नई दिल्ली (मा.स.स.). यूं तो स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म एनीमेशन फिल्मों के लिए वरदान होते हैं, लेकिन एनीमेशन फिल्म निर्माण में सबसे महान सदाबहार प्रवृत्ति भावनात्मक रूप से कहानी को सुनाना होती है, यह बात कुंग फू पांडा और द लिटिल प्रिंस जैसी फिल्मों के प्रसिद्ध अमेरिकी फिल्म निर्माता और एनिमेटर मार्क ओसबोर्न ने कही। वह 53वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के दौरान ‘अभिव्यक्ति के एक उपकरण के रूप में एनीमेशन’ विषय पर मास्टर क्लास सत्र का नेतृत्व कर रहे थे।
उन्होंने कहा, “ओटीटी प्लेटफार्मों के उद्भव के साथ ही दुनिया भर के दर्शकों के लिए सामग्री तैयार करना मानक बनने जा रहा है। लेकिन अंतत: फिल्म को लोगों से जुड़ने और उनके दिलों को छूने की जरूरत होती है’। उन्होंने कहा कि इस प्रकार की सामग्री तैयार करने के लिए यह पता लगाना बेहद महत्वपूर्ण है कि आपके लिए क्या सार्थक है। उन्होंने स्पष्ट किया, “यदि यह आपके लिए महत्वपूर्ण है और आप इस बारे में ईमानदार हैं, तो आपको आपके दर्शक मिल जाएंगे। ईमानदारी नया दृष्टिकोण निर्मित करती है। “
एनिमेशन की ताकत पर बल देते हुए मार्क ने कहा कि एनिमेशन वैविध्यपूर्ण और विशाल माध्यम है, जो किसी भी कहानी को अभिव्यक्त कर सकता है। अपनी बात को बारीकी से समझाते हुए उन्होंने कहा, “किसी को किसी ऐसी चीज़ के बारे में महसूस कराना, जिसका कोई वजूद ही नहीं है, वास्तव में शानदार है। यह पुनर्लेखन, पुनर्निर्माण और प्रयोग की एक निरंतर प्रक्रिया का परिणाम है। हमें एनिमेशन के जादू का अहसास उस समय होता है, जब यह अंततः जीवंत रूप अख्तियार करता है।”
मार्क ओसबोर्न ने यह भी राय प्रकट की कि एनीमेशन प्रोजेक्ट को किसी पटकथा के स्वरूप में अंतिम रूप नहीं दिया जा सकता। उन्होंने कहा, “जहां तक एनिमेशन की बात है तो पटकथा अंतिम रूप नहीं है। हमेशा अंतिम क्षण तक सुधार की गुंजाइश बनी रहती है। यह विकसित होगा और बदलेगा। दृश्य माध्यम होने के कारण, हमें दृश्य माध्यम को प्रोजेक्ट पर बहुत अधिक काम करने की अनुमति देनी पड़ती है”। प्रश्नों के जवाब में मास्टर एनिमेटर ने कहा कि हरेक एनिमेटर को अपने भीतर की कहानियों को उजागर करने के लिए एक सपोर्ट सिस्टम की जरूरत होती है। उन्होंने जोर देकर कहा, “कलाकारों और रचनाकारों की मदद करने से चमत्कार हो सकते हैं। कलाकारों को एनीमेशन सृजित करने के लिए ऐसी जगह की जरूरत होती है, जहां वह आश्वस्त हो सके।”
महत्वाकांक्षी एनीमेशन निर्माताओं को सतर्क करते हुए मार्क ने कहा कि हालांकि मास्टर्स से प्रेरणा लेना महत्वपूर्ण है, लेकिन इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उनके काम की नकल न की जाए। “आपको अपने स्वयं के विचारों की खोज करके एक संतुलन तलाशना होगा। प्रत्येक व्यक्ति दृष्टिकोण और जीवन का अनुभव अलग-अलग होगा। इस निजी यात्रा और अनुभव को फिल्म निर्माण में लाना सर्वोपरि है । मार्क ओसबोर्न ने एंटोनी डी सेंट-एक्सुप्री द्वारा लिखित उपन्यास को अनुकूलित करके द लिटिल प्रिंस फिल्म का निर्माण करने की अपनी यात्रा के बारे में भी विस्तार से बताया। सत्र का संचालन प्रोसेनजीत गांगुली ने किया।
मास्टरक्लास और इन-कान्वर्सेशन सत्र सत्यजीत रे फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट (एसआरएफटीआई), एनएफडीसी, फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एफटीआईआई) और ईएसजी द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किए जा रहे हैं। छात्रों और सिने प्रेमियों को प्रोत्साहित करने के लिए फिल्म निर्माण के हर पहलू से रुबरु कराने के लिए इस वर्ष मास्टरक्लास और इन-कान्वर्सेशन के कुल 23 सत्रों का आयोजन किया जा रहा है।