नई दिल्ली. अयोध्या में राम मंदिर के बाद अब वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा की शाही ईदगाह को लेकर विवाद छिड़ गया है. हिंदू समुदाय इन दोनों ही धार्मिक स्थलों पर अपना दावा कर रहा है. हाल ही में वाराणसी कोर्ट ने ज्ञानवापी में हिंदू पक्ष को पूजा का अधिकार दिया, जिस पर मुस्लिम पक्ष ने कड़ी आपत्ति जाहिर की है. दूसरी तरफ इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा है.
इस बीच BJP सांसद हरनाथ सिंह ने पूजा स्थल एक्ट 1991 को खत्म करने की मांग की है. हरनाथ सिंह ने राज्यसभा में इस मुद्दे को उठाते हुए पूजा स्थल एक्ट को खत्म करने की मांग की है. उन्होंने कहा कि ये एक्ट संविधान में वर्णित समानता और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है. जो संविधान की प्रस्तावना और उसकी मूल संरचना का अभिन्न अंग है.
‘मनमाना और तर्कहीन है पूजा स्थल एक्ट’
BJP सांसद हरनाथ सिंह ने कहा कि ये एक्ट न्यायिक समीक्षा पर रोक लगाता है, जो कि संविधान की बुनियादी विशेषता है. बीजेपी नेता ने इस कानून को मनमाना और तर्कहीन करार दिया. उन्होंने कहा कि ये कानून से बौद्ध, जैन, सिख और हिंदू समुदाय के अनुयायियों के धार्मिक अधिकारों को कम करता है, साथ ही भगवान राम और कृष्ण के बीच भेदभाव पैदा करता है, जबकि दोनों ही भगवान विष्णु के अवतार हैं.
‘अतीत को भूलकर देश प्रगति नहीं कर सकता’
इसके साथ ही हरनाथ सिंह ने पीएम नरेंद्र मोदी का धन्यवाद करते हुए कहा कि पीएम ने कहा था कि आजादी के बाद जो लोग लंबे समय तक सत्ता में रहे, वो लोग पूजा स्थलों के महत्व को नहीं समझ सके. उन लोगों ने अपने राजनीतिक फायदे के लिए अपनी ही संस्कृति पर शर्मिंदगी होने की प्रवृत्ति स्थापित की. हरनाथ सिंह ने कहा कि पीएम मोदी ने कहा था कि कोई भी देश अपने अतीत को भूलकर, उसे मिटा कर और अपनी जड़ों को काटकर कभी प्रगति नहीं कर सकता.
‘देश हित में खत्म किया जाए कानून’
BJP सांसद हरनाथ सिंह ने कहा कि इस कानून का अर्थ ये है कि विदेशी आक्रमताओं द्वारा तलवार की नोक पर ज्ञानवापी और श्री कृष्ण जन्मभूमि सहित अन्य पूजा स्थलों पर जो कब्जा किया गया, उसे पहले की सरकार द्वारा कानूनी रूप से सही ठहरा दिया गया है. बीजेपी सांसद ने कहा कि समान कृत्यों और समान परिस्थितियों के लिए दो कानून नहीं हो सकते. उन्होंने कहा कि कोई भी सरकार किसी भी नागरिक के लिए अदालत के दरवाजे बंद नहीं कर सकती. उन्होंने कहा कि ये कानून पूरी तरह से असंवैधानिक है. ऐसे में वो इस कानून को देश हित में खत्म करने की मांग करते है.
आपको बता दें कि ये कोई पहला मौका नहीं है जब एक एक्ट को खत्म करने की मांग उठी है. इससे पहले भी संसद में कई सांसद ये मुद्दा उठा चुके हैं. वहीं ये मामला सुप्रीम तक भी पहुंच चुका है, जिस पर आगे सुनवाई भी होनी है.
क्या है पूजा स्थल एक्ट 1991
दरअसल पूजा स्थल एक्ट 1991 में साफ तौर पर कहा गया है कि आजादी के पहले जिस धार्मिक स्थल का जो स्वरूप रहा है, वो उसी तरह रहेगा उसके साथ किसी भी तरह की कोई छेड़छाड़ नहीं की जाएगी. हालांकि अयोध्या मामले को इसमें एक अपवाद माना गया था. इस एक्ट को पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने नेतृत्व वाली तत्कालीन कांग्रेस सरकार के समय बनाया गया था. उस समय राम मंदिर का मुद्दा अपने चरम पर था.
बीजेपी की मांग पर ओवैसी ने उठाए थे सवाल
इस एक्ट को लेकर जमकर राजनीति भी होती रही है. एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी भी बीजेपी की इस एक्ट को खत्म करने मांग पर सवाल उठा चुके हैं. वहीं ज्ञानवापी मामले को लेकर भी उन्होंने कहा था कि ये पूजा स्थल एक्ट 1991 का उल्लंघन है. ओवैसी ने पीएम मोदी से भी पूजा स्थल अधिनियम का बचाव करने का आग्रह किया था.
साभार : टीवी9 भारतवर्ष
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