– प्रहलाद सबनानी
अभी हाल ही में, 15 जून 2022 को, स्विटजरलैंड स्थित प्रबंधन विकास संस्थान (इन्स्टिटयूट फोर मेनेजमेंट डेवलपमेंट) द्वारा विश्व प्रतिस्पर्धात्मकता सूचकांक जारी किया गया है। इस सूचकांक में भारत ने, एशिया के सभी देशों के बीच, सबसे लम्बी छलांग लगाते हुए पिछले वर्ष के 43वें स्थान से इस वर्ष 37वां स्थान प्राप्त किया है। उक्त सूचकांक में भारत की यह लम्बी छलांग विशेष रूप से आर्थिक क्षेत्र में किए जा रहे कई महत्वपूर्ण सुधार कार्यक्रमों के चलते सम्भव हो सकी है।
वर्ष 1989 से ही प्रबंधन विकास संस्थान, स्विटजरलैंड अपने वार्षिक प्रतिवेदन में विश्व के कई देशों की प्रतिस्पर्धात्मकता की स्थिति को दर्शाता आ रहा है। इस सूची में शामिल देश, लम्बी अवधि के लिए अपनी उपयोगिता के निर्माण हेतु, किस प्रकार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने आप को प्रतिस्पर्धी बनाने में सक्षम रहते हैं, इसका आंकलन इस प्रतिवेदन में दर्शाया जाता है और यह आंकलन मुख्य रूप से निम्नलिखित चार तत्वों पर आधारित रहता है – 1. देश में आर्थिक विकास की स्थिति, 2. देश में शासकीय कुशलता की स्थिति, 3. देश में व्यवसायिक कुशलता की स्थिति एवं 4. देश में अधोसंरचना के विकास की स्थिति। उक्त चार तत्वों के अंतर्गत कई उपकारक भी शामिल किए जाते हैं एवं इन उपकारकों की कसौटी पर भी प्रत्येक देश की स्थिति का आंकलन किया जाता है।
वर्ष 2022 में प्रबंधन विकास संस्थान, स्विटजरलैंड द्वारा विश्व के कुल 63 देशों का आंकलन, उक्त वर्णित 4 तत्वों के आधार पर, विश्व प्रतिस्पर्धात्मकता सूचकांक के लिए किया गया है। वैश्विक स्तर पर डेनमार्क ने अपनी स्थिति में सुधार करते हुए वर्ष 2021 में प्राप्त किए गए तीसरे स्थान से वर्ष 2022 में प्रथम स्थान प्राप्त किया है। द्वितीय स्थान पर स्विटजरलैंड एवं तृतीय स्थान पर सिंगापुर रहा है। एशियाई देशों में से जो देश इस सूची में अपना स्थान प्राप्त कर सके हैं वे हैं, सिंगापुर (3), हांगकांग (5), ताईवान (7), चीन (17) एवं आस्ट्रेलिया (19)।
उक्तवर्णित चार तत्वों के आधार पर भारत के निष्पादन में वर्ष 2022 में सुधार दृष्टिगोचर हुआ है। आर्थिक विकास के क्षेत्र में भारत ने अपनी स्थिति को मजबूत करते हुए वर्ष 2021 में 37वें स्थान से वर्ष 2022 में 28वां स्थान प्राप्त किया है। भारत ने शासकीय कुशलता की स्थिति में भी सुधार करते हुए वर्ष 2021 में 46वें स्थान से वर्ष 2022 में 45वां स्थान प्राप्त किया है। इसी प्रकार भारत ने व्यवसायिक कुशलता की स्थिति में भी सुधार करते हुए वर्ष 2021 में 32वें स्थान से वर्ष 2022 में 23वां स्थान प्राप्त किया है।
श्रम बाजार व्यावसायिक दक्षता पैरामीटर और व्यावसायिक कुशलता में एक प्रमुख उप-कारक है और भारत श्रम बाजार के क्षेत्र में वर्ष 2021 में 15वें स्थान से वर्ष 2022 में 6वें स्थान पर पहुंच गया है। हालांकि, उक्त सूचकांक प्रतिवेदन के अनुसार वर्ष 2022 में अधोसंरचना विकास के क्षेत्र में भारत की स्थिति में कोई विशेष सुधार नहीं हुआ है अतः भारत का स्थान वर्ष 2021 एवं वर्ष 2022 में 49वें स्थान पर कायम रहा है। विश्व प्रतिस्पर्धात्मकता सूचकांक में वर्ष 2022 में भारत की स्थिति में सुधार मुख्य रूप से भारत सरकार द्वारा आर्थिक सुधार कार्यक्रमों के अंतर्गत लिए गए कई निर्णयों के कारण ही सम्भव हो सका है।
जैसे वर्ष 2021 में पूर्व प्रभावी टैक्स (रेट्रॉस्पेक्टिव टैक्स) के क्षेत्र में किए गए सुधार कार्यक्रम लागू करते हुए, ड्रोन, स्पेस एवं भू-स्थानिक मानचित्रण और अंतरिक्ष जैसे क्षेत्रों में भारत के पुनः विनियमन ने भी विश्व प्रतिस्पर्धात्मक सूचकांक में भारत के शानदार प्रदर्शन में अहम भूमिका निभाई है। वैश्विक स्तर पर फैली कोरोना महामारी के बाद भारत ने व्यापारिक समुदाय का विश्वास बहाल किया है। साथ ही, भारत जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए वैश्विक आंदोलन में आज एक प्रेरक शक्ति भी बन गया है और भारत द्वारा जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में किए जा कार्यों के चलते एवं सीओपी26 शिखर सम्मेलन में वर्ष 2070 तक शून्य कार्बन गैसों के उत्सर्जन सम्बंधी दिए गए वचन को पूरा करने हेतु विभिन्न स्तरों पर प्रारम्भ किए गए कार्यों के कारण भी भारत को विश्व प्रतिस्पर्धात्मक सूचकांक में छलांग लगाने में सफलता मिली है।
भारत में आर्थिक विकास की कहानी कुछ इस प्रकार वर्णित की जा सकती है कि मोबाइल टेलीफोन की लागत भारत में आज लगभग न्यूनतम है, भारत आज सूचना प्रौद्योगिकी का पूरे विश्व को निर्यात करने के मामले में अग्रणी देश बन गया है, विदेशी व्यापार, विशेष रूप से निर्यात के क्षेत्र में हो रहे विकास, सेवा क्षेत्र में उच्च पारिश्रमिक की दरें एवं टेलिकॉम उद्योग में पर्याप्त निवेश होना, आदि को भारत की मजबूती के कारकों में शामिल किया जा सकता है। शासकीय कुशलता में सुधार को केंद्र सरकार द्वारा वित्तीय संसाधनों के बहुत ही कुशल तरीके से किये जा रहे प्रबंधन के रूप में वर्णित किया गया है। कोरोना महामारी के बीच भी वित्तीय संतुलन बनाए रखा जा सका है एवं वित्तीय घाटे को भी काबू में रखा जा सका है। हालांकि, कोरोना महामारी के दौर में केंद्र सरकार ने गरीब वर्ग की भरपूर मदद भी की है।
भारतीय अर्थव्यवस्था में व्यापार के लिए के कुछ आकर्षक कारक भी गिनाए जा सकते हैं। जैसे – कुशल कार्यबल, अर्थव्यवस्था की गतिशीलता, लागत प्रतिस्पर्धा, सकारात्मक दृष्टिकोण और उच्च शैक्षिक स्तर। इसी प्रकार कुछ ऐसे क्षेत्र भी चिन्हित किए जा सकते हैं, जिनमे भारत को अभी और अधिक सुधार करने की आवश्यकता है। जैसे – भारत को ऊर्जा सुरक्षा के प्रबंधन में अभी कसावट लाना होगी क्योंकि भारत में हो रहे तेज आर्थिक विकास के चलते ऊर्जा की मांग भी उतनी ही तेजी से बढ़ रही है। देश के युवाओं में कौशल विकास करना एवं उनके लिए रोजगार के उचित अवसर निर्मित करना। अधोसंरचना विकसित करने हेतु पर्याप्त मात्रा में संसाधन जुटाना एवं सरकारी सम्पत्तियों के मौद्रीकरण के कार्य को तेजी से आगे बढ़ाना, आदि।
भारत द्वारा आगे आने वाले वर्षों में विश्व प्रतिस्पर्धात्मकता सूचकांक में अपनी स्थिति को और अधिक मजबूत करने के उद्देश्य से कई उपाय किया जा रहे हैं। भारत ने हाल ही में विनिर्माण के क्षेत्र में विकास की गति को तेज करने हेतु कई कदम उठाए हैं, जिनमे शामिल हैं, आत्मनिर्भर भारत एवं मेक इन इंडिया जैसी योजनाओं को प्रारम्भ करना जिसके अंतर्गत सप्लाई चैन को मजबूत बनाकर, विनिर्माण इकाईयों में अधिक से अधिक निवेश आकर्षित कर, देश में नई विनिर्माण इकाईयों की स्थापना की जा सके। उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना को भी इसी उद्देश्य से लागू किया गया है। इससे देश में निर्मित वस्तुओं के निर्यात में भी वृद्धि दर्ज होगी।
तकनीकी विकास हेतु भी भारत में लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। देश में 6जी टेक्नॉलाजी को लागू करने के उद्देश्य से भारत सरकार के टेलिकॉम विभाग ने 6 टास्क फोर्स का गठन भी कर लिया है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर टेक्नॉलाजी गवर्नन्स के लिए बनाए गए विभिन्न प्लेटफोर्म पर भी भारत का विदेश विभाग बहुत सक्रिय भूमिका अदा कर रहा है। भारत न केवल आर्थिक विकास पर पूरा ध्यान केंद्रित किए हुए है बल्कि इस आर्थिक विकास का लाभ अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति तक भी पहुंचे इस ओर भी पूरा पूरा ध्यान दिया जा रहा है ताकि देश की कुल उत्पादकता में वृद्धि दर्ज करते हुए देश को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाया जा सके और देश के नागरिकों के बीच अंततः खुशहाली लाई जा सके।
लेखक आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं.
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