पटना. आरजेडी ने साफ कर दिया है कि नए साल में बीजेपी की मंदिर राजनीति के खिलाफ वो लड़ाई लड़ेगी। एक तरफ अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन 22 जनवरी को होना है और बीजेपी इसके लिए जोर-शोर से तैयारी कर रही है। वहीं आरजेडी सावित्री बाई फुले की जयंती समारोह करने वाला है। 7 जनवरी को डेहरी ऑन सोन रोहतास में समारोह होना है। इसे लेकर पटना में राबड़ी आवास के बाहर पोस्टर लगा है। आरजेडी के डेहरी से विधायक फतेह बहादुर सिंह ने इस पोस्टर को लगाया है, जिसमें सावित्री बाई फुले के वो विचार हैं, जिसमें मंदिर की आलोचना है-‘मंदिर का मतलब मानसिक गुलामी का मार्ग और स्कूल का मतलब होता है जीवन में प्रकाश का मार्ग’
इधर पोस्टर को लेकर राजनीति गरमा गई है। बीजेपी का आरोप है कि सनातन पर इंडिया गठबंधन के लोग लगातार हमला कर रहे हैं। वहीं जेडीयू ने कहा कि एक विधायक की राय पार्टी की राय नहीं हो सकती है। जयंती समारोह का उद्घाटन शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर करने वाले हैं। वो भी रामचरित मानस को लेकर दिए अपने बयानों से चर्चा में रहे हैं। इसमें मंत्री आलोक मेहता, मंत्री अनिता देवी,डॉ. कांति सिंह, उदय नारायण चौधरी,सीमा समृद्धि कुशवाहा मुख्य अतिथि होंगी। मुख्य वक्ता होंगे डॉ. लक्ष्मण यादव,अरुण गुप्ता और कंचन यादव।
मंदिर की घंटी बताती है, हम अंधविश्वास,पाखंड की ओर बढ़ रहे हैं
फतेह बहादुर ब्राह्मणवाद पर बयान देने की वजह से चर्चा में रहे हैं। हाल में इन्होंने हिंदुओं के बड़े देवता ब्रह्मा जी पर सवाल उठाया था। साथ ही कहा था कि विद्या की देवी सरस्वती की जगह सावित्री बाई फुले की पूजा होनी चाहिए। सावित्री बाई फुले को फतेह बहादुर ने पोस्टर पर ‘भारत की पहली शिक्षिका’ कहा है। राम मंदिर उद्घाटन से पहले उन्होंने सावित्री बाई फुले के विचार को भी सामने रखा है-‘मंदिर का मतलब मानसिक गुलामी का मार्ग और स्कूल का मतलब होता है जीवन में प्रकाश का मार्ग, जब मंदिर की घंटी बजती है तो हमें संदेश देती है कि हम अंधविश्वास,पाखंड,मूर्खता और अज्ञानता की ओर बढ़ रहे हैं और जब स्कूल की घंटी बजती है तो यह संदेश मिलता है कि हम तर्क पूर्ण ज्ञान और वैज्ञानिकता व प्रकाश की ओर बढ़ रहे हैं। अब तय करना है कि आपको किस ओर जाना चाहिए।’
लगातार सनातन पर हमला कर रहा INDI गठबंधन-बीजेपी
पोस्टर को लेकर बीजेपी इंडिया गठबंधन के नेताओं पर हमलावर है। भाजपा सांसद सुशील कुमार मोदी ने कहा, “ये जो INDI गठबंधन के लोग हैं। वे लगातार सनातन पर हमला और हिंदू धर्म को अपमानित करने का काम कर रहे हैं। उनके जो मन में आता है वो हिंदू देवी-देवताओं के बारे में बोलते हैं। आज जब देश के करोड़ों लोग राम मंदिर जाने की तैयारी कर रहे हैं, उस मंदिर को गुलामी का प्रतीक बताना, जबकि मंदिर इस देश में जो सांस्कृतिक गुलामी थी उससे मुक्ति का प्रतीक है।”
फतेह बहादुर सिंह का मतलब आरजेडी नहीं है-जेडीयू
आरजेडी विधायक फतेह बहादुर सिंह के पोस्टर पर विवाद हो गया है। इस पर जेडीयू प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा है कि किसने क्या पोस्टर लगाया है वे जानें। धार्मिक विषय पर अगर टिप्पणी करते हैं तो यह सार्वजनिक मंच से घोषणा करिए कि जिनके घर में पूजा होगी, शादी-विवाह आदि होगा उसके घर में भी नहीं जाएंगे..ये मानक स्थापित करिएगा तब माना जाएगा। वरना माना जाएगा कि माल महाराज का मिर्जा खेले होली। साथ ही कहा कि फतेह बहादुर सिंह का मतलब आरजेडी नहीं है। इनका नाम तो कायर बहादुर सिंह रखना चाहिए।
धार्मिक आस्था का मजाक नहीं बनाएं-कांग्रेस
कांग्रेस के प्रवक्ता असित नाथ तिवारी ने फतेह बहादुर सिंह के पोस्टर पर कहा है कि सावित्री बाई फुले का बहुत बड़ा योगदान है, लेकिन क्या उन्होंने देवी-देवताओं के लिए कभी उल्टी-सीधी बातें बोलीं? एक प्रमाण भी दे दे कोई। सावित्री बाई फुले का नाम लेकर धार्मिक आस्था पर चोट पहुंचाना मूर्खतापूर्ण हरकत है। फतेह बहादुर तो सरस्वती शब्द भी ठीक से नहीं बोल पा रहे। वे पांचवीं की हिंदी की किताब भी शुद्ध-शुद्ध नहीं पढ़ पाएंगे। मूर्खता के प्रदर्शन का अधिकार सभी को है लेकिन धार्मिक आस्था का मजाक नहीं बनाएं।
देश की पहली महिला टीचर सावित्रीबाई फुले
3 जनवरी 1831 में देश की पहली महिला टीचर सावित्रीबाई फुले का जन्म महाराष्ट्र के सतारा के नायगांव में एक किसान परिवार में हुआ था। उन्होंने महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने में अहम भूमिका निभाई और भारत में महिला शिक्षा की अगुआ बनीं। सावित्रीबाई फुले को भारत की सबसे पहली आधुनिक नारीवादियों में से एक माना जाता है। 1840 में महज नौ साल की उम्र में सावित्रीबाई का विवाह 13 साल के ज्योतिराव फुले से हुआ था। उन्होंने बाल विवाह और सती प्रथा जैसी बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाई।
अपने पति ज्योतिराव के साथ मिलकर उन्होंने महिला शिक्षा पर बहुत जोर दिया। देश में लड़कियों के लिए पहला स्कूल साावित्रीबाई और उनके पति ज्योतिराव ने 1848 में पुणे में खोला था। इसके बाद सावित्रीबाई और उनके पति ज्योतिराव ने मिलकर लड़कियों के लिए 17 और स्कूल खोले।
सावित्रीबाई न केवल महिलाओं के अधिकारों के लिए ही काम नहीं किया, बल्कि वह समाज में व्याप्त भ्रष्ट जाति प्रथा के खिलाफ भी लड़ीं। जाति प्रथा को खत्म करने के अपने जुनून के तहत उन्होंने अछूतों के लिए अपने घर में एक कुआं बनवाया था। सावित्रीबाई न केवल एक समाज सुधारक थीं, बल्कि वह एक दार्शनिक और कवयित्री भी थीं। उनकी कविताएं अधिकतर प्रकृति, शिक्षा और जाति प्रथा को खत्म करने पर केंद्रित होती थीं।
साभार : दैनिक भास्कर
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