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भारत पर टैरिफ का असर अमेरिका की संसद में भी दिखा, हुई केले पर बहस

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वाशिंगटन. अमेरिकी संसद में हाल ही में एक दिलचस्प और हल्की-फुल्की लेकिन अहम बहस देखने को मिली. पेंसिल्वेनिया की सांसद मेडेलीन डीन ने वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक से पूछा कि ‘केले पर कितना टैरिफ है? अमेरिकियों को केले बहुत पसंद हैं.’ लुटनिक ने जवाब दिया कि ‘आमतौर पर 10 परसेंट.’ इस पर डीन ने चुटकी लेते हुए कहा कि ‘वॉलमार्ट ने तो पहले ही केले की कीमत 8 फीसदी बढ़ा दी है.’ लुटनिक ने साफ किया कि अगर उत्पाद अमेरिका में बनाया जाए तो उस पर कोई टैरिफ नहीं लगता. लेकिन डीन ने तुरंत ही व्यंग्य किया कि ‘लेकिन हम अमेरिका में केले तो उगा ही नहीं सकते.’ इस मजाकिया अंदाज में हुई बातचीत ने असल में एक गंभीर मुद्दे की ओर ध्यान दिला दिया जो आयातित वस्तुओं पर टैरिफ के असर और बढ़ती महंगाई से है.

महंगाई की मार और टैरिफ का असर

अमेरिकी उपभोक्ताओं पर महंगाई का बोझ लगातार बढ़ रहा है. खासकर ऐसे फल और खाद्य पदार्थ, जो पूरी तरह आयात पर निर्भर हैं, उनकी कीमतों में बढ़ोतरी तेजी से हो रही है. केले इसका ताजा उदाहरण हैं. वॉलमार्ट जैसे बड़े रिटेलर्स पहले ही कीमतों में इजाफा कर चुके हैं, और यह सीधे उपभोक्ताओं की जेब पर असर डाल रहा है.

आयात पर निर्भरता की चुनौती

अमेरिका में केले जैसी कई फसलों की खेती जलवायु और मिट्टी की वजह से संभव नहीं है. ऐसे में इनका पूरा स्टॉक दूसरे देशों से आयात करना पड़ता है. जब इन पर टैरिफ लगाया जाता है, तो कीमतें अपने आप बढ़ जाती हैं.

राजनीतिक और आर्थिक दोनों बहसें

इस मुद्दे ने अमेरिकी राजनीति में भी एक दिलचस्प मोड़ ला दिया है. जहां एक तरफ नेता हल्के-फुल्के अंदाज में बहस कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ आर्थिक विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि अगर टैरिफ नीतियों में बदलाव नहीं हुआ, तो महंगाई और भी बढ़ सकती है.

उपभोक्ताओं की जेब पर सीधा असर

टैरिफ का सीधा असर उपभोक्ताओं की जेब पर पड़ता है. छोटे-छोटे उत्पादों की कीमत में भी अगर कुछ प्रतिशत की बढ़ोतरी हो, तो यह साल भर में बड़ी रकम बन जाती है. खासकर ऐसे उत्पाद, जो रोजाना इस्तेमाल में आते हैं, उनकी महंगाई सबसे ज्यादा खलती है.

साभार : न्यूज18

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