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श्रीमद्भगवदगीता वैदिक न्यास ने गोस्वामी तुलसीदास जयंती के अवसर पर संगोष्ठी का किया आयोजित

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कानपुर. श्रीमद्भगवदगीता वैदिक न्यास (ट्रस्ट) द्वारा पोषित एवं संचालित श्रीमद्भगवदगीता वैदिक वांगमय शोधपीठ (छत्रपति साहूजी महाराज विश्वविद्यालय, कानपुर) एवं सनातन सेवा सत्संग उ0प्र0 के संयुक्त तत्तवावधान में श्रीराम चरित मानस एवं श्रीमद्ंभगवद गीता में जीवन प्रबन्धन विषयक विशाल राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन वीरांगना लक्ष्मीबाई सभागार, छत्रपति साहूजी महाराज विश्वविद्यालय, कानपुर में बृजेश पाठक उप मुख्यमंत्री उ0 प्र0 सरकार के मुख्य आतिथ्य एवं स्वामी प्रबुद्वानंद जी, आचार्य चिन्मय मिशन इन्दौर तथा मानस मर्मज्ञ वीरेन्द्र याज्ञनिक, मुम्बई के विशिष्ट आतिथ्य में आज गोस्वामी तुलसीदास जंयती (श्रावण शुक्ल सप्तमी) के सुअवसर पर सभागार में भव्य आयोजन एवं विश्वविद्यालय प्रांगण के प्रमुख चौराहे पर बृजेश पाठक, प्रो0 विनय पाठक, कुलपति एवं डा0 उमेश पालीवाल, अध्यक्ष एवं सुधीर मिश्र, प्रमिला पाण्डेय, महापौर, प्रकाश पाल, नीलिमा कटियार, सुरेन्द्र मैथानी, वेणुरंजन भदौरिया एवं गणमान्य अतिथियों द्वारा विशाल तुलसीदास जी की प्रतिमा का भव्य अनावरण भी किया गया।

सभागार में मुख्य अतिथि माननीय बृजेश पाठक द्वारा गोस्वामी तुलसीदास जी के जीवन चरित्र का विस्तार से वर्णन कर श्रीराम जी के समन्वयकारी चरित्र से सभ्य समाज के समन्वयकारी रूप की स्थापना तथा समाज में असामाजिक तत्वों को चिन्हीत कर उनका समूल नाश करना भी सभ्य समाज में आवश्यक तत्व माना गया है। संगोष्ठी में उपस्थित विशिष्ट अतिथि स्वामी प्रबुद्वानंद जी ने श्रीमद्भगवदगीता को जीवन में उतारने के लिये निरअहंकारी होना परम आवश्य माना है, श्रीमद्भगवदगीता आज सभ्य एवं सम्मुनत समाज को नयी दिशा प्रदान कर रहा है, उन्होने कहा कि गीता कर्मयोग की शिक्षा देती है तथा कर्म फल की इच्छा के बिना किस प्रकार किया जाय इस पर विस्तार से व्याख्यान प्रदान कर सरल एंव सपाट भाषा में गीता को सभागार में उपस्थित गीतानुरागीजनों के मध्य उतार दिया।

विश्वविख्यात मानस मर्मज्ञ एवं आज की संगोष्ठी में विशिष्ट अतिथि के रूप में वीरेन्द्र याज्ञनिक ने मानस में उल्लिखित गोस्वामी तुलसीदास जी के बाल्यकाल जीवन पर बड़े विस्तार से प्रकाश डालते हुये बताया कि किस प्रकार साहित्यकार के मन में परिस्थितगत प्रभाव पड़ता है, गोस्वामी तुलसीदास जी ने तत्कालीन परिस्थितयों की आवश्कतओं एवं श्रीराम चन्द्र जी के जीवन को साम्यता के साथ दिखाते हुये पुरूषोत्तम राम के चरित्र के द्वारा किस प्रकार भारत के चरित्र को परिलक्षित किया जो आज भी प्रासंगिक है एवं राष्ट्र ही नही वरन् सम्पूर्ण विश्व में आम जन को दिशा निर्देशित कर रहा है। किस प्रकार समाज, परिवार स्वंय एवं राजधर्म की परिकल्पना हो इस पर मानस के आलोक में विस्तारपूर्वक पाथेय प्रदान किया तथा प्रो0 विनय पाठक कुलपति जी से आग्रह भी किया कि श्रीमद्भगवद्गीता वैदिक शोध पीठ की तरह जी तुलसी शोध पीठ की भी स्थापना की जाये।

सभागार मध्य संगोष्ठी की अध्यक्षता एवं आये हुये अतिथियों का स्वागत करते हुये प्रो0 विनय पाठक कुलपति द्वारा मुख्य अतिथि माननीय बृजेश पाठक जी को अवगत कराया कि विश्वविद्यालय में श्रीमद्भगवद्गीता पर शोध कार्य भी चल रहा है तथा आज हमारा सौभाग्य है कि जिस श्री राम के चरित्र का प्रकाश भारत ही नही वरन् पूरी दुनिया को प्रकाशित कर रहा है उसके प्रकाश को शब्दों का आकार देने वाले गोस्वामी तुलसीदास विश्वविद्यालय प्रांगण में स्थापित हो गये है इसका दिव्य एवं आलौकिक प्रभाव निश्चित ही पड़ने वाला है। श्रीमद्भगवद्गीता वैदिक न्यास के अध्यक्ष डा0 उमेश पालीवाल ने बताया कि आज सभागार में त्रेत्रा एवं द्वापर दोनो ही युगों के महानायकों के चरित्र एवं व्यक्तित्व पर विचार मंथन कर आये हुये विद्यतजनों द्वारा हमारे भविष्य के युवकों को अपने जीवन में श्रीराम एवं श्री कृष्ण के चरित्र को जीवन में उतारने की प्रेरणा देते हुये आशाव्सत की मानस एवं गीता का अध्ययन निश्चय ही जीवन में बदलाव लायेगी।

सनातन सेवा सत्संग उ0 प्र0 के अध्यक्ष आचार्य सुधीर भाई मिश्र जी ने सभा मध्य अवगत कराया कि विगत 12 वर्षो से समिति द्वारा लगातार गोस्वामी तुलसीदास जी की जंयती का आयोजन भव्य रूप से किया जा रहा है, विनय पाठक एवं डा0 उमेश पालीवाल के अदम्य उत्साह एवं सहयोग ने आज मूर्तरूप प्राप्त कर गोस्वामी तुलसीदास जी की भव्य प्रतिमा के रूप में अवतरित हुआ है।  विश्वविख्यात मानस मंयक पं0 अजय याज्ञनिक ने भव्य अनावरित गोस्वामी तुलसीदास जी की प्रतिमा के समक्ष संगीतमय दिव्य सुन्दरकाण्ड पाठ का मनोहारी गायन कर विश्वविद्यालय प्रांगण को राममय कर भावविभोर कर दिया। प्रो0 मनोज अवस्थी एवं अनिल गुप्ता जी द्वारा संगोष्ठी का सफल संचालन किया गया।

संगोष्ठी में प्रमुख रूप से बालयोगी अरूणपुरी जी महाराज, नरेन्द्र भदौरिया, मणि प्रसाद मिश्र, आई.ए.एस., डा0 अरूण दीक्षित, बलराम नरूला, हीरेन्द्र मुरझानी, परमानन्द शुक्ला, मुकेश पालीवाल, राजीव महाना, डा0 रोचना विश्नोई, प्रेम चन्द्र अग्निहोत्री, भूपेश अवस्थी, अमरनाथ, कमल त्रिवेदी, राजेन्द्र अवस्थी, डा. यु.सी. सिन्हा, के.के. शुक्ला, महेन्द्र सिंह, शशिधर अशोक तिवारी, अवध बिहारी मिश्र, तुषमूल मिश्रा, अखिलेश शुक्ला, डा. सुधीर अवस्थी, प्रो0 राजेश द्विवेदी, प्रशान्त मिश्रा, डा. योगेन्द्र, एडवो. सरला देवी, विजय पण्डित, पवन तिवारी, रामू मिश्रा, सुधीर शुक्ला, मनोज भदौरिया, अजय मिश्रा, चन्द्र प्रकाश पाण्डेय, अभय शंकर दुबे,ष्शरद मिश्रा, सुखदेव शुक्ला, उपेन्द्र मिश्रा, शेष नारायण त्रिवेदी, यमुना पाण्डेय, बृजेन्द्र दुबे, राजीव भट्ट, आर के दुबे, विजेन्द्र मक्कड़, अतुल अवस्थी, घनश्याम दीक्षित, शशिकान्त पाण्डेय, आशीष दीक्षित, महावी प्रसाद और गंगा राम आदि उपस्थित रहे।

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