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अब दिल्ली में 30 अगस्त से 10 सितंबर के बीच होगी कृत्रिम बारिश

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नई दिल्ली. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए दिल्ली सरकार ने विज्ञान आधारित पर्यावरणीय समाधानों को अपनाने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है। हाल ही में दिल्ली सरकार ने क्लाउड सीडिंग (कृत्रिम बारिश) परीक्षण के लिए डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन (DGCA) से अंतिम मंजूरी हासिल कर ली है। इसके साथ ही, दिल्ली में वर्षा कराने के लिए पहली बार क्लाउड सीडिंग का प्रयोग 30 अगस्त से 10 सितंबर 2025 के बीच किया जाएगा।

पहले 4 से 11 जुलाई के बीच की जानी थी क्लाउड सीडिंग

प्रारंभ में इस परियोजना को 4 से 11 जुलाई के बीच अंजाम देने की योजना थी। इसके लिए DGCA से मूल मंजूरी भी प्राप्त हो गई थी, लेकिन फिर इसे टाल दिया गया था।असल में, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) और भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM) पुणे से मिले तकनीकी इनपुट के अनुसार इस अवधि के दौरान बादलों का पैटर्न क्लाउड सीडिंग के लिए अनुकूल नहीं था। इस वजह से परियोजना को स्थगित कर दिया गया था। आईआईटी कानपुर ने दिल्ली सरकार के साथ विचार-विमर्श करके अब एक नई तरीख 30 अगस्त से 10 सितंबर तय की, जिसे क्लाउड सीडिंग के लिए अधिक उपयुक्त माना गया है।

जानिए क्या होती है क्लाउड सीडिंग

क्लाउड सीडिंग एक वैज्ञानिक तकनीक है, जिसमें बादलों में सिल्वर आयोडाइड, नमक या अन्य रसायनिक कणों का छिड़काव किया जाता है। इससे बादलों में मौजूद नमी बूंदों या बर्फ के कणों के रूप में एकत्रित हो जाती है और जब ये कण भारी हो जाते हैं, तो बारिश के रूप में जमीन पर गिरते हैं। इस प्रक्रिया से वायु प्रदूषण के स्तर में अस्थायी रूप से कमी लाई जा सकती है, क्योंकि बारिश के साथ खतरनाक प्रदूषक जमीन पर बैठ जाते हैं।

आईआईटी कानपुर को सौंपी गई है परियोजना की जिम्मेदारी

दिल्ली सरकार ने इस परियोजना के लिए आईआईटी कानपुर को तकनीकी सहायता और संचालन की जिम्मेदारी सौंपी है। परियोजना की कुल लागत लगभग 3.21 करोड़ रुपये है और इसमें पांच परीक्षण शामिल हैं। प्रत्येक परीक्षण की IMD और IITM पुणे की टीम भी तकनीकी निगरानी करेगी। परीक्षण के बाद वायु प्रदूषण में कमी और पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव का वैज्ञानिक मूल्यांकन किया जाएगा। दिल्ली सरकार का मानना है कि इस तरह के विज्ञान आधारित समाधानों से न केवल वायु गुणवत्ता में सुधार होगा, बल्कि भविष्य में भी ऐसी तकनीकों का इस्तेमाल किया जा सकेगा।

साभार : दैनिक जागरण

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