– डॉ० घनश्याम बादल
हिंदुस्तानी मिट्टी में ही बलिदान के बीज मिले हुए हैं और इस मिट्टी से एक से बढ़कर एक देशभक्त और राष्ट्रवादी पैदा हुए हैं । जिनमें हिंदू भी हैं और मुसलमान भी सिख भी हैं और पारसी भी अगड़े भी हैं और पिछड़े भी मगर इनमें सबसे चमकदार नाम है सरदार भगत सिंह का। 1907 में पंजाब के लायलपुर में समाज सुधारक सरदार अर्जुन सिंह, के बेटे सरदार किशन सिंह के घर विद्यावती की कोख से जन्मे भगत सिंह के जन्म के समय पिता और दोनों चाचा जेल में बंद थे, पर इनके पैदा होते ही वें तीनो उसी दिन छूट गए इस कारण भगत सिंह को परिवार में बड़ा भाग्यशाली माना गया इस कारण दादी जैकौर ने अपने पोते भगतसिंह को प्यार से ‘भागोवाला’ कहती थीं।
1919 में जलियावाला बाग की घटना से भगत सिंह क्रोध से तिलमिला उठे और घटना के अगले दिन वें स्कूल जाने के बहाने सीधे जलियांवाला बाग पहुंचे और खून से लथपथ मिट्टी को उस बोतल में भर लिया जिसे वो अपने साथ लाये थे ,वो उस मिट्टी पर प्रतिदिन रोज फूल माला चढाते थे। कॉलेज में भगत सिंह का परिचय प्रमुख रूप से उग्र विचारों के सुखदेव, भगवती चरण वोहरा, यशपाल, विजयकुमार, छैलबिहारी ,झंडा सिंह और जयगोपाल से हुआ । सुखदेव और भगवतीचरण भगत सिंह के सबसे घनिष्ट मित्र थे ,भगत सिंह और सुखदेव तो एक प्राण दो देह हो गये , तीनो मित्रों पर समाजवाद और कम्युनिज़्म व,मार्क्स की पुस्तकों का गहरा प्रभाव हुआ ।
समाजवादी विचारों के पोषक
भगत सिंह के समाजवाद के विचार से आजाद भी काफी प्रभावित हुए जल्दी ही भगत सिंह आजाद के प्रिय बन गए उस समय तक रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाकुल्ला खान शहीद हो चुके थे और आजाद टूट से गए थे किन्तु भगत सिंह ने उन्हें हिम्मत दी ,और अपने मित्रों सुखदेव व राजगुरु से मिलवाया जो कुशल निशानेबाज और बहुत साहसी थे , भगत सिंह ,सुखदेव ,आजाद और राजगुरु ने लाला लाजपत राय की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए सांडर्स की हत्या कर दी जिसने पूरे देश में खलबली मचा दी और पुलिस भगत सिंह ,आजाद और राजगुरु को ढूँढने लगी ,भगत सिंह ने अपनी दाढ़ी सफाचट करवा ली और विलायती टोपी ,व ओवरकोट पहन कर विलायती बन गए और भगवती चरण की पत्नी दुर्गा भाभी उनकी पत्नी के वेश में और राजगुरु नौकर के वेश में लाहौर से सुरक्षित निकल गए।भगत सिंहं फ्रांस के क्रांतिकारी वेलां से बहुत प्रभावित थे उन्होंने वेलां की तरह संसद में बम फोड़ कर सबको चौंका देने की सोची। आजाद को भी योजना पसंद आई पर वें भगत सिंह को इस काम पर भेजना नहीं चाहते थे किन्तु भगत सिंह की हठ के आगे विवश हो कर स्वीकृति देनी पड़ी । भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल 1929 को संसद में बम फेंकने के बाद भागने की बजाय अपने को गिरफ्तार करवाया ताकि वो मुकदमे के माध्यम से अंग्रेजी हुकूमत को सख्त संदेश दे सकें ।
संसद में फोड़ा बम
उन्होने रक्तपात से बचने के लिए जानबूझकर संसद में खाली जगह दो बम फोड़े । बड़े जोर से -इन्कलाब जिंदाबाद! और साम्राज्यवाद का नाश हो ! के नारे लगाए और उसके बाद कुछ पर्चे फेंके जिनमे लिखा था -”बहरों को सुनाने के लिए लिए धमाके की आवश्कयता होती है ।” उसके बाद उन्होंने अपने आप को गिरफ्तार करवाया। इस घटना ने पूरे भारत और वायसराय के साथ इंग्लैंड को भी हिला कर रख दिया और भगत सिंह और दत्त नौजवानों की प्रेरणा बन गए और उनका दिया गया नारा ‘इन्कलाब जिंदाबाद’ राष्ट्रीय नारा बन गया । भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त पर मुकदमा चला और मुकदमे में भगत सिंह ने अपना बयान दिया – ”हमने बम किसी की जान लेने के लिए नहीं बल्कि अंग्रेजी हुकूमत को यह चेतावनी देने के लिए फोड़ा है कि भारत अब जाग रहा है, तुम हमे मार सकते हो हमारे विचारों को नहीं. हैं जिस प्रकार आयरलैंड और फ्रांस स्वतंत्र हुआ उसी प्रकार भारत भी स्वतंत्र हो कर रहेगा और भारत के स्वतंत्र होने तक नौजवान बार बार अपनी जान देते रहेंगे और फांसी के तख्ते पर चिल्ला कर कहेंगे -इन्कलाब जिंदाबाद ! भगत सिंह और दत्त के इस बयान ने उन्हें जनता का नायक बना दिया ।
फांसी पर हंसते–हंसते चढ़े
अंग्रेजों ने भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को बम फेंकने के अपराध में आजीवन कारावास का दंड दिया पर जय गोपाल सरकारी गवाह बन गया। भगत सिंह और उनके साथियों ने मुकदमे को बहुत लम्बा खींचा ,कभी भगत सिंह ऐसे ऐसे बयान दे देते जिससे जज तिलमिला उठता था। अंग्रेजों ने भगत सिंह और सुखदेव को भी एक दूसरी के प्रति भड़काने का प्रयत्न किया लेकिन वें विफल रहे । भगत सिंह और उनके साथियों ने जेल में क्रांतिकारियों पर हो रहे अत्याचारों के विरोध में भूख हड़ताल की , हड़ताल तोड़ने की कई कोशिश की लेकिन असफल हुई , इधर जनता का गुस्सा अंग्रेजों के प्रति और क्रांतिकारियों के प्रति प्रेम बढ़ता जा रहा था, पूरे देश में भूख हड़ताल शुरू कर दी जिससे अंग्रेजी हुकूमत बहुत डर गयी, जेल में भूख हड़ताल के दौरान क्रांतिकारी जतिन दास की मृत्यु ने और बगावत पैदा कर दी अंतत: सरकार को जेल की दशा सुधारनी पड़ी। लाहौर षड्यंत्र केस में जयगोपाल की गवाही बहुत खतनाक सिद्ध हुई । भगत सिंह ,सुखदेव और राजगुरु को मृत्युदंड मिला और उनके अन्य साथियों को काला पानी की लम्बी सजाएँ ।
इंकलाब जिंदाबाद का नारा दिया
फांसी के लिए 24 मार्च 1931 की तारीख तय हुई पर चालाकी के साथ जनता के आक्रोष के डर से अंग्रेजों ने 23 मार्च को शाम 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह ,सुखदेव और राजगुरु फांसी के तख्ते पर चढ़ा दिया गया, मरने तक भी तीनों की ज़बान पर एक ही नारा था- -इन्कलाब जिंदाबाद ! इन्कलाब जिंदाबाद ! इन्कलाब जिंदाबाद !
लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं.
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