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श्रीलंका को नहीं रहा चीन पर भरोसा, इसलिए भारत से बढ़ा रहा है संबंध

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कोलंबो. श्रीलंका के राष्‍ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे भारत की यात्रा पर आए थे। उन्‍होंने शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ कई मसलों पर अहम वार्ता की। साथ ही दोनों नेताओं ने समग्र आर्थिक और रणनीतिक सहयोग बढ़ाने पर जोर दिया। पिछले साल असाधारण आर्थिक संकट से प्रभावित होने के बाद से श्रीलंका के किसी सीनियर लीडर की यह पहली भारत यात्रा थी। चीन जो श्रीलंका को कई तरह से कर्ज दे चुका है, वहां न जाकर भारत आना विक्रमसिंघे का एक अहम रणनीतिक फैसला माना जा रहा है।

भारत ने की श्रीलंका की मदद
रानिल विक्रमसिंघे ने बतौर राष्‍ट्रपति अपना एक साल पूरा कर लिया है। कुछ लोग मान रहे हैं कि उन्‍होंने भारत आने में देरी कर दी। वहीं कुछ लोग उनकी यात्रा को भू-राजनीति के असर के बड़े नतीजे के तौर पर देखते हैं। आर्थिक संकट में फंसे श्रीलंक को भारत ने बड़े स्‍तर पर मदद की थी। जानकारों के मुताबिक भारत रक्षा और विदेश नीति में अब आजादी से फैसले ले रहा है। वह मानता है कि वह अपने आप में एक उभरती वैश्विक व्यवस्था में शक्ति का केंद्र है और उसे शक्ति के दूसरे क्षेत्रों से से जुड़ने की कोई जरूरत नहीं है। इालिए विक्रमसिंघे भारत को तवज्‍जो दे रहे हैं।

चीन ने दिया झूठा भरोसा
भारत की तरफ से श्रीलंका को करीब चार अरब डॉलर की वित्तीय सहायता दी गई थी। जबकि चीन की तरफ से श्रीलंका को देश के अब तक के सबसे खराब आर्थिक संकट से बाहर निकालने का सिर्फ भरोसा दिलाया जा रहा था। इसके अलावा चीन ने श्रीलंका पर कई ऐसे प्रोजेक्‍ट्स थोप दिए हैं जिनका कोई नतीजा ही नहीं निकल रहा है। भारत ने श्रीलंका को आर्थिक मदद तो दी ही साथ ही साथ अंतरराष्‍ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से 2.9 अरब डॉलर का बेलआउट पैकेज हासिल करने में सहायता की गारंटी भी दी।

चीन नहीं भारत श्रीलंका का दोस्‍त
इस तरह की सहायता से दुनिया को एक बड़ा राजनीतिक संकेत गया कि श्रीलंका का असली सदाबहार दोस्त चीन नहीं, बल्कि भारत है। भारत से आने वाले डॉलर ने ईंधन और गैस जैसी जरूरी सामानों की लंबी लाइनों को खत्‍म करने में और बढ़ते खाद्य संकट को दूर करने में मदद की। श्रीलंका की सरकार दिवालियेपन की तरफ बढ़ रही थी जब भारत की तरफ से चार अरब डॉलर की मदद उसे मिली। अगर भारत श्रीलंका के लिए आईएमएफ से तीन कई अरब डॉलर वाले कर्ज को सुरक्षित करने और विदेशी ऋण के पुनर्गठन को आगे बढ़ाने में मदद की गई।

संबंधों के 75 साल
विशेषज्ञों के मुताबिक अगर भारत यह मदद नहीं करता तो फिर श्रीलंका बुरी स्थिति में होता। आज भारत की पड़ोसियों के लिए बनी फर्स्‍ट और एक्‍ट ईस्‍ट पॉलिसी काफी आक्रामक है। वह इसे लागू करने और अपने पड़ोसियों पर शर्तें तय करने के लिए राजनीतिक, सैन्य और कूटनीतिक रूप से पहले से कहीं अधिक मजबूत है। भारत-श्रीलंका संबंधों के बीच राजनयिक संबंधों के 75 साल पूरे हो रहे हैं।

साभार : नवभारत टाइम्स

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