नई दिल्ली. श्रीनगर में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच शिया समुदाय ने पारंपरिक 8वें मुहर्रम का जुलूस निकाला. यह जुलूस गुरु बाजार से शुरू होकर लाल चौक और एमए रोड से होते हुए डलगेट तक पहुंचा. पूरे मार्ग को यातायात से मुक्त रखा गया था ताकि जुलूस शांतिपूर्वक संपन्न हो सके. प्रशासन ने कुछ जरूरी दिशा निर्देश जारी किए थे हालांकि ताजिया के आकार पर कोई प्रतिबंध नहीं था. लेकिन इस बीच नया विवाद हो गया.
ईरान और फिलिस्तीन के झंडे लहराए..
असल में जुलूस के दौरान बड़ी संख्या में शिया श्रद्धालुओं ने ईरान और फिलिस्तीन के झंडे लहराए और हिजबुल्लाह के समर्थन में बैनर और तस्वीरें भी प्रदर्शित कीं. इसमें ईरान के सर्वोच्च नेता सैयद अली खामेनेई.. हसन नसरुल्लाह और अयातुल्ला खक्मेनी की तस्वीरें शामिल थीं. यह सब उस चेतावनी के बावजूद हुआ जो पुलिस ने पहले ही जारी कर दी थी कि किसी विदेशी झंडे या राजनीतिक नेता की तस्वीर न दिखाई जाए.
एकजुटता दिखाने का प्रतीक?
शिया समुदाय ने इस प्रदर्शन को एक भावनात्मक और ऐतिहासिक संबंध से जोड़ा. उनका कहना है कि कश्मीर के शिया ईरान और फिलिस्तीन के भू राजनीतिक संघर्षों को वर्षों से अपना समर्थन देते आए हैं और इसे उत्पीड़न के खिलाफ प्रतिरोध का प्रतीक मानते हैं. उनका यह भी कहना कि यह समर्थन धर्म और इंसानियत के पक्ष में एकजुटता दिखाने का प्रतीक है.
मालूम हो कि 1991 से 2023 तक आतंकवाद के चलते इस 8वें दिन के मुहर्रम जुलूस पर प्रतिबंध लगा हुआ था. लेकिन पिछले साल 2023 में उपराज्यपाल प्रशासन ने कहा कि अब हालात सामान्य हैं इसलिए इस ऐतिहासिक जुलूस की अनुमति फिर से दी गई. तब से यह जुलूस दोबारा उसी पारंपरिक मार्ग से निकाला जा रहा है जो दशकों से बंद था.
साभार : जी न्यूज
भारत : 1885 से 1950 (इतिहास पर एक दृष्टि) व/या भारत : 1857 से 1957 (इतिहास पर एक दृष्टि) पुस्तक अपने घर/कार्यालय पर मंगाने के लिए आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सकते हैं
Matribhumisamachar


