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कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने रद्द किया धर्मांतरण विरोधी कानून

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बेंगलुरु. कर्नाटक में निजाम बदलने के साथ ही पुराने कानूनों को पलटने का काम भी शुरू हो गया है। महीना बीतते ही कांग्रेस सरकार ने पूर्व की भाजपा सरकार द्वारा लाए गए धर्मांतरण के कानून को रद्द करने की न सिर्फ पूरी योजना बना ली है बल्कि कर्नाटक कैबिनेट ने इस पर मुहर भी लगा दी है। जल्दी ही इस प्रस्ताव को विधानसभा में लाया जाएगा। साथ ही कैबिनेट ने सर्वसम्मति से स्कूली पाठ्यक्रम से आरएसएस के संस्थापक हेडगेवार से संबंधित चैप्टर भी हटाने का फैसला किया है।

हेडगेवार के चैप्टर को हटाया गया
कर्नाटक के शिक्षा मंत्री मधु बंगारप्पा ने बताया कि राज्य में स्कूली पाठ्य पुस्तकों से आरएसएस संस्थापक केबी हेडगेवार और अन्य के चैप्टर को हटाने का फैसला किया है। उनके साथ ही मंत्री एचके पाटिल ने बताया है कि राज्य मंत्रिमंडल ने स्कूलों और कॉलेजों में प्रेयर के साथ संविधान की प्रस्तावना को पढ़ना अनिवार्य करने का फैसला किया है। साथ ही कैबिनेट बैठक में कृषि उत्पाद बाजार समिति अधिनियम में संशोधन करने पर भी निर्णय लिया गया है। इस कदम का उद्देश्य पुराने कानून को बहाल करना है। उन्होंने यह भी कहा कि आज कैबिनेट की बैठक में पाठ्यपुस्तकों के पुनरीक्षण पर भी चर्चा हुई। कानून और संसदीय कार्य मंत्री ने आगे कहा धर्मांतरण के कानून को रद्द करने के संबंध में प्रस्ताव तीन जुलाई से शुरू होने वाले सत्र के दौरान पेश किया जाएगा।

भाजपा के नेतृत्व वाली पूर्व सरकार लाई थी धर्मांतरण कानून 
गौरतलब है कि पिछले साल पूर्व सरकार कर्नाटक में धर्मांतरण कानून लाई थी। तब भी कांग्रेस और जेडीएस ने भाजपा सरकार द्वारा लाए गए कानून के खिलाफ विरोध दर्ज कराया था। भाजपा सरकार ने विधानसभा से तो पिछले साल दिसंबर में ‘कर्नाटक प्रोटेक्शन ऑफ राइट टू फ्रीडम ऑफ रिलीजन बिल’ पारित किया था। विधान परिषद में उस वक्त बहुमत न होने की वजह से यह बिल अटक गया था। इस वजह से सरकार को विधेयक को प्रभाव में लाने के लिए मई में अध्यादेश लाना पड़ा था।

तब तत्कालीन गृह मंत्री ने तर्क दिया था कि राज्य में प्रलोभन देकर और जबरन धर्म परिवर्तन की घटनाएं आम हो गई हैं। ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए ये कानून लाया गया है। उन्होंने यह भी कहा था कि यह विधेयक किसी की धार्मिक आजादी नहीं छीनता। कोई भी व्यक्ति अपने अनुसार धर्म चुन सकता है, लेकिन किसी दबाव अथवा प्रलोभन में नहीं। यह अधिनियम धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार की सुरक्षा करता है। साथ ही गलत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन या किसी भी धोखाधड़ी के माध्यम से एक धर्म से दूसरे धर्म में गैरकानूनी रूपांतरण पर रोक लगाने का प्रावधान करता है। इसके अतंर्गत 25,000 रुपये के जुर्माने के साथ तीन से पांच साल की कैद की सजा का प्रावधान है। वहीं, नाबालिगों, महिलाओं, अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के लोगों के संबंध में  अपराधियों को तीन से 10 साल की कैद और 50,000 रुपये के जुर्माने का प्रावधान है।

साभार : अमर उजाला

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