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आजादी का अमृत महोत्सव और स्त्री

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– डॉ ० घनश्याम बादल

76वां स्वाधीनता आजादी के अमृत महोत्सव के रूप में सामने है ।   उम्मीदों के हिंडोले में  शिखर पर पंहुचने की उम्मीदें हर जश्न ए आज़ादी पर जग जगती हैं । हर बार उम्मीदें कहती हैं कि देश बदलेगा , हर बार सूरज के साथ आशाएं जगती हैं,चमक दिखती है बदलाव आते लगते हैं मगर नहीं बदलती तो बस स्त्री के तमस भरे जीवन की दास्तान।

खुश हैं  वामा ? :

आज भी औरत को आज़ादी  के 76 साल खुश नहीं करते । वही शासन का ढर्रा वही समाज , वही सोच , वही शोषणव कामुक निगाहें और सोच। जब हर बार सब वही तो फिर कैसे कहें कि स्त्री के हिस्से में भी आई है आज़ादी   की सुवासित बयार । स्त्री के सपनों को आधा अधूरा रहने व मरते जाने की पड़ताल करने की जरुरत है खास आज के दिन । आइए देखें , स्त्री के सपने क्या थे और क्या उसे मिला ?

पुरुष की जागीर ?  :

आजादी के 76 साल बाद भी पुरुष स्त्री को अपनी पुश्तैनी जागीर मानता है और अधिकांश पुरुष इसी मानसिकता के चलते औरत को ‘यूज’ एंड थ्रो ’ करने में गुरेज़ नहीं करते । भले ही वह उसे मां, बहन, बेटी, देवी व पूज्या जैसे विशेषण दें पर देखता उसे ‘भोग्या’ रूप में है और बंधनों से बाहर आने का प्रयास करने वाली हर औरत के पंख कतरने के पूरे पूरे प्रयास करता है  । तो क्या आज़ादी की 76 वीं बरसी पर हर वामा सपना देखे कि वह न भोग्या बने  न ही पूजा की रोली थाली । यदि उसे उसके हक व सम्मान मिलें जिसकी वह हक़दार है  तो ठीक वरना औरत के लिए इस आज़ादी के मतलब नहीं ही दिखते ।

घाव तन मन शोषण के :

कभी कहीं तो कभी कहीं रोज के बलात्कार या आत्महत्याओं के आंकड़े  महिलाओं के संदर्भ में दिल दहलाते है । मां, बेटी,बहन के साथ हाते गैंगरेप  से  हजारों लाखों बच्चियां ,किशोरियां , विवाहिताएं , कभी प्रेम के धोखे से कभी जबरदस्ती तो कभी बदले की हिंसक चाह से  यौनशोशण का शिकार बन रही हैं ।

यदि सच्चा आंकड़ा सामने आ जाए तो लगेगा कि जैसे देश को यौनाचार के अलावा दूसरा काम ही नही रहा । हर औरत कामना करती होगी कि यह वीभत्स सिलसिला हर हाल में रुके । पर क्या 76 वां साल उसे यह गिफ्ट दे पाएगा यह देखने वाली बात है ! देखें कब तक पूरा हो पाता है यह मानुषी का  अधूरा सपना ।

 मुंह पर ताला कब तक ?

अजीब सी बात है कि अभिव्याक्ति की आज़ादी   होने के बाद भी यादि किसी स्त्री ने गलती से भी अपने हक की बात कह दी तो हंगामा बरपना तय है । मुल्ले , मौलवी पंडे टूट पड़ते हैं उपदेशों के साथ , षरियत व मनु स्मृति तथा वेद पुराण जाग उठते हैं अधूरे व मनमाफिक विवेचनों के साथ । उसका जीना हराम हो जाता है।  स्त्री क्या करें , क्या कहे , क्या पहने सब तय करने बरदस्ती का हक छोड़ने कों तैयारी नही समाज । यें ताले  हटें तो आज़ादी  का कुछ मतलब निकले नारी के लिए । …. अन्यथा तो तुम्हे  यह छद्म आज़ादी उसके किस काम की  ?

कैसे लौटे संस्कारों का भारत ? :

तथाकथित बाबाओं, संतों, ब्यूरोक्रेटों, नेताओं, अभिनेताओं सब के नाम औरत को लूटने खसोटने में सामने आ रहे हैं । अब  लुटेरा कोई भी हो , पर लुट स्त्री ही रही है । कुछ  पैनी गिद्ध दृष्टियां हर पल स्त्री को डराती रहती है । अब जब तक यह डर कायम है तब तक तो कह नहीं सकते कि आजादी का अमृत महोत्सव मनाने का हक औरत को मिल गया है।

खुद ही काटे अपने पंख  ? :

सदियों तक पुरुश के लिए एक खिलौना रही है औरत । पहले खुद नोचा, फिर कोठो पर बैठाया । हालांकि उसके शोषण में खुद औरत का भी कम हाथ नहीं है , अपने स्वार्थ में  भटकी व मज़बूर लड़कियों  को सुनहरे खा़ब दिखाकर लुटवाने में औरों के साथ औरत का भी हाथ रहा है । 2022 में हर मानुषी दुआ करेगी ही कि ये संजाल टूटे और वह उन्मुक्त उड़ान भरने को स्वतंत्र व हो सके ।

सपने और हकीकत  :

आंकड़ों की दुनिया पर यकीन करें तों आज भारत  में  हर 5 में एक  महिला किसी न रूप में दैहिक या मानसिक शोषण  से पीड़ित है ,यदि गलती से भी यह आंकड़ा सच है तो यह औरतों की बदकिस्मती ही कही जाएगी । दुःख की बात है कि आज़ादी  के 76 साल बाद भी भारत महिलाओं के लिये दुनिया का चौथा सबसे खतरनाक देश आंका गया है और यहां के ‘देहबाजार’ का टर्नओवर किसी उद्योग से कहीं ज्यादा है इतनी रकम से देश भर में हर साल 2000 अस्पताल खुल सकते हें या 50000  स्कूल शुरू किए जा सकते हैं अगर ऐसा हो जाए तो न केवल औरत शोषण से बचेगी वरन् नई पीढ़ी को शिक्षा व स्वास्थ्य में एक नई किरण मिलेगी । काश इस सपने को सच कर पाए 76वां स्वतंत्रता दिवस।

नहीं मिली आर्थिक आज़ादी :

आज भले ही स्त्री कमाती है , घर चलाती है पर उसकी हथेली अपने ही कमाए पैसे के लिए भी दूसरों के आगे फैली रहती है । उसकी कमाई का सारा लेखा जोखा व  कब्जा रखता है उसका पति, बेटा या भाई यानि वही पुरुष । काम के क्षेत्र में भी उसके काम की कीमत पुरुष से कम ही आंकी जाती है , घर के उसके काम को तो काम ही नहीं माना जाता जबकि यदि बाजार मूल्य पर एक स्त्री के काम की कीमत आंकी जाए तो हर स्त्री रोजाना 700 रुपए से ज्यादा का काम करती है । रोटी बनाने से लेकर कपड़े धोने, बच्चे पालने, साज सफाई करने, सिलने, काढ़ने का काम यदि बाजार से कराया जाए तो हर महिने कम से कम 25000 रुपए खर्च होगे मर्द के । निस्संदेह इस बार स्त्री का सपना होगा कि वही अपने पैसे को अपने ढंग से रखे व खर्चे ।

कैसे छुए आसमान ? :

आज औरत ने तालीम ली है, ऊंची उड़ान भरी है पर अभी भी उसके पंख इतने मजबूत नहीं हुए हैं कि वह अकेले अपनी उड़ान पूरी कर सके इसलिए उसे पुरुष की जरुरत अभी भी है । पर, उसे  अपने वर्चस्व  के लिएलड़ना होगा तभी सच हो पाएगा असमान छूने का सपना ।

बोल कि आज़ाद हैं लब तेरे :

गांधीजी ने आज़ादी की जंग लड़ते वक्त कहा  था ‘यदि स्त्री को अनदेखा किया गया तो आज़ादी अधूरी होगी। ‘ आज हमें इस बात को न केवल स्वीकार करना होगा वरन् इस सपने को यथार्थ के धरातल पर भी उतारना होगा । अच्छा हो कि देश स्त्री के सपनों को पूरा करे , उसे  सुरक्षित, संपन्न व सम्मानजनक तथा आज़ाद  जीवन जीने का हक दे। तभी देश के  आधे हिस्से को सच्ची आजादी मिल पाएगी।

लेखक वरिष्ठ साहित्यकार हैं.

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