तव अब हमारे बीच नहीं रहे हैं और कॉमेडी में गजोधर नाम के बहुत मशहूर पात्र को लाने वाले राजू ने इस रुलाने वाली दुनिया को हंसा कर अलविदा कह दिया है। आज की इस भौतिकतावादी दुनिया में हर आदमी  तनावग्रस्त है और वह हंसी के दो पल ढूंढने के लिए तरसता है ।  बेशक, राजू श्रीवास्तव आम आदमी को हंसने के वे दो पल उपलब्ध कराने वाले एक लोकप्रिय कलाकार थे जिन्होंने स्टैंड अप कॉमेडी को स्टेज पर लाकर हंसी के ऐसे मुद्दे चुने जिनके बारे में उनसे पहले के कलाकार शायद ही कभी सोचते हों।

कानपुर के स्थानीय कवि एवं  सरकारी कर्मचारी रमेश श्रीवास्तव के बेटे राजू के सिर पर बचपन से ही कॉमेडी का भूत सवार था ।  उन्हें हंसने हंसाने का बेहद शौक था और अपने समय के दूसरे कलाकारों की तरह उन्होंने भी बड़े फिल्मी कलाकारों एवं नेताओं की मिमिक्री के साथ ही कॉमेडी की शुरुआत की थी ।  बचपन के दिनों में अपने स्कूल के कार्यक्रमों के लिए एक बहुत जरूरी नाम बन गया था राजू नाम का वह लड़का जो  हर फंक्शन में अपना नाम लिखवाता था । उसे चुना भी जाता था और जब वह स्टेज पर आता था तो सारा सांस्कृतिक कार्यक्रम एक तरफ और राजू की हास्य की फुलझड़ियां एक तरफ रहा करती थीं।

शायद यहीं से राजू ने तय कर लिया था कि उन्हें एक कॉमेडियन ही बनना है ।उनके परिवार में ज्यादातर लोग सरकारी नौकरी करने वाले थे और उनके मां-बाप की भी  इच्छा यही थी लेकिन राजू का तो पहला प्रेम ही कॉमेडी  था जिसके चलते उनके मां-बाप उन पर नाराज रहते थे ।  एक भेंट में अपने ऊपर भी व्यंग्य करने से न चूकने वाले राजू ने बताया था कि वह मुंबई अपने मां के तानों की वजह से गए थे और सोचा था वहां जाकर कॉमेडी के क्षेत्र में स्थापित हो जाएंगे । लेकिन यह इतना आसान नहीं था और उन्हें अपना खर्चा चलाने के लिए ऑटो तक चलाना पड़ा था। अंततः उनका संघर्ष रंग भी लाया । फिल्में तो उन्होंने गिनती की ही की और भारतीय फिल्मों के परिवेश के हिसाब से उन्हें रोल भी छोटे  मगर राजू उसमें भी लोगों को हंसाने में सफल हुए ।

हास्य का यह ‘गजोधर’ मजबूरी में स्टेज शो करने लगा था । लेकिन राजू की प्रतिभा गजब की थी । उनके पास एक पैनी नज़र थी जो बहुत दूर देखने के बजाय अपने आसपास ज्यादा देखती थी और वहीं से हास्य तलाश भी करती थी । इसीलिए जब  शो लाफ्टर चैलेंज में उनकी एंट्री हुई तो वहां पहले से ही स्थापित  दूसरे कलाकार मिमिक्री के माध्यम से या बड़े-बड़े फिल्म स्टारों की नकल करके लोगों को हंसाने का प्रयास कर रहे थे मगर सिर के पीछे दोनों हाथ लगा कर खड़े होने का राजू का गजोंधरी अंदाज और रेल, मेट्रो, साइकिल , जहाज  ट्रेन के हैंडल और भी न जाने कैसी-कैसी चीजों में हास्य ढूंढने की उनकी दक्षता दर्शकों को लोटपोट कर दी थी । बस, यहीं से राजू ने हास्य और व्यंग्य का समावेश करके नई कॉमेडी को गढ़ने का काम शुरू कर नया मुकाम हासिल किया । उस शो में मजे की बात यह थी कि राजू विजेता घोषित नहीं किए गए लेकिन ऑडियंस सर्वे में वे सर्वाधिक लोकप्रिय रहे और उन्हें ‘जनता का कॉमेडी किंग’ खिताब दिया गया ।

राजू श्रीवास्तव एक बड़ा कलाकार होने के बावजूद सहज और सरल थे । जोड़-तोड़ में उनका नाम शायद ही कभी आया हो । महत्वकांक्षी भी वे बहुत थे शायद उनकी इसी महत्वाकांक्षा को देखते हुए समाजवादी पार्टी ने उन्हें 2014 के इलेक्शन में कानपुर से अपना प्रत्याशी घोषित किया था लेकिन हकीकत को पहचानने वाले राजू ने विनम्रता पूर्वक टिकट वापस कर दिया था हालांकि बाद में में भाजपा में शामिल हुए और उन्हें इसका पुरस्कार भी मिला। कॉमेडी एवं फिल्मी क्षेत्र में राजू के अनेकों मित्र रहे । राजू की मौत से इन दोस्तों को गहरा सदमा लगना स्वाभाविक है । भले ही सिल्वर स्क्रीन का क्षेत्र बहुत दिनों तक किसी को याद नहीं करता और अपनी ही गति से चलता रहता है लेकिन कम से कम कॉमेडी का क्षेत्र तो राजू को भुला नहीं पाएगा ।

अब राजू ने जीवन में दोस्त बनाने के साथ ही अपने  हास्य के केंद्रीय पात्र गजोधर के भी दोस्त  क्रिएट किए थे जिनमें संकटा और बिरजू काफी लोकप्रिय रहे । राजू श्रीवास्तव मस्त मौला होने के साथ-साथ बहुत हिम्मत वाले कलाकार भी थे जहां कहीं से भी उन्हें हास्य की संभावना मिलती उस क्षेत्र का गहरा अध्ययन करते थे। शायद कोई ही ऐसा राजनेता रहा हो जिसकी उन्होंने मिमिक्री के माध्यम से खिल्ली न उड़ाई हो मगर शायद ही ऐसा कोई राजनेता रहा हो जिसने राजू की कॉमेडी का बुरा माना हो। राजू श्रीवास्तव दीवारों की तरह नहीं पुल की तरह काम करना चाहते थे इसी क्रम में जब कपिल शर्मा एवं सुनील ग्रोवर के बीच झगड़ा हो गया तब उन्होंने काफी प्रयास भी किया कि दोनों आपस में फिर मिल जाएं लेकिन इसमें वे कामयाब नहीं हो सके ।

राजू को पिछली 10 अगस्त को एक जिम में कसरत करते हुए उन्हें दिल का दौरा पड़ा था तुरंत ही एम्स में भर्ती भी किया गया बीच-बीच में उनके स्वास्थ्य में सुधार की भी खबरें आती रही और एक बार उनकी मौत की भी खबर आई लेकिन दोनों ही खबरें झूठी निकली ‌।  राजू एक ही नजर में जहां हास्य को पहचानते थे वही आदमियों को पहचानने की भी उनकी गहरी क्षमता थी ।  अपनी पत्नी शिखा को उन्होंने अपने भाई की शादी में पहली ही नजर में दिल दे दिया था । उनके बेटे आयुष्मान सितार वादन में प्रयास कर रहे हैं और बेटी अंतरा एक असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर फिल्मी क्षेत्र में कार्यरत है।

बेशक, राजू श्रीवास्तव का परिवार और उनके समर्थक उन्हें बेहद मिस करेंगे। अब मंचो पर राजू का ‘गजोधर’ हंसाने नहीं आएगा । शायद ‘संकटा’ और ‘बिरजू’ भी किसी कोने में खड़े होकर आंसू बहा रहे होंगे । राजू श्रीवास्तव  का नाम समकालीन बड़े हास्य कलाकारों में शुमार है ‌। राजू श्रीवास्तव लोगों के होठों पर हंसी रख कर गए हैं तो निश्चित ही दूसरे लोक में भी उनका स्वागत एक मुस्कान के साथ ही हो रहा होगा ।चुटीले धारदार व्यंग्य एवं मासूमियत भरी हंसी की मजाकिया फुहारों के लिए तुम्हें सलाम नमन एवं श्रद्धा समर्पण कॉमेडी किंग गजोधर राजू श्रीवास्तव।

लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं

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