पटना (मा.स.स.). स्थानीय मर्चा-मिर्ची रोड स्थित केशव सरस्वती विद्या मंदिर परिसर में आयोजित भारतीय मजदूर संघ के 20वें अखिल भारतीय अधिवेशन में नयी कार्यसमिति का गठन किया गया. कार्यसमिति वर्ष 2023-2026 तक के लिए क्रियाशील रहेगी. चुनाव प्रभारी वसंत राव पिम्पलापुरे की देखरेख में चयनित नयी कार्यसमिति में हिरण्मय पंड्या (गुजरात) को अध्यक्ष, एस मलेशम (तेलंगाना), एम पी सिंह (उत्तर प्रदेश), के पी सिंह (मध्य प्रदेश), नीता चौबे (विदर्भ), सुखमिंदर सिंह डिक्की (पंजाब), एम जगदीश्वर राव (आंध्र प्रदेश) एवं राज बिहारी शर्मा (राजस्थान) को उपाध्यक्ष, रवींद्र हिमते (विदर्भ) को महामंत्री, सुरेंद्र कुमार पांडेय (छतीसगढ़) को उप महामंत्री, गिरिश चंद्र आर्या (दिल्ली), राम नाथ गणेशे (मध्य प्रदेश), अशोक कुमार शुक्ला (उत्तर प्रदेश), वी राधाकृष्णन (केरल), अंजली पटेल (उड़ीसा), नाबा कुमार गोगोई (असम) एवं राधे श्याम जायसवाल (छतीसगढ़) को मंत्री, श्रवण कुमार राठौड़ (राजस्थान) को वित्त सचिव एवं अनीश मिश्रा (दिल्ली) को सह वित्त सचिव बनाया गया है. बी. सुरेंद्रन को संगठन मंत्री एवं गणेश मिश्रा को सह संगठन मंत्री मनोनीत किया गया है. महामंत्री रवींद्र हिमते ने बताया कि सभी प्रदेश महामंत्री एवं महासंघ के महामंत्री स्थायी आमंत्रित सदस्य रहेंगे.
26 अप्रैल को जिला मुख्यालय पर धरनों का शंखनाद
भारतीय मजदूर संघ के अखिल भारतीय अधिवेशन में पारित चार प्रस्तावों के समर्थन में 26 अप्रैल को जिला मुख्यालयों पर धरना दिया जाएगा. धरना के उपरांत प्रधानमंत्री को प्रस्ताव की प्रति भेजी जाएगी. बी. सुरेंद्रन ने कहा कि न्यूनतम मजदूरी के स्थान पर जीविका मजदूरी देने, आर्थिक विकास के लिए राष्ट्रीय श्रम नीति बनाने, सामाजिक सुरक्षा का लाभ देने एवं ठेका प्रथा बंद करने की मांग को लेकर जिला मुख्यालय के समक्ष धरना दिया जाएगा. वंदे मातरम के साथ तीन दिवसीय अधिवेशन के समापन की घोषणा की गयी.
“आर्थिक विकास के लिए बने राष्ट्रीय श्रम नीति”, ‘न्यूनतम मजदूरी के स्थान पर तय हो जीविका मजदूरी’
भारतीय मजदूर संघ के 20वें राष्ट्रीय अधिवेशन में दो अन्य प्रस्ताव पारित किए. दोनों प्रस्ताव श्रमिक एवं श्रम हितकारी है. राज बिहारी शर्मा ने प्रस्ताव रखा कि ‘आर्थिक विकास के लिए राष्ट्रीय श्रम नीति बने.’ अर्थव्यवस्था का दो प्रमुख आधार हैं – पूंजी और श्रम. आर्थिक विकास में पूंजी और श्रम की अहम भूमिका होती है. किंतु, आर्थिक विकास से अर्जित लाभ पर पूंजी का एकतरफा अधिकार रहता है और श्रम उपेक्षित रह जाता है. समृद्ध और खुशहाल श्रम की आवश्यकता की वकालत करते हुए आर्थिक विकास के लिए राष्ट्रीय श्रम नीति बनाने की आवश्यकता पर बल दिया.
शिल्पा देशपांडे ने न्यूनतम मजदूरी के स्थान पर जीविका मजदूरी देने का प्रस्ताव रखा. जनकल्याण के वैधानिक दायित्व के निर्वहन के लिए देश की आर्थिक नीति में न्यूनतम मजदूरी के स्थान पर जीविका मजदूरी तय किया जाए, क्योंकि भारत जैसे देश को गरीबी उन्मूलन के लिए वर्तमान मजदूरी की जगह जीविका मजदूरी तय करना आज की आवश्यकता है.
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