शुक्रवार, नवंबर 22 2024 | 09:48:20 AM
Breaking News
Home / अंतर्राष्ट्रीय / आंतरिक कलह के कारण ब्रिटेन चुनाव हारी ऋषि सुनक की पार्टी, गई कुर्सी

आंतरिक कलह के कारण ब्रिटेन चुनाव हारी ऋषि सुनक की पार्टी, गई कुर्सी

Follow us on:

लंदन. तारीख 25 अक्टूबर 2022, ऋषि सुनक 10 डाउनिंग स्ट्रीट यानी ब्रिटेन के प्रधानमंत्री आवास में पत्नी और कुत्ते के साथ पहला कदम रखते हैं। उन्हें पार्टी की अंतर्कलह की वजह से प्रधानमंत्री की कुर्सी मिली थी। ठीक 620 दिन बाद 5 जून 2024 को सुनक लंदन की उसी 10 डाउनिंग स्ट्रीट से अपने परिवार के साथ बाहर आकर अपनी हार कबूल करेंगे। उनकी कंजर्वेटिव पार्टी को 14 साल बाद चुनाव में हार मिली है। इसकी वजह पार्टी की उसी अंतर्कलह को बताया जा रहा है जो उन्हें सत्ता में लाई थी। चुनाव से पहले ही सरकार में इस्तीफों की झड़ी लग गई थी। साल भर में 3 मंत्रियों और 78 सांसदों ने इस्तीफा देकर चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया था। लगातार 14 साल से सत्ता में रही कंजर्वेटिव पार्टी की हालत ऐसी कैसे हुई, सुनक ने PM रहते क्या गलतियां कीं जो पार्टी को इतनी करारी हार झेलनी पड़ी।

अर्थव्यवस्था बनी गले की फांस

ब्रिटेन में 70 साल के इतिहास में टैक्स की दरें सबसे ज्यादा हैं। सरकार के पास लोगों पर खर्च करने के लिए पैसे नहीं हैं। पर ये नौबत आई कैसे? साल 2020… दुनिया कोरोना के जाल में फंसी थी। ब्रिटेन की सरकार इससे बच निकलने के लिए योजना बनाती है। इकोनॉमी को पटरी पर लाने के लिए 280 बिलियन पाउंड यानी 29 लाख करोड़ रुपए खर्च करती है। उस वक्त सुनक प्रधानमंत्री नहीं, वित्त मंत्री थे। पूरी योजना उन्हीं की बनाई हुई थी। हालांकि, सरकार ने ये पैसे अपनी जेब से नहीं दिए थे। इसके लिए कर्ज लिया गया था। इसके पीछे सोच ये थी कि कर्ज बहुत कम 0.1% ब्याज दर पर लिया है, इकोनॉमी के पटरी पर आते ही उसे चुका देंगे।

रूस ने यूक्रेन पर चढ़ाई कर दी…

बदले में अमेरिका की अगुआई में यूरोप के देशों ने रूस से तेल और गैस खरीदना बंद कर दिया। नतीजा यह हुआ कि वहां, गैस और तेल के दाम आसमान छूने लगे। महंगाई दर बढ़कर 5% से ज्यादा हो गई। लोगों के लिए जरूरत का सामान खरीदना मुश्किल होने लगा।

पार्टी की अंदरूनी कलह, 5 साल में 4 प्रधानमंत्री बने

23 जून 2016 को ब्रिटेन में एक जनमत संग्रह हुआ। इसमें 52% लोगों ने ब्रेग्जिट का समर्थन और 48% ने विरोध किया था। समर्थन करने वालों का मानना था कि ब्रिटेन के EU का मेंबर होने की वजह से उनके देश में बाहरी लोगों (प्रवासियों) की तादाद बढ़ रही है। बाहरी उनकी नौकरियां खा रहे हैं। ब्रेग्जिट पर आए फैसले के तुरंत बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने प्रधानमंत्री का पद छोड़ दिया था। ब्रेग्जिट को लेकर उनकी सोच पार्टी लाइन से अलग थी। कंजर्वेटिव पार्टी में ज्यादातर नेता ब्रेग्जिट चाहते थे।

31 जनवरी 2020 को ब्रिटेन की घड़ी में रात के 12 बजने के साथ ही ब्रिटेन यूरोपियन यूनियन (EU) से अलग हो गया। कंजर्वेटिव पार्टी की थेरेसा मे ब्रिटेन की प्रधानमंत्री बनीं। उन्हें ब्रेग्जिट को इस तरह लागू करवाना था कि इससे देश की अर्थव्यवस्था कमजोर न पड़े। दरअसल, EU का मेंबर होने के चलते ब्रिटेन को यूरोप के देशों के साथ व्यापार में कई तरह की छूट मिलती थी। यह ब्रेग्जिट के बाद खत्म होने वाली थी, लेकिन ब्रेग्जिट की शर्तों पर थेरेसा मे को विपक्ष तो दूर खुद अपनी पार्टी से समर्थन नहीं मिला। पार्टी गुटों में बंट गई और थेरेसा मे को इस्तीफा देना पड़ा।

बोरिस जॉनसन को मिली कमान

थेरेसा मे के बाद ब्रिटेन की बागडोर बोरिस जॉनसन के पास आई। इन्होंने ब्रेग्जिट के दौरान प्रवासियों के खिलाफ खूब बयानबाजी की थी। हालांकि बोरिस भी ज्यादा वक्त तक सत्ता में नहीं टिक पाए। वे एक के बाद एक स्कैंडल में घिरने लगे। 2020 में जब दुनिया और ब्रिटेन के लोग लॉकडाउन के चलते अपने घरों में कैद थे, तब बोरिस जॉनसन प्रधानमंत्री कार्यालय में पार्टी कर रहे थे। ये पार्टी बोरिस के 56वें जन्मदिन पर उनकी पत्नी ने रखी थी। इसमें ऋषि सुनक और जॉनसन गुट के कई कंजर्वेटिव नेता मौजूद थे। जब यह मामला संसद में उठा तो जॉनसन ने सभी आरोपों को खारिज कर दिया। इसके बाद उन पर 4 बार संसद को गुमराह करने का आरोप लगा।

इसके अलावा बोरिस जॉनसन पर यौन शोषण के आरोपी को डिप्टी चीफ व्हिप बनाने का भी आरोप लगा। बोरिस ने अपने बचाव में कहा कि वे आरोपों के बारे में नहीं जानते थे। हालांकि वे झूठे साबित हुए। बोरिस जॉनसन पर क्वीन एलिजाबेथ के पति प्रिंस फिलिप के फ्यूनरल से पहले भी एक शराब पार्टी करने का आरोप लगा। इसका खुलासा होने के बाद उनकी पार्टी के बड़े नेताओं ने उनसे दूरी बना ली। पार्टी में फूट बढ़ने लगी। उन्हें 2022 में इस्तीफा देना पड़ा।

लिज ट्रस के U टर्न ने भारतवंशी को बनाया PM

बोरिस जॉनसन के बाद ब्रिटेन की कमान लिज ट्रस को मिली। इस वक्त तक ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था अपने सबसे बुरे दौर में पहुंच चुकी थी। ट्रस ने वादा किया था कि वे बिना टैक्स बढ़ाए उसे पटरी पर ले आएंगी। पर ऐसा नहीं हुआ उन्होंने मिनी बजट लॉन्च कर टैक्स बढ़ा दिया। इससे ब्रिटेन की इकोनॉमी क्रैश होने लगी। कड़ी आलोचना के बाद उन्हें अपने मिनी बजट पर यू-टर्न लेना पड़ा। प्रधानमंत्री रहने के 44 दिनों में ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया। लिज ट्रस के इस्तीफे के बाद ऋषि सुनक ने प्रधानमंत्री पद की कमान संभाली। हालांकि ऋषि सुनक पार्टी नेताओं की पहली पसंद कभी नहीं थे। उनकी नीतियों को लेकर पार्टी के अंदर कई मौकों पर सवाल उठे हैं। सुनक के 3 मंत्रियों ने उनकी नीतियों पर सवाल उठाते हुए इस्तीफा दे दिया था। पार्टी में फूट खुलकर सामने आने के बाद उन्होंने 6 महीने पहले ही चुनाव की घोषणा कर दी।

एंटी इनकम्बेंसी की मार

प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की कंजर्वेटिव पार्टी पिछले 14 साल से सत्ता में बनी हुई है। पार्टी ने पिछले 14 सालों में अब तक 5 प्रधानमंत्री बनाए हैं। साल 2010 में डेविड कैमरन कंजर्वेटिव पार्टी से प्रधानमंत्री के तौर पर जीते थे। इसके बाद साल 2015 में उन्हीं के नेतृत्व में पार्टी ने दूसरी जीत हासिल की थी। थेरेसा मे ने 7 जून 2019 को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दिया, 6 सितंबर 2022 को बोरिस जॉनसन ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दिया। कोई भी 5 साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया। बार-बार प्रधानमंत्रियों के बदले जाने से भी जनता के बीच कंजर्वेटिव पार्टी को लेकर विश्वास में कमी आई। जनता में कंजर्वेटिव पार्टी के प्रति अविश्वास पैदा हो गया। जिससे लोगों के बीच सत्ता विरोधी लहर बनी।

सुनक के वोट काटने वाले नाइजल फराज

नवंबर 2018 में ब्रिटेन की राजनीति में एक नई ‘रिफॉर्म यूके’ पार्टी की एंट्री हुई । इस पार्टी के कर्ताधर्ता कट्टरपंथी नेता नाइजल फराज हैं। उन्होंने ब्रेग्जिट के दौरान खूब सुर्खियां बटोरी थीं। ब्रेग्जिट भले ही सुनक की कंजर्वेटिव पार्टी करा रही थी, पर उसकी सारी कमान नाइजल फराज के पास थी। उनका पूरा कैंपेन यूरोपियन यूनियन से बाहर आने के समर्थन में था। कंजर्वेटिव और रिफॉर्म UK दोनों ही पार्टी की नीतियां लगभग एक जैसी हैं। नाइजल फराज की बढ़ती लोकप्रियता सुनक के लिए बड़ा सिरदर्द बन गई। सुनक ने उन्हीं की लोकप्रियता के डर से समय से 6 महीने पहले चुनाव कराया। हालांकि इसके बावजूद वे रिफॉर्म UK पार्टी को वोट काटने से नहीं रोक पाए।

साभार : दैनिक भास्कर

भारत : 1857 से 1957 (इतिहास पर एक दृष्टि) पुस्तक अपने घर/कार्यालय पर मंगाने के लिए आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सकते हैं

https://www.amazon.in/dp/9392581181/

https://www.flipkart.com/bharat-1857-se-1957-itihas-par-ek-drishti/p/itmcae8defbfefaf?pid=9789392581182

मित्रों,
मातृभूमि समाचार का उद्देश्य मीडिया जगत का ऐसा उपकरण बनाना है, जिसके माध्यम से हम व्यवसायिक मीडिया जगत और पत्रकारिता के सिद्धांतों में समन्वय स्थापित कर सकें। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए हमें आपका सहयोग चाहिए है। कृपया इस हेतु हमें दान देकर सहयोग प्रदान करने की कृपा करें। हमें दान करने के लिए निम्न लिंक पर क्लिक करें -- Click Here


* 1 माह के लिए Rs 1000.00 / 1 वर्ष के लिए Rs 10,000.00

Contact us

Check Also

युद्ध के खतरे को देखते हुए अमेरिका ने यूक्रेन में अपना दूतावास किया बंद

कीव. रूस यूक्रेन युद्ध के बीच तनाव बढ़ने के बीच अमेरिका ने कीव स्थित अपने …