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समय पर न्याय मिले इसलिए हमनें पुलिस, प्रॉसीक्यूशन और ज्यूडिश्यरी को समयसीमा से बांधा : अमित शाह

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केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह ने नए आपराधिक कानूनों के सफलतापूर्वक एक वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में आज नई दिल्ली में आयोजित ‘न्याय प्रणाली में विश्वास का स्वर्णिम वर्ष’ कार्यक्रम को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित किया। इस अवसर पर दिल्ली के उपराज्यपाल श्री वी के सक्सेना, मुख्यमंत्री श्रीमती रेखा गुप्ता, केन्द्रीय गृह सचिव और निदेशक, आसूचना ब्यूरो सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

श्री अमित शाह ने कहा कि नए आपराधिक क़ानूनों पर आज एक प्रदर्शनी का उद्घाटन भी किया गया है। उन्होंने कहा कि जब यह प्रदर्शनी चंडीगढ़ में लगाई गई थी तब प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने केन्द्रीय गृह सचिव श्री गोविंद मोहन जी से इस प्रदर्शनी को देश के हर राज्य में लगाने को कहा था ताकि पत्रकार, वरिष्ठ पुलिस अधिकारी, बार एसोसिएशन के सभी सदस्य, सभी न्यायिक अधिकारी और विशेषकर स्कूल और कॉलेज के विद्यार्थी इसे देखकर नए आपराधिक क़ानूनों के बारे में जान सकें। श्री शाह ने भारत सरकार के गृह सचिव और उनकी पूरी टीम को इस महत्वपूर्ण प्रदर्शनी के लिए बधाई दी।

केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में लाए गए तीन नए आपराधिक कानून affordable, accessible और approachable होने के साथ ही न्यायिक प्रक्रिया को सरल, सुसंगत और पारदर्शी भी बनाएंगे। मोदी जी के नेतृत्व में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय से युक्त शासन का एक स्वर्णिम कालखंड शुरु होने वाला है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में आने वाले दिनों में हमारा क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम एक नए युग में प्रवेश करेगा और इससे से लोगों के मन में निश्चित रूप तुरंत न्याय मिलने का विश्वास पैदा होगा। उन्होंने कहा कि नए कानूनों से ‘FIR करेंगे तो क्या होगा’ की जगह ‘FIR से तुरंत न्याय मिलेगा’ का विश्वास बढ़ेगा।

श्री अमित शाह ने कहा कि नए आपराधिक कानून आने वाले दिनों में भारतीय क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम को आमूलचूल रूप से बदल देंगे। उन्होंने कहा कि पहले हमारी न्याय प्रणाली के सामने सबसे बड़ी समस्या यह थी कि किसी को नहीं पता था कि न्याय कब मिलेगा। गृह मंत्री ने कहा कि लगभग 3 साल में इन कानूनों के पूर्ण क्रियान्वयन के बाद देशभर में किसी भी FIR में सुप्रीम कोर्ट तक न्याय मिलेगा। उन्होंने कहा कि इन कानूनों में नागरिकों को न्याय दिलाने के तीनों महत्वपूर्ण अंगों – पुलिस, प्रॉसीक्यूशन और ज्यूडिश्यरी – को कई जगह पर समयसीमा से बांधा गया है। श्री शाह ने कहा कि नए कानूनों में 90 दिनों में जांच पूरी करने, चार्जशीट दाखिल करने और चार्ज फ्रेम करने और जजमेंट देने का समय भी तय किया गया है।

केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि नए कानूनों में तकनीक के आधार पर कई ऐसे प्रावधान भी किए गए हैं जिनके अमल में आने के बाद शंकाओं के आधार पर अपराध कर बच निकलने वाले लोगों के लिए कोई संभावना नहीं छोड़ी गई है। उन्होंने कहा कि नई आपराधिक प्रणाली लागू होने के बाद हमारे देश की दोष सिद्धि दर बहुत आगे पहुंच जाएगी और गुनाहगार को निश्चित रूप से सज़ा मिलेगी। श्री शाह ने कहा कि तीनों नए कानूनों पर पूर्ण अमल के बाद तकनीक के उपयोग के साथ हमारी न्याय प्रणाली विश्व की सबसे आधुनिक न्याय प्रणाली होगी।

श्री अमित शाह ने कहा कि लगभग 89 देशों की न्याय प्रणाली का अध्ययन कर और उनमें से तकनीक के उपयोग को कानूनी आधार देकर इन कानूनों में समावेश किया गया है। मोदी सरकार ने इन कानूनों को भारतीय दृष्टिकोण से बनाया है। उन्होंने कहा कि पहले के कानूनों को अंग्रेज़ों ने अपने शासन को लंबा चलाने के लिए इंग्लैंड की संसद में बनाया था जबकि नए आपराधिक कानून प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में भारत की जनता द्वारा चुनी हुई सरकार ने भारतीय नागरिकों के लिए बनाए हैं। गृह मंत्री ने कहा कि पुराने कानूनों का मकसद अंग्रेज़ सरकार के लंबा शासन कराना और उनकी संपत्ति की रक्षा करना था। जबकि नए कानून बनाने का मकसद भारतीय नागरिकों के शरीर, संपत्ति और संविधानप्रदत्त सभी अधिकारों की रक्षा करना है।

केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि अब IPC की जगह भारतीय न्याय संहिता, CrPCकी जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और Indian Evidence Act की जगह भारतीय साक्ष्य अधिनियम के नाम से ही पता चलता है कि इन कानूनों का लक्ष्य दंड नहीं बल्कि न्याय देना है। उन्होंने कहा कि यह भारत की न्याय यात्रा का स्वर्णिम अवसर बनने वाला है। अब बदलाव कागजी नहीं रहा है क्योंकि इन कानूनों में तकनीक के समावेश पर भारत सरकार और राज्य सरकारों ने करोड़ो रुपए खर्च किए हैं। श्री शाह ने कहा कि हमने 7 साल और उससे अधिक सज़ा वाले हर अपराध में फोरेंसिक जांच को अनिवार्य कर दिया है और अब NAFIS का उपयोग भी बहुत अच्छे तरीके से होने लगा है। इसी प्रकार POCSO के मामले में DNA का मिलान गुनाह करने वाले को किसी भी तरह से बचने की जगह नहीं देता है।

श्री अमित शाह ने कहा कि पिछले एक साल में लगभग 14 लाख 80 हज़ार पुलिसकर्मियों, 42 हज़ार जेलकर्मियों, 19 हज़ार से अधिक न्यायिक अधिकारियों और 11 हज़ार से अधिक पब्लिक प्रॉसीक्यूटर्स का प्रशिक्षण हुआ है। उन्होंने कहा कि हमने पिछले एक साल में लगातार रिव्यू बैठकें की हैं और 23 राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों ने शत-प्रतिशत क्षमता निर्माण का काम पूरा कर दिया है। 11 राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों में ई-साक्ष्य और  ई-समन, 6 राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों में न्याय श्रुति और 12 राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों में सामुदायिक सेवा की अधिसूचना जारी कर दी गई है। उन्होंने कहा कि सभी राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों में इन कानूनों पर सबसे अच्छा और जल्दी अमल दिल्ली सरकार ने किया है।

केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि नए कानूनों के अमल में गहन परामर्श कर छोटे-छोटे छिद्रों को भरने का काम किया गया है और मल्टी स्टेकहोल्डर अप्रोच के साथ बहुत काम हुआ है। श्री शाह ने  कहा कि उन्होंने स्वयं इन कानूनों पर 160 बैठकें की। उन्होंने कहा कि 2019 में हमने सभी राज्यपालों, उपराज्यपालों, मुख्यमंत्रियों, प्रशासकों, मुख्य न्यायधीशों, बार काउंसिल और विधि विश्वविद्यालयों के सुझाव मांगे थे औऱ BPR&D ने सभी IPS अधिकारियों से भी सुझाव मांगे गए। उन्होंने कहा कि इसके बाद एक समिति गठित कर एक-एक धारा को पढ़ कर और सभी सुझावों पर विचार कर इन कानूनों को अमली जामा पहनाया गया है।

श्री अमित शाह ने कहा कि इन कानूनों में बच्चो और महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर अलग अध्याय जोड़ा गया है। पहली बार आतंकवाद की व्याख्या की गई है और संगठित अपराध को भी व्याख्यायित कर कठोर दंड का प्रावधान किया गया है। उन्होंने कहा कि नए कानूनों में डायरेक्टर ऑफ प्रॉसीक्यूशन का भी प्रावधान किया गया है जिससे सज़ा कराने की दर में बहुत वृद्धि होगी।

केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि अकेले पुलिस और भारत सरकार का गृह मंत्रालय यह सब नहीं कर सकता। नए कानूनों के सफलतापूर्वक और प्रभावी क्रियान्वयन के लिए जागरूकता और जनता को अपने अधिकारों की जानकारी होना बहुत जरूरी है। श्री शाह ने कहा कि जब भी इन कानूनों का विश्लेषण होगा, तब इन्हे आज़ादी के बाद का सबसे बड़ा रिफॉर्म माना जाएगा क्योंकि जनता के अधिकारों की रक्षा करने वाली न्याय प्रणाली को पारदर्शी, लोकोपयोगी और समयबबद्ध बनाने से बड़ा रिफॉर्म कोई नहीं हो सकता।

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