नई दिल्ली (मा.स.स.). गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र भाई पटेल, नागालैंड के राज्यपाल एल. गणेशन, झारखंड के राज्यपाल सी पी राधाकृष्णन, केंद्रीय मंत्रिमंडल में मेरे सहयोगी भाई पुरुषोत्तम रुपाला, एल मुरुगन, मीनाक्षी लेखी, इस कार्यक्रम से जुड़े अन्य महानुभाव, देवियों और सज्जनों, सौराष्ट्र तमिळ् संगमम्, निगळ्-चियिल्, पंगेर्-क वन्दिरुक्कुम्, तमिळग सोन्दन्गळ् अनैवरैयुम्, वरुग वरुग एन वरवेरकिरेन्। उन्गळ् अनैवरैयुम्, गुजरात मण्णिल्, इंड्रु, संदित्तदिल् पेरु मगिळ्ची। ये बात सही है कि अतिथि सत्कार का सुख बहुत अनूठा होता है। लेकिन, जब कोई अपना ही वर्षों बाद लौटकर घर आता है, तो उस सुख की, उस उत्साह और उल्लास की बात ही कुछ अलग होती है। आज उसी गद्गद् हृदय से सौराष्ट्र का हर एक जन, तमिलनाडु से आए अपने भाइयों और बहनों के स्वागत में पलकें बिछाए है। आज उसी गद्गद् हृदय से मैं भी तमिलनाडु से आए मेरे अपनों के बीच virtually उपस्थित हूँ।
मुझे याद है, जब मैं मुख्यमंत्री था, तब 2010 में मैंने मदुरई में ऐसे ही भव्य सौराष्ट्र संगम का आयोजन किया था। उस आयोजन में हमारे 50 हजार से अधिक सौराष्ट्र के भाई-बहन शामिल होने आए थे। और आज, सौराष्ट्र की धरती पर स्नेह और अपनेपन की वैसी ही लहरें दिख रही हैं। इतनी बड़ी संख्या में आप सब तमिलनाडु से अपने पूर्वजों की धरती पर आए हैं, अपने घर आए हैं। आपके चेहरों की खुशी देखकर मैं कह सकता हूँ, आप यहाँ से ढेरों यादें और भावुक अनुभव अपने साथ लेकर जाएंगे। आपने सौराष्ट्र के पर्यटन का भी भरपूर आनंद लिया है। सौराष्ट्र से तमिलनाडु तक देश को जोड़ने वाले सरदार पटेल की स्टेचू ऑफ यूनिटी के, उसके भी आपने दर्शन किए हैं। यानी, अतीत की अनमोल स्मृतियाँ, वर्तमान का अपनत्व और अनुभव, और भविष्य के लिए संकल्प और प्रेरणाएं, ‘सौराष्ट्र-तमिल संगमम्’ उसमें हम इन सभी का एक साथ दर्शन कर रहे हैं। मैं इस अद्भुत आयोजन के लिए सौराष्ट्र और तमिलनाडु के सभी लोगों को बधाई देता हूँ, आप सभी का अभिनंदन करता हूँ।
आज आजादी के अमृतकाल में हम सौराष्ट्र-तमिल संगमम् जैसे सांस्कृतिक आयोजनों की एक नई परंपरा के गवाह बन रहे हैं। आज से कुछ महीने पहले ही बनारस में काशी-तमिल संगमम् का आयोजन हुआ था, जिसकी पूरे देश में खूब चर्चा हुई थी। उसके बाद देश के अलग-अलग हिस्सों में इस तरह के कार्यक्रमों के कई स्वतः स्फूर्त प्रयास शुरू हुये हैं। और, आज सौराष्ट्र की धरती पर एक बार फिर हम भारत की दो प्राचीन धाराओं का संगम होता देख रहे हैं।
‘सौराष्ट्र तमिल संगमम्’ का ये आयोजन केवल गुजरात और तमिलनाडु का संगम नहीं है। ये देवी मीनाक्षी और देवी पार्वती के रूप में ‘एक शक्ति’ की उपासना का उत्सव भी है। ये भगवान सोमनाथ और भगवान रामनाथ के रूप में ‘एक शिव’ की भावना का उत्सव भी है। ये संगमम् नागेश्वर और सुंदरेश्वर की धरती का संगम है। ये श्रीकृष्ण और रंगनाथ की धरती का संगम है। ये संगम है- नर्मदा और वैगई का। ये संगम है- डांडिया और कोलाट्टम का! ये संगम है- द्वारिका और मदुरई जैसी पवित्र पुरियों की परम्पराओं का! और, ये सौराष्ट्र-तमिल संगमम् संगम है- सरदार पटेल और सुब्रमण्यम भारती के राष्ट्र-प्रथम से ओतप्रोत संकल्प का! हमें इन संकल्पों को लेकर आगे बढ़ना है। हमें इस सांस्कृतिक विरासत को लेकर राष्ट्र निर्माण के लिए आगे बढ़ना है।
भारत विविधता को विशेषता के रूप में जीने वाला देश है। हम विविधता को सेलिब्रेट करने वाले लोग हैं। हम अलग-अलग भाषाओं और बोलियों को, अलग-अलग कलाओं और विधाओं को सेलिब्रेट करते हैं। हमारी आस्था से ले करके हमारे अध्यात्म तक, हर जगह विविधता है। हम शिव की पूजा करते हैं, लेकिन द्वादश ज्योतिर्लिंगों में पूजा पद्धति की अपनी विविधताएं हैं। हम ब्रह्म का भी ‘एको अहम् बहु स्याम’ के तौर पर अलग-अलग रूपों में अनुसंधान करते हैं, उसकी उपासना करते हैं। हम ‘गंगे च यमुने चैव, गोदावरी सरस्वती’ जैसे मंत्रों में देश की अलग-अलग नदियों को नमन करते हैं। ये विविधता हमें बांटती नहीं, बल्कि हमारे बंधन को, हमारे संबंधों को मजबूत बनाती है। क्योंकि हम जानते हैं, अलग-अलग धाराएं जब एक साथ आती हैं तो संगम का सृजन होता है। इसलिए, हम नदियों के संगम से लेकर कुम्भ जैसे आयोजनों में विचारों के संगम तक, इन परंपराओं को सदियों से पोषित करते आए हैं।
यही संगम की शक्ति है, जिसे सौराष्ट्र तमिल संगमम् आज एक नए स्वरूप में आगे बढ़ा रहा है। आज जब देश की एकता ऐसे महापर्वों के रूप में आकार ले रही है, तो सरदार साहब हमें जरूर आशीर्वाद दे रहे होंगे। ये देश के उन हजारों-लाखों स्वतन्त्रता सेनानियों के सपनों की भी पूर्ति है, जिन्होंने अपने बलिदान देकर ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ का सपना देखा था। आज जब हमने आज़ादी के 75 वर्ष पूरे किए हैं, तो देश ने अपनी ‘विरासत पर गर्व’ के ‘पंच प्राण’ का आह्वान किया है। अपनी विरासत पर गर्व तब औऱ बढ़ेगा, जब हम उसे जानेंगे, गुलामी की मानसिकता से मुक्त होकर अपने आपको जानने की कोशिश करेंगे! काशी तमिल संगमम् हो या सौराष्ट्र तमिल संगमम्, ये आयोजन इसके लिए एक प्रभावी अभियान बन रहा है। आप देखिए, गुजरात और तमिलनाडु के बीच ऐसा कितना कुछ है जिसे जान-बूझकर हमारी जानकारी से बाहर रखा गया। विदेशी आक्रमणों के दौर में सौराष्ट्र से तमिलनाडु के पलायन की थोड़ी-बहुत चर्चा इतिहास के कुछ जानकारों तक सीमित रही! लेकिन उसके भी पहले, इन दोनों राज्यों के बीच पौराणिक काल से एक गहरा रिश्ता रहा है। सौराष्ट्र और तमिलनाडु का, पश्चिम और दक्षिण का ये सांस्कृतिक मेल एक ऐसा प्रवाह है जो हजारों वर्षों से गतिशील है।
आज हमारे पास 2047 के भारत का लक्ष्य है। हमारे सामने गुलामी और उसके बाद 7 दशकों के कालखंड की चुनौतियाँ भी हैं। हमें देश को आगे लेकर जाना है, लेकिन रास्ते में तोड़ने वाली ताक़तें भी मिलेंगी, भटकाने वाले लोग भी मिलेंगे। लेकिन, भारत कठिन से कठिन हालातों में भी कुछ नया करने की ताकत रखता है, सौराष्ट्र और तमिलनाडु का साझा इतिहास हमें ये भरोसा देता है। आप याद करिए, जब भारत पर विदेशी आक्रांताओं के आक्रमण शुरू हुये, सोमनाथ के रूप में देश की संस्कृति और सम्मान पर पहला इतना बड़ा हमला हुआ, सदियों पहले के उस दौर में आज के जैसे संसाधन नहीं थे। इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी का दौर नहीं था, आने जाने के लिए तेज ट्रेनें और प्लेन नहीं थे। लेकिन, हमारे पूर्वजों को ये बात पता थी कि- हिमालयात् समारभ्य, यावत् इन्दु सरोवरम्। तं देव-निर्मितं देशं, हिन्दुस्थानं प्रचक्षते॥
अर्थात्, हिमालय से लेकर हिन्द महासागर तक, ये पूरी देवभूमि हमारा अपना भारत देश है। इसीलिए, उन्हें ये चिंता नहीं हुई कि इतनी दूर नई भाषा, नए लोग, नया वातावरण होगा, तो वहाँ वो कैसे रहेंगे। बड़ी संख्या में लोग अपनी आस्था और पहचान की रक्षा के लिए सौराष्ट्र से तमिलनाडु चले गए। तमिलनाडु के लोगों ने उनका खुले दिल से, परिवारभाव से स्वागत किया, उन्हें नए जीवन के लिए सभी स्थायी सुविधाएं दीं। ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ का इससे बड़ा और बुलंद उदाहरण और क्या हो सकता है? महान संत थिरुवल्लवर जी ने कहा था-अगन् अमर्न्दु, सेय्याळ् उरैयुम् मुगन् अमर्न्दु, नल् विरुन्दु, ओम्बुवान् इल् यानि, सुख-समृद्धि और भाग्य, उन लोगों के साथ रहता है जो दूसरों का अपने यहां खुशी-खुशी स्वागत करते हैं। इसलिए, हमें सांस्कृतिक टकराव नहीं, तालमेल पर बल देना है। हमें संघर्षों को नहीं, संगम और समागमों को आगे बढ़ाना है। हमें भेद नहीं खोजने, हमें भावनात्मक संबंध बनाने हैं।
तमिलनाडु में बसे सौराष्ट्र मूल के लोगों ने और तमिलगम के लोगों ने इसे जीकर दिखाया है। आप सबने तमिल को अपनाया, लेकिन साथ ही सौराष्ट्र की भाषा को, खानपान को, रीति-रिवाजों को भी याद रखा। यही भारत की वो अमर परंपरा है, जो सबको साथ लेकर समावेश के साथ आगे बढ़ती है, सबको स्वीकार करके आगे बढ़ती है। मुझे खुशी है कि, हम सब अपने पूर्वजों के उस योगदान को कर्तव्य भाव से आगे बढ़ा रहे हैं। मैं चाहूँगा कि आप स्थानीय स्तर पर भी देश के अलग-अलग हिस्सों से लोगों को इसी तरह आमंत्रित करें, उन्हें भारत को जानने और जीने का अवसर दें। मुझे विश्वास है, सौराष्ट्र तमिल संगमम् इसी दिशा में एक ऐतिहासिक पहल साबित होगा। आप इसी भाव के साथ, फिर एक बार तमिलनाडु से आप इतनी बड़ी तादाद में आए। मैं खुद आकर वहां आपका स्वागत करता तो मुझे और अच्छा आनंद आता। लेकिन समय अभाव से मैं नहीं आ पाया। लेकिन आज virtually मुझे आप सबके दर्शन करने का अवसर मिला है। लेकिन जो भावना इस पूरे संगमम् में हमने देखी है, उस भावना को हमें आगे बढ़ाना है। उस भावना को हमें जीना है। और उस भावना के लिए हमारी आने वाली पीढ़ियों को भी तैयार करना है। इसी भाव के साथ आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद! वणक्कम्!
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