नई दिल्ली. भारत और कनाडा के बीच रिश्तों (India-Canada Relations) में खालिस्तान को लेकर तनाव बढ़ता जा रहा है। भारत इस बात के लिए तैयार है कि जस्टिन ट्रूडो (Justin Trudeau) के पीएम के रूप में शेष कार्यकाल के दौरान कनाडा के साथ व्यापार वार्ता रुकी रहे। इससे पहले भी सरकार ने खालिस्तान (Khalistan) समर्थक तत्वों पर कनाडाई सरकार के रुख पर चिंता व्यक्त की थी। लेकिन व्यापार को राजनीति से अलग करने का विकल्प चुना था। जब कनाडाई पीएम दिल्ली पहुंचे, तब सरकार ने स्पष्ट रूप से अपनी गहरी चिंताएं बता दी थीं।
बातचीत की टेबल पर वापस आना मुश्किल
संसद में कनाडाई पीएम के बयान के बाद, सरकारी अधिकारियों का मानना है कि 2025 में समाप्त होने वाले उनके कार्यकाल के दौरान बातचीत की टेबल पर वापस आना मुश्किल होगा। हालांकि, ट्रूडो ने मंगलवार तक अपना रुख नरम कर दिया है। उन्होंने कहा कि वे इस मुद्दे को और ‘उकसाना या बढ़ाना’ नहीं चाहते हैं।
2023 के आखिर तक डील पूरी होने की थी उम्मीद
हालांकि, व्यापार वार्ता काफी समय से चल रही है। दोनों पक्षों ने बातचीत को तेज कर दिया था और 2023 के आखिर तक डील पूरी करने की उम्मीद कर रहे थे। इसी बीच ट्रूडो ने अलगाववादियों के साथ जाने का फैसला नहीं किया, जिसे घरेलू चुनावी लाभ के लिए मतदाताओं के एक वर्ग को लुभाने के प्रयास के रूप में देखा गया है।
भारत को डील से कोई बहुत बड़ा फायदा नहीं
भारत के लिए कनाडा के साथ व्यापार समझौते से होने वाले लाभ सीमित हैं। क्योंकि निर्यात के एक बड़े हिस्से पर उच्च शुल्क नहीं लगता है। हालांकि, कुछ क्षेत्र हैं, जैसे कपड़ा, जहां सीमा शुल्क में कटौती से भारतीय निर्यात को कुछ लाभ प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
दोनों देशों के बीच बैलेंस्ड है व्यापार
एक अन्य प्रमुख लाभ प्रोफेशनल्स और स्टूडेंट्स की आवाजाही के मामले में था। कनाडाई नेगोशिएटर्स के लिए, डेयरी और कृषि उत्पाद प्रमुख एरिया थे। देश में कृषि क्षेत्र की संवेदनशीलताओं को देखते हुए भारत सरकार को इस पर कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। इस तरह दोनों पक्ष द्विपक्षीय व्यापार को बेहतर बनाने के लिए एक डील पर काम करने में लगे हुए थे। इसका अनुमान पिछले वित्त वर्ष के दौरान 8.2 अरब डॉलर का था। जिसमें कनाडा भारत का 35वां सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार था। दोनों देशों के बीच व्यापार समान रूप से संतुलित है।
कनाडाई पेंशन फंड करते हैं यहां निवेश
भारत का कनाडाई पेंशन फंडों से निवेश एक आकर्षण रहा है। क्योंकि देश परियोजनाओं के लिए लॉन्गटर्म फंडिंग की तलाश में रहता है। इस निवेश में मुनाफा जनरेट करने में थोड़ा टाइम लगता है। पिछले साल मार्च में दोनों देशों ने एक अंतरिम डील पर बातचीत फिर से शुरू करने का फैसला किया था, जिसे आधिकारिक रूप से अर्ली प्रोग्रेस ट्रेड एग्रीमेंट के रूप में डब किया गया था। राजनीतिक मुद्दों पर गतिरोध पैदा होने से पहले आधा दर्जन से अधिक दौर की बातचीत हो चुकी थी। भारत के पिछले हफ्ते के बयान के बाद कनाडा ने कहा कि वह अक्टूबर के लिए प्लान्ड ट्रेड मिशन को स्थगित कर रहा है।
साभार : नवभारत टाइम्स
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