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भारत : 1885 से 1950 (इतिहास पर एक दृष्टि)

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कांग्रेस की स्थपाना के पीछे का उद्देश्य

… जरा सोचिए एक ऐसा राजनीतिक संगठन जो यह दावा करता है कि उसने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, उसके अधिवेशन की शुरुआत ब्रिटिश गुलामी के समय इंग्लैंड के राष्ट्रगान से होती थी। यही नहीं कांग्रेस का प्रारंभ में कोई अपना झंडा नहीं था। यूनियन जैक अर्थात कांग्रेसी इंग्लैंड के राष्ट्रीय ध्वज को ही अपना झंडा मानते रहे। ऐसा 1-2 वर्ष नहीं किंतु लगभग 40 वर्षों तक होता रहा।…

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कांग्रेस के प्रारंभिक कालखण्ड के कुछ उदहारण

… बी.एल. ग्रोवर, अलका मेहता व यशपाल ने अपनी पुस्तक आधुनिक भारत का इतिहास : एक नवीन मूल्यांकन में लिखा है, ‘‘कांग्रेस के नेता अंग्रेजी शासन को ईश्वर की अनन्य कृपा मानते थे। … नौरोजी जब 1986 में कांग्रेस के अध्यक्ष बने, तब उन्होंने अपने अध्यक्षीय भाषण में भाषण में बताया कि अंग्रेजी शासन के क्या-क्या लाभ हैं।… 1898 में जब आनंद बोस कांग्रेस के अध्यक्ष बने, तब उन्होंने अधिवेशन में अपना अध्यक्षीय भाषण देते हुए कहा कि भारत का शिक्षित वर्ग अंग्रेजों का शत्रु नहीं बल्कि उनका प्राकृतिक और आवश्यक सहयोगी है …

… गोपाल कृष्ण गोखले ने 1897 में अंग्रेजों के खिलाफ अपने विचार व्यक्त किये, तो उन पर गिरफ्तारी की तलवार लटकने लगी। इससे डर कर उन्होंने अंग्रेजों से बिना शर्त माफी मांग ली। … इसके कुछ समय बाद ही गोखले को वाइसराय की कौंसिल का सदस्य बनाकर उन्हें 3000 रुपये प्रति सत्र का भुगतान किया जाने लगा…

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कांग्रेस में स्वराज्य शब्द का प्रयोग

… 1920 में तत्कालीन कुछ कांग्रेसी नेताओं बलवंतराव मांडलेकर और डॉ. केशवबलिराम हेडगेवार आदि ने नागपुर के व्यंकटेश नाट्यगृह में एक प्रस्ताव पारित कर ‘‘विशुद्ध स्वातंत्र्य ही हमारा उद्देश्य’’ यह घोषणा की। वे इस प्रस्ताव को लेकर गांधीजी से भी मिले। किन्तु गांधीजी ने कहा कि स्वराज्य में ही विशुद्ध स्वातंत्र्य का समावेश हो जाता है।…

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अंग्रेजों ने ही बनवाई थी मुस्लिम लीग

… डनलप ने मुहम्मदन एग्लो-ओरिएण्टल कॉलेज, अलीगढ़ के अंग्रेज प्रधानाचार्य आर्चीबाल्ड को पत्र लिख वायसराय के पास मुसलमानों का एक प्रतिनिधिमंडल भेजने के लिए कहा, जो अपनी मांगे उनके सामने रखेंगे। … आर्चीबाल्ड ने कॉलेज के सचिव नवाब मोहसिन-उल-मुल्क को पत्र लिखा … लेकिन इन सब बातों में मैं पर्दे के पीछे रहना चाहता हूँ। यह प्रस्ताव आपकी ओर से आना चाहिए।… मैं आपके लिए याचिका का प्रारूप तैयार कर सकता हूँ… इसी पत्र में यह भी लिखा है कि मुसलमानों के प्रतिनिधिमंडल में किस प्रकार के लोग होंगे।…

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विनायक दामोदर सावरकर

… दरअसल क्रांतिकारियों का स्पष्ट मत था कि स्वतंत्रता का आंदोलन जेल से नहीं चलाया जा सकता, इसके लिए स्वयं को स्वतंत्र रखना आवश्यक है। इसलिए भगत सिंह सहित कुछ अपवादों को छोड़ दे तो किसी ने भी अपनी गिरफ्तारी स्वयं नहीं दी। भगत सिंह को भी अपना बलिदान इसलिए देना पड़ा क्योंकि उस समय गांधीजी के प्रभाव के कारण लोग क्रांतिकारियों को देश की स्वतंत्रता में रूकावट मानने लगे थे।…

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गांधीजी का हिन्दू-मुस्लिम एकता का सिद्धांत

… आप सिर्फ हिन्दू-मुस्लिम एकता ही बात क्यों करते हैं’’? इसके उत्तर में गांधीजी ने कहा, ‘‘मैंने इस नारे के माध्यम से मुसलामानों के मन में देश के संबंध में आत्मीयता उत्पन्न की है… ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या तत्कालीन मुसलामानों के मन में देश प्रेम नहीं था। …

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खिलाफत आंदोलन : कुछ तथ्य

… 1919 की दिल्ली में मुस्लिम कांफ्रेंस के लिए गांधीजी को भी आमंत्रित किया गया। इसी बैठक में सर्वप्रथम विदेशी कपड़ों को आग में डालने का सुझाव आया था।… असहयोग आंदोलन या विदेशी कपड़ों को जलाने का अभियान दोनों गांधीजी की स्वदेशी भावना की अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि खिलाफत आंदोलन का नया रूप थे। … गांधीजी ने स्वयं अपनी जीवनी के 42वें अध्याय ‘‘असहयोग का प्रवाह’’ में लिखा है … मुसलमान एक खास हद तक ही अहिंसा और शांति पर सहमत थे अर्थात उस हद के बाद अशांति और हिंसा होने ही वाली थी। यह हद क्या होगी, इसकी परिभाषा निश्चित नहीं की गई।…

… मोपला में हिन्दुओं का नरसंहार हुआ था। सर्वेन्ट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी की रिपोर्ट के अनुसार इन दंगों में हिन्दू स्त्रियों के बलात्कार की कोई सीमा ही नहीं थी। 1500 हिन्दुओं की हत्या हुई और 20,000 हिन्दुओं का बलपूर्वक धर्मांतरण कर उन्हें मुसलमान बना दिया गया। उस समय हिन्दुओं की 3 करोड़ रुपये की संपत्ति लूट ली गई…

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स्वतंत्रा पूर्व की कांग्रेस, मुस्लिम तुष्टिकरण और हिन्दू

… 1921 में केरल के मोपला दंगे, 1922 के पंजाब दंगे और फिर 1923 में मुहर्रम के अवसर पर बंगाल और पंजाब में दंगे। 1924 में भारत के कई हिस्से दंगों की आग में झुलसे। … कांग्रेस के दिसंबर 1924 के अधिवेशन में गांधीजी को अध्यक्ष चुना गया। खेद व्यक्त करते हुए उसमें शब्द प्रयोग किये गए हिन्दुओं के कोहाट त्याग, ऐसा लग रहा था मानों हिन्दुओं ने स्वयं ही कोहाट छोड़ दिया हो… कांग्रेस ने हिन्दुओं को सलाह दी कि वो तब तक कोहाट वापस न लौटे, जब तक मुसलमान उन्हें सम्मानपूर्वक वापस आने के लिए नहीं कहते।…

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पंडित जवाहरलाल नेहरू

… गुरुद्रत के अनुसार, ‘‘कुछ ऐसा प्रतीत होता है कि कैम्ब्रिज और लंदन में जवाहरलाल जी किसी ऐसी दुनिया में रहते रहे थे, जो हिंदुस्थानी थी ही नहीं। उसमें हिन्दुस्थान की भावनायें किसी प्रकार का भाग नहीं रखती थीं। … यदि भाग्य प्रबल न होता तो जवाहरलाल जी का विद्यार्थी जीवन ऐसा नहीं था कि कोई उनसे किसी प्रकार की आशा कर सकता।…

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कांग्रेस में सुभाष चंद्र बोस

… सुभाष चन्द्र बोस ने इसमें संशोधन पेश कर दिया। जिसमें औपनिवेशिक स्वराज्य के स्थान पर पूर्ण स्वराज्य करने का प्रस्ताव दिया गया।… जब मतदान हुआ तो संशोधन के पक्ष में 973 और विरोध में 1350 मत पड़े … बोस का यह प्रस्ताव भले ही गिर गया हो, लेकिन गांधीजी को कांग्रेस में अपने विचार के 973 विरोधी स्पष्ट दिखने लगे थे।… गांधीजी के समर्थकों ने यह दावा कर दिया कि यदि यह संशोधन पास हो जायेगा, तो गांधीजी कांग्रेस से अलग हो जायेंगे। इसीलिए कई लोगों ने गांधीजी को कांग्रेस से जोड़े रखने के लिए न चाहते हुए भी संशोधन के विरोध में मतदान किया।…

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गांधीजी पर क्रांतिकारी घटनाओं का अप्रत्यक्ष दबाव

… वास्तव में उस समय अंग्रेजों और कांग्रेस के द्वारा ऐसा वातावरण बनाने का प्रयास किया जा रहा था कि क्रांतिकारी हिंसा फैला कर आतंकवादियों जैसा कार्य कर रहे हैं। यह गलत है और इस मार्ग से कभी स्वतंत्रता नहीं मिल सकती।…

… कांग्रेस जो अब तक अंग्रेजों की गुलामी करने के लिए भारतीयों को मना रही थी, उसे लगा कि अब यदि कुछ नया नहीं किया, तो उसका जनाधार पूरी तरह से समाप्त हो जायेगा। कांग्रेस के द्वारा पूर्ण स्वतंत्रता की बात, 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस मनाने का निर्णय, यह दोनों ही राजनीतिक घटनाक्रम इसी कड़ी का हिस्सा थे।….

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नमक आंदोलन

… गांधीजी के जीवनीकार लुई फिशर इसे और स्पष्ट करते हैं। वे लिखते हैं, ‘‘रवीन्द्रनाथ ठाकुर, जो उन दिनों साबरमती के आस-पास थे, 18 जनवरी को गांधीजी से मिलने आये। उन्होंने गांधीजी से पूछा कि आप 1930 में देश को क्या देने वाले हैं। गांधीजी ने उत्तर दिया कि मैं रात-दिन व्यग्रतापूर्वक सोच रहा हूँ, घोर अंधकार में प्रकाश की कोई किरण नहीं दिखाई देती’’।… इससे स्पष्ट है कि गांधीजी के मन में नमक आंदोलन को लेकर पहले से कोई योजना नहीं थी। वे इस मामले में पहले से चिंतित नहीं थे। उनको कोई मुद्दा नहीं मिल रहा था, इसलिए नमक आंदोलन की बात ध्यान में आई।…

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भारत का राष्ट्रीय ध्वज, तिरंगा या भगवा

… ‘‘सिखों ने राष्ट्रीय झंडे व उसमें उनके लिए समाविष्ट किये जाने वाले रंग के प्रश्न को उठाया। यह प्रश्न पहले लाहौर (1930) में भी उठाया जा चुका  था, कराची (1931) में इसे और भी अधिक महत्त्व मिला।… कांग्रेस ने इस विषय पर विचार करने के लिए 7 सदस्यीय झंडा समिति या ध्वज समिति बना दी।… समिति ने प्रतिवेदन पारित कर लिखा कि हम लोगों का एकमत है कि अपना राष्ट्रीय ध्वज एक ही रंग का होना चाहिए। भारत के सभी लोगों का एक साथ उल्लेख करने के लिए उन्हें सर्वाधिक मान्य केसरिया रंग ही हो सकता है। अन्य रंगों की अपेक्षा यह रंग अधिक स्वतंत्र स्वरूप का तथा भारत की पूर्व परंपरा के अनुकूल है।… इस झंडा समिति में मौलाना आजाद के रूप में मुस्लिम प्रतिनिधित्व भी था, इसलिए इस पर कांग्रेस के अन्दर मुसलमानों को भी कोई आपत्ति नहीं थी, ऐसा माना जा सकता है।…

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हैदराबाद आंदोलन

… हैदराबाद में हिन्दुओं पर जहां इतने प्रतिबंध थे, तो वहीं मुस्लिमों को खुली छूट थी। वो बकरीद पर खुलेआम गौ वंश की हत्या करते थे।… कांग्रेस ने इस विषय पर हिन्दुओं को ही नसीहत दे डाली कि वो गौ हत्या का विरोध कर मुस्लिमों की भावनाओं को आहत न करें। … गांधीजी के विचार ही जान लेना पर्याप्त है। वे हरिजन में लिखते हैं, ‘‘हैदराबाद में आर्यसमाज के सांप्रदायिक सत्याग्रह के साथ-साथ कांग्रेस का आंदोलन चलने पर लोगों में भ्रम होगा कि कांग्रेस भी सांप्रदायिक मांगों के समर्थन के नाम पर हैदराबाद के निजाम और मुसलमानों का विरोध कर रही है।…

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द्वितीय विश्व युद्ध में कांग्रेस की भूमिका

… द्वितीय विश्व युद्ध शुरू होने के बाद जब गांधीजी वाइसराय से मिलने गए… उन्होंने बताया, ‘‘मैंने वाइसराय को सूचित किया कि इंसानियत की दृष्टि से मेरी सहानुभूति इंग्लैंड और फ्रांस के प्रति है। उस लंदन के विनाश की, जिसे अब तक अभेद्य माना जाता है, कल्पना करते ही मेरा रोम-रोम कांप उठता है और जैसे कि मैं वाइसराय से बातचीत करते समय अपनी आंखों के आगे पार्लियामेंट भवन और एबे के विनाश का दृश्य देखने लगा, मेरा धीरज जाता रहा। मैं बेचैन हूँ’’।…

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कौन था भारत विभाजन के लिए जिम्मेदार?

… विभाजन के पक्ष में 157 और विरोध में मात्र 29 वोट पड़े थे। तत्कालीन कांग्रेसी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया इस बारे में लिखते हैं,  ‘‘आज मुझे इस बात का गहरा क्लेश हो रहा है कि जब हमारे देश का विभाजन हुआ, तो न तो किसी व्यक्ति ने अपने प्राणों का उत्सर्ग किया और न ही कोई कारागार में गया।… हिन्दू-मुस्लिम बलवे की भयावह, पर झूठी आशंका ने मुझे इतना अंधा कर दिया था… नेताओं की तो और भी अधोगति हुई। वे लालच के फंदे में फंस गए।…

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