वाशिंगटन. अमेरिका में एच-1बी वीजा आवेदनों पर लागू किए गए 1,00,000 अमेरिकी डॉलर यानि 88 लाख रुपये के शुल्क के खिलाफ बड़ा कदम उठाया गया है। स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं, धार्मिक समूहों, विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों और अन्य व्यक्तियों के एक समूह ने शुक्रवार को इस फैसले के खिलाफ संघीय अदालत में मुकदमा दायर किया है। इस समूह ने आरोप लगाया कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन की यह योजना नियोक्ताओं, श्रमिकों और संघीय एजेंसियों के लिए अराजकता पैदा कर रही है।
एच1-बी वीजा पर है 88 लाख रुपये का एकमुश्त शुल्क
ट्रंप प्रशासन ने नए एच-1बी वीजा के लिए 1,00,000 डॉलर का एकमुश्त शुल्क लागू करने का निर्णय लिया है, जिसे लेकर यह मुकदमा दायर किया गया है। मुकदमे में यह कहा गया है कि एच-1बी वीजा कार्यक्रम विशेष रूप से स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र और शिक्षा क्षेत्र के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके माध्यम से स्वास्थ्य सेवा कर्मियों और शिक्षकों की भर्ती की जाती है, जो देश में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए जरूरी हैं। इस वीजा योजना को लेकर दायर इस मुकदमे में यह भी कहा गया है कि यह अमेरिका में नवोन्मेष और आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है और नियोक्ताओं को विशेष क्षेत्रों में नौकरी के रिक्त स्थानों को भरने का अवसर प्रदान करता है।
शुल्क में राहत नहीं देने से अस्पतालों में हो सकती है कर्मियों की किल्लत
याचिका में कहा गया है कि अगर इस मामले में कोई राहत नहीं मिलती, तो अस्पतालों को चिकित्सा कर्मचारियों की कमी का सामना करना पड़ेगा, गिरजाघरों को पादरियों की कमी होगी और कक्षाओं में शिक्षकों का संकट उत्पन्न होगा। ‘डेमोक्रेसी फॉरवर्ड फाउंडेशन’ और ‘जस्टिस एक्शन सेंटर’ जैसे संगठनों ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए कहा कि इससे पूरे देश में विभिन्न उद्योगों को प्रमुख नवोन्मेषकों और विशेषज्ञों की कमी का सामना करना पड़ सकता है।
शुल्क पर तत्काल रोक लगाने की मांग
मुकदमे में अदालत से यह अनुरोध किया गया है कि इस नए शुल्क पर तुरंत रोक लगाई जाए, ताकि इन क्षेत्रों में आवश्यक कर्मियों की भर्ती में किसी प्रकार की अड़चन उत्पन्न न हो। समूह का कहना है कि यह शुल्क न केवल रोजगार अवसरों को प्रभावित करेगा, बल्कि यह स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य आवश्यक सेवाओं की गुणवत्ता को भी कमजोर करेगा। यह मामला अमेरिका की एक संघीय अदालत में सैन फ्रांसिस्को में दायर किया गया है, और इसे लेकर कई पक्षों में चिंता जताई जा रही है कि यह कदम अमेरिकी उद्योगों और समाज पर व्यापक प्रभाव डाल सकता है।
साभार : इंडिया टीवी
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