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कैग की रिपोर्ट में दी चेतावनी, राज्यों पर कर्ज़ का बोझ तेज़ी से बढ़ा

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नई दिल्ली. देश के राज्यों पर कर्ज़ का बोझ तेज़ी से बढ़ रहा है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक यानी CAG की ताज़ा रिपोर्ट ने चेतावनी दी है कि पिछले एक दशक में राज्यों का कर्ज़ तीन गुना हो गया है और इसकी रफ़्तार चिंताजनक है। पंजाब, नागालैंड और पश्चिम बंगाल में सबसे चिंताजनक स्थिति है।

कैग की ताजा रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि भारत के सभी 28 राज्यों का सार्वजनिक कर्ज़ वर्ष 2013-14 में लगभग ₹17.57 लाख करोड़ था। वर्ष 2022-23 के अंत तक यह बढ़कर 59.6 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया। यानी दस साल में तीन गुना से अधिक का इज़ाफ़ा हुआ। आर्थिक पैमाने पर देखें तो राज्यों का कर्ज़ GSDP के 16.6% से बढ़कर अब 23% तक पहुंच चुका है। कुछ राज्यों की स्थिति सबसे ज़्यादा गंभीर है। पंजाब का कर्ज़ उसके GSDP का 40.35% है। वहीं नागालैंड का करीब 37%, पश्चिम बंगाल का लगभग 33.7% है।

वहीं अच्छी स्थिति वाले कुछ राज्य हैं जैसे ओडिशा का 8.45%, महाराष्ट्र का 14.64% और गुजरात का 16.37% है। CAG का कहना है कि कर्ज़ सिर्फ़ इन्फ्रास्ट्रक्चर और पूंजीगत निवेश पर खर्च होना चाहिए। लेकिन 11 राज्यों ने इसे राजस्व घाटे यानी रोज़मर्रा के खर्च वेतन, पेंशन और सब्सिडी पूरा करने के लिए इस्तेमाल किया। पंजाब में वित्त वर्ष 2023 में लिए गए कर्ज़ का केवल 26% पूंजीगत खर्च पर गया। आंध्र प्रदेश में तो यह हिस्सा और भी कम, सिर्फ़ 17% रहा। हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में करीब आधा कर्ज़ विकास परियोजनाओं में लगाया गया। CAG ने इसे “फिस्कल गोल्डन रूल” का उल्लंघन बताया है। बजट का बड़ा हिस्सा अब ब्याज चुकाने में जा रहा है।

शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे जैसे क्षेत्रों के लिए संसाधन घट रहे हैं। यदि राजस्व में गिरावट आती है या ब्याज दरें बढ़ती हैं, तो स्थिति और कठिन हो CAG की यह रिपोर्ट स्पष्ट संकेत देती है कि वित्तीय अनुशासन ही आने वाले वर्षों में राज्यों की आर्थिक स्थिरता की कुंजी होगा। कर्ज़ से विकास तो संभव है, लेकिन अगर इसका इस्तेमाल राजस्व घाटा पूरा करने में होता रहा, तो राज्यों की वित्तीय हालत और बिगड़ सकती है।

SHABD, September 20, 2025

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