– प्रहलाद सबनानी
बीते कुछ वर्षों में कंकरीट की इमारतों में इजाफे और भूमि प्रयोग में बदलाव की वजह से भारत में तापमान लगातार बढ़ रहा है। देश के शहरों में अर्बन हीट आइलैंड बढ़ रहे हैं। अर्बन हीट आइलैंड वह क्षेत्र होता है जहां अगल-बगल के इलाकों से अधिक तापमान रहता है। कई स्थानों पर अधिक ज्यादा गर्मी होने के पीछे अपर्याप्त हरियाली, ज्यादा आबादी, घने बसे घर और इंसानी गतिविधियां जैसे गाडियों और गैजेट से निकलने वाली हीट हो सकती है। कार्बन डाईआक्साइड और मेथेन जैसी ग्रीन हाउस गैसें और कूड़ा जलाने से भी गर्मी बढ़ती है। राजधानी दिल्ली का उदाहरण हमारे सामने है। जहां चारों दिशाओं में बने डंपिंग यार्डों में आग लगी ही रहती है और लोगों का सांस लेना भी दूभर हो रहा है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि मानव ने अपनी जिंदगी को आसान बनाने के लिए जितना पर्यावरण को नुक्सान पहुंचाया है उसका परिणाम आज उसे ही भुगतना भी पड़ रहा है। कई देशों में तो भयंकर गर्मी में वहां के जंगलों में आग लगने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं जिनसे जान और माल की भारी हानि हो रही है। हम पर्यावरण के सम्बंध में बढ़ चढ़ कर चर्चाएं करते हैं परंतु आज हमारे गावों में खेत, प्लाटों में परिवर्तित हो गए हैं। हमारे खेतों पर शोपिंग काम्प्लेक्स एवं माॅल खड़े हो गए हैं जिससे हरियाली लगातार कम होती जा रही है।
विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों से पर्यावरण संरक्षण का आग्रह करते हुए कहा था कि देश में मिट्टी को कैमिकल मुक्त बनाने के प्रयास किए जाने चाहिए। इसी क्रम में, मिट्टी बचाओ आंदोलन पर आयोजित कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने पिछले आठ साल से चल रही योजनाओं का उल्लेख करते हुए पांच प्रमुख बातों पर फोकस किया था। पहला मिट्टी को कैमिकल मुक्त कैसे बनाया जाए, दूसरा मिट्टी में जो जीव रहते हैं उन्हें कैसे बचाया जाए, तीसरा मिट्टी की नमी को कैसे बचाया जाए और उस तक जल की उपलब्धता कैसे बढ़ाई जाए, चौथा भूजल कम होने की वजह से मिट्टी का जो नुक्सान हो रहा है उसे कैसे बचाया जाए, और पांचवां वनों का दायरा कम होने से मिट्टी का जो क्षरण हो रहा है उसे कैसे रोका जाय।
साथ ही आपने यह भी बताया था कि भारत द्वारा पैट्रोल में 10 प्रतिशत इथेनाल मिश्रण के लक्ष्य को तय समय से पांच माह पूर्व ही हासिल कर लिया गया है इससे भारत को न केवल 41 हजार करोड़ रुपए की विदेशी मुद्रा की बचत हुई है और किसानों को 40 हजार करोड़ रुपए की अतिरिक्त आय भी हुई है बल्कि पेट्रोल एवं डीजल की खपत इस स्तर तक कम हुई है और इससे वातावरण में कार्बन डाईआक्सायड गैसों का फैलाव भी कम हुआ होगा।
भारत ने वर्ष 2070 तक नेट जीरो यानी कार्बन उत्सर्जन रहित अर्थव्यवस्था का लक्ष्य तय किया हुआ है। यद्यपि पर्यावरण रक्षा में भारत के प्रयास बहुआयामी रहे हैं लेकिन यह प्रयास तब तक सफल नहीं हो सकते जब तक देशवासी प्राकृतिक संसाधनों का अनावश्यक अत्यधिक दोहन बंद नहीं करते। शहरों के बढ़ते तापमान की रोकथाम हेतु जरूरी है कि मौसम और वायु प्रवाह का ठीक तरह से नियोजन किया जाए। हरियाली का विस्तार, जल स्रोतों की सुरक्षा, वर्षा जल संचय, वाहनों एवं एयर कंडीशंस की संख्या की कमी से ही हम प्रचंड गर्मी को कम कर सकते हैं। पृथ्वी का तापमान घटेगा तभी मानव सुरक्षित रह पाएगा।
उक्त संदर्भ में यह हम सभी भारतीयों के लिए हर्ष का विषय होना चाहिए कि हमारे देश में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे संगठन मौजूद हैं जो सदैव ही सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक एवं सेवा कार्य करने वाले संगठनों को साथ लेकर, देश पर आने वाली किसी भी विपत्ति में आगे आकर, कार्य करना प्रारम्भ कर देते हैं। भारत के पर्यावरण में सुधार लाने की दृष्टि से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने तो बाकायदा एक नई पर्यावरण गतिविधि को ही प्रारम्भ कर दिया है। जिसके अंतर्गत समाज में विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करने वाले संगठनों को साथ लेकर संघ द्वारा देश में प्लास्टिक का उपयोग बिल्कुल नहीं करने का अभियान प्रारम्भ किया गया है और देश में अधिक से अधिक पेड़ लगाने की मुहिम प्रारम्भ की गई है। उदाहरण के तौर पर ग्वालियर को प्लास्टिक मुक्त शहर बनाने का बीड़ा उठाया गया है जिसके अंतर्गत संघ के स्वयंसेवकों द्वारा नगर के विद्यालयों, महाविद्यालयों, सामाजिक संगठनों, व्यावसायिक संगठनों, धार्मिक संगठनों, एवं नगर के विभिन्न चौराहों पर नागरिकों को शपथ दिलाई जा रही है कि “मैं ग्वालियर नगर को प्लास्टिक मुक्त बनाने हेतु, आज से प्लास्टिक का उपयोग बिल्कुल नहीं करूंगा”।
अभी तक लगभग 50,000 से अधिक नागरिकों को यह शपथ दिलाई जा चुकी है। 20 स्कूल, 12 महाविद्यालय (एलएनआईपीई सहित) एवं 5 मंदिर पोलिथिन मुक्त हो चुके हैं। नागरिकों को कपड़े से बने थैले भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं, ताकि बाजारों से सामान खरीदते समय इन कपड़े के थैलों का इस्तेमाल किया जाय और प्लास्टिक के उपयोग को तिलांजलि दी जा सके। अभी तक नगर में 5,000 से अधिक थैले नागरिकों को उपलब्ध कराए जा चुके हैं। प्लास्टिक के उपयोग को खत्म करने के उद्देश्य से गणेशोत्सव के पावन पर्व पर नगर में विभिन्न गणेश पांडालों में बच्चों द्वारा नाटक भी खेले जाएंगे। साथ ही, संघ ने अपने स्वयंसेवकों को आग्रह किया है कि संघ द्वारा आयोजित किए जाने वाले किसी भी कार्यक्रम में प्लास्टिक का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं किया जाना चाहिए। और, अब संघ के कार्यक्रमों में इस बात का ध्यान रखा जाने लगा है कि प्लास्टिक का उपयोग बिल्कुल नहीं किया जाय।
इसी प्रकार, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के ग्वालियर विभाग ने ग्वालियर महानगर में अधिक से अधिक पेड़ लगाए जाने की मुहिम प्रारम्भ की है। जिसके अंतर्गत ग्वालियर के कुछ विद्यालयों में वहां के शिक्षकों एवं विद्यार्थियों को साथ लेकर स्वयंसेवकों द्वारा भारी मात्रा में पौधारोपण किया गया है। ग्वालियर की पहाड़ियों पर भी इस मानसून के मौसम के दौरान हजारों की संख्या में नए पौधे रोपे गए हैं। अभी तक नगर में 9,000 से अधिक नए पौधे रोपे जा चुके हैं। गजराराजा स्कूल, केआरजी महाविद्यालय एवं गुप्तेश्वर मंदिर की पहाड़ियों को तो हरा भरा बना दिया गया है। जब पूरे देश में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे संगठन आगे आकर समाज के अन्य संगठनों को साथ लेकर देश के पर्यावरण में सुधार लाने हेतु कार्य प्रारम्भ करेंगे तो भारत के पर्यावरण में निश्चित ही सुधार दृष्टिगोचर होने लगेगा।
अमेरिका के नासा (NASA) की एक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार 20 साल पहले की तुलना में, वैश्विक हरियाली में काफी सुधार नजर आया है, जिसमें चीन और भारत ने सबसे अधिक योगदान दिया है। नासा के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2000 से 2017 तक वैश्विक हरित क्षेत्र में 5% की वृद्धि हुई है, जो एक अमेजन वर्षावन के क्षेत्र के बराबर है। चीन और भारत ने इसमें प्रमुख योगदान दिया है। नासा के पृथ्वी उपग्रह के डेटा के अनुसार चीन और भारत में वनीकरण और कृषि गतिविधियों ने पृथ्वी की हरित प्रक्रिया का नेतृत्व किया है। उपग्रह तस्वीरों में चीन और भारत के हरित क्षेत्र बहुत स्पष्ट दिखते हैं। साथ ही, शोधकर्ताओं का यह भी कहना है कि चीन और भारत में वैश्विक भूमि का केवल 9% हिस्सा है, लेकिन वैश्विक हरित क्षेत्र के विकास में इनका योगदान एक तिहाई के बराबर है। इसका कारण है वनीकरण और कृषि गहनता। शोधकर्ताओं के अनुसार चीन और भारत के प्रयासों के जरिये दोनों देशों के कृषि योग्य भूमि के क्षेत्र में भारी बदलाव न होने की स्थिति में खाद्य उत्पादन और हरित क्षेत्रों दोनों में काफी वृद्धि हुई है। वर्ष 2000 के बाद से, दोनों देशों में अनाज, सब्जियों और फलों के उत्पादन में 35% से 40% का इजाफा देखा गया है।
लेखक वरिष्ठ समाजसेवी हैं.
नोट – लेखक द्वारा व्यक्त विचारों से मातृभूमि समाचार का सहमत होना आवश्यक नहीं है.
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