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कृषि क्षेत्र में उत्पन्न हो रहे हैं रोजगार के नए अवसर

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– प्रहलाद सबनानी

भारत में लगभग 60 प्रतिशत से अधिक आबादी ग्रामीण इलाकों में निवास करती है। इसलिए यह बहुत आवश्यक है कि रोजगार के अधिक से अधिक अवसर भी गावों में ही निर्मित होने चाहिए, अन्यथा गावों से शहरों की ओर नागरिकों का पलायन जारी रहेगा और शहरों पर जनसंख्या का दबाव बढ़ता रहेगा। केंद्र सरकार की सफल आर्थिक नीतियों के चलते अब ग्रामीण इलाकों में भी बेरोजगारी की दर लगातार कम हो रही है, क्योंकि अब ग्रामों में भी रोजगार के अवसर अधिक संख्या में निर्मित हो रहे हैं। भारत में आज न केवल दुग्ध क्रांति हुई है बल्कि कृषि एवं परिष्कृत खाद्य उत्पादों का निर्यात भी बहुत तेज गति से आगे बढ़ रहा है।

भारत आज दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो गया है। भारत में करीब 8 करोड़ परिवार दुग्ध उत्पादन और इसके व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। देश में प्रति वर्ष लगभग 9.5 लाख करोड़ रुपए की कीमत का दूध का उत्पादन होता है। 1974 में भारत सिर्फ 2.3 करोड़ टन दूध का उत्पादन करता था, जो हमारी घरेलू जरूरतों से भी कम था। लेकिन आज 2022 में भारत का दूध उत्पादन करीब दस गुना बढ़कर 22 करोड़ टन हो गया है और आज भारत दूध का  निर्यात करने की बेहतर स्थिति में आ गया है। भारत 23 प्रतिशत दूध उत्पादन के साथ दुनिया का नंबर एक उत्पादक बन गया है एवं भारत के बाद अमेरिका, चीन, पाकिस्तान एवं ब्राजील का नाम आता है। पिछले 8 वर्षों के दौरान भारतीय डेयरी उद्योग ने 44 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल करते हुए वर्ष 2014-15 में 14.63 करोड़ टन से बढ़कर वर्ष 2020-21 में 21 करोड़ टन का उत्पादन हुआ है। भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र से डेयरी उद्योग आज 4 प्रतिशत का योगदान कर रहा है, जो कृषि क्षेत्र की विभिन्न मदों में सबसे अधिक है। लगभग 7 करोड़ कृषक आज सीधे ही डेयरी क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं एवं इस क्षेत्र में रोजगार प्राप्त कर रहे हैं।

भारत कृषि क्षेत्र के विभिन्न उत्पादों के उत्पादन के मामले में भी वैश्विक स्तर पर अपनी स्थिति में लगातार सुधार कर रहा है। जैसे इस वर्ष भारत, चीन के बाद, दुनिया का सबसे बड़ा दूसरा चाय उत्पादक देश बन गया है। आज भारत प्रति वर्ष 13 लाख टन चाय का उत्पादन कर रहा है। चाय उत्पादन के साथ ही मछली उत्पादन के क्षेत्र में भी भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा  उत्पादक देश बन गया है। मछली का उत्पादन करने वाले किसानों और मछुआरों की आय को दोगुना करने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने 10 सितंबर 2020 में ‘प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा’ योजना शुरू की थी। मत्स्य पालन के क्षेत्र में 2019-20 से लेकर 2021-22 तक 14.3 प्रतिशत की प्रभावी वृद्धि देखी गई है। भारत 47,000 करोड़ रुपये से अधिक की मछलियों का निर्यात करता है। वर्ष 2020-21 में भारत का सी-फूड निर्यात 11.50 लाख मीट्रिक टन का रहा है।

भारतीय अर्थव्यवस्था, विशेष रूप से कृषि के क्षेत्र, में उक्त वर्णित संवर्धनों के चलते हाल ही के वर्षों में भारत में गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे लोगों की संख्या में अच्छी खासी कमी दर्ज की गई है। वर्ष 2011-12 में भारत में गरीबी का अनुपात 21.9 प्रतिशत था जो वर्ष 2020-21 में घटकर 17.9 प्रतिशत हो गया है। गरीबी के अनुपात में लगातार आ रही कमी मुख्य रूप से भारत की प्रति व्यक्ति औसत आय में लगातार हो रही तेज वृद्धि के कारण सम्भव हो सकी है। भारत में प्रति व्यक्ति औसत आय वर्ष 2001-02 में केवल 18,118 रुपए थी जो एक दशक पश्चात अर्थात वर्ष 2011-12 में बढ़कर 68,845 रुपए हो गई।

इसके बाद के 10 वर्षों में तो और अधिक तेज गति से वृद्धि दर्ज करते हुए वर्ष 2021-22 में यह 174,024 रुपए हो गई है। भारत की प्रति व्यक्ति औसत आय में वृद्धि, गरीब वर्ग की औसत आय में हो रही तेज वृद्धि के कारण भी सम्भव हो पा रही है। एक अन्य शोधपत्र में भी यह बताया गया है कि बहुत छोटी जोत वाले किसानों की वास्तविक आय में 2013 और 2019 के बीच वार्षिक 10 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है वहीं अधिक बड़ी जोत वाले किसानों की वास्तविक आय में केवल 2 प्रतिशत की वृद्धि प्रतिवर्ष दर्ज हुई है। दूसरे, भारत में वित्तीय वर्ष 2021-22 में सकल घरेलू उत्पाद का मूल्य 232.15 लाख करोड़ रुपए (अनुमानित) रहा है जो कि वित्तीय वर्ष 2020-21 में 197.46 लाख करोड़ रुपए (अनुमानित) से बहुत अधिक है। इस प्रकार अप्रत्यक्ष रूप से भारतीय नागरिकों की आय में 17.6 प्रतिशत की अनुमानित वृद्धि वित्तीय वर्ष 2021-22 के दौरान रही है।

आज जहां पूरी दुनिया में खाद्यान्न का संकट गहराता जा रहा है, वहीं भारत खाद्यान्न उत्पादन में नए-नए कीर्तिमान बना रहा है। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने वर्ष 2021-22 के लिए मुख्य कृषि फसलों के उत्पादन के तृतीय अग्रिम अनुमान जारी किए हैं। इसके अनुसार भारत में 31.451 करोड़ टन खाद्यान के उत्पादन का अनुमान है, जो वर्ष 2020-21 के दौरान के खाद्यान्न उत्पादन की तुलना में 37.7 लाख टन अधिक है। वर्ष 2021-22 के दौरान खाद्यान्न उत्पादन पिछले 5 वर्षों के औसत खाद्यान्न उत्पादन की तुलना में 2.38 करोड़ टन अधिक है। भारत के लिए यह एक नया कीर्तिमान होगा। इसी प्रकार, केंद्र सरकार ने चालू वित्त वर्ष 2022-23 में 32.8 करोड़ टन रिकॉर्ड खाद्य उत्पादन का लक्ष्य रखा है। जो पिछले वर्ष के मुकाबले 3.8 प्रतिशत अधिक है।

एक अनुमान के अनुसार भारत में वर्ष 2021-22 में बागवानी का उत्पादन 34.2 करोड़ टन होने जा रहा है। यह 2.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए 70.3 लाख टन से बढ़ने जा रहा है। जो वर्ष 2020-21 में 33.46 करोड़ टन पर रहा था। फलों का उत्पादन वर्ष 2020-21 के 10.25 करोड़ टन से बढ़कर वर्ष 2021-22 में 10.71 करोड़ टन पर पहुंचने की सम्भावना है और सब्ज़ियों का उत्पादन वर्ष 2020-21 के 2.66 करोड़ टन से बढ़कर 3.17 करोड़ टन पर पहुंचने की सम्भावना है। बागवानी के तेजी से बढ़ रहे उत्पादन से किसानों की आय में अधिक वृद्धि दृष्टिगोचर हो रही है।

कुल मिलाकर यह देखने में आ रहा है कि भारत के किसान अब सम्पन्न हो रहे हैं एवं भारत के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र का योगदान 14.2 प्रतिशत से बढ़कर 18.8 प्रतिशत हो गया है। अभी हाल ही में भारतीय स्टेट बैंक द्वारा जारी किए गए एक प्रतिवेदन में यह बताया गया है कि भारत में कृषि उत्पादों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में भी वर्ष 2014 के बाद से 1.5 से 2.3 गुना तक की वृद्धि दर्ज हुई है। इससे किसान अधिक समर्थन मूल्य वाली फसलों का उत्पादन बढ़ा रहे हैं एवं अपनी आय में तेज गति से वृद्धि करने में सफल हो रहे हैं। इसी प्रकार, भारत से अनाज का निर्यात भी वित्तीय वर्ष 2021-22 में बढ़कर 5000 करोड़ अमेरिकी डॉलर से भी अधिक हो गया है।

प्रति व्यक्ति औसत आय में हो रही वृद्धि के चलते भारत में बेरोजगारी की दर में भी कमी दृष्टिगोचर है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनामी (सीएमआईई) द्वारा मासिक अंतराल पर जारी किए जाने वाले रोजगार सम्बंधी आंकड़ों के अनुसार, भारत में बेरोजगारी की दर फरवरी 2022 माह में 8.10 प्रतिशत थी, जो मार्च 2022 माह में घटकर 7.6 प्रतिशत रह गई एवं 2 अप्रैल 2022 को यह अनुपात और घटकर 7.5 प्रतिशत रह गया। एक अन्य अनुमान के अनुसार, वर्तमान समय में भारत में संगठित क्षेत्र में नौकरियां (सरकारी, अर्द्धसरकारी व निजी क्षेत्र) केवल 6-7 प्रतिशत ही उपलब्ध हैं तथा असंगठित क्षेत्र में (कच्ची, ठेके पर, दिहाड़ी पर) एवं अन्य सभी क्षेत्रों की मिलाकर कुल 20-21 प्रतिशत तक ही उपलब्ध होती हैं। इस प्रकार देश में शेष 79-80 प्रतिशत लोग कृषि, लघु एवं कुटीर उद्योगों तथा स्वरोजगार जैसे क्षेत्रों में अपना रोजगार प्राप्त कर रहे हैं, जिसमें कृषि क्षेत्र का विशेष योगदान देखा जा रहा है।

लेखक आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं.

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