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भारतीय दर्शन की आज पूरे विश्व को आवश्यकता है

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– प्रहलाद सबनानी

भारत वर्ष 2047 में, लगभग 1000 वर्ष के लम्बे संघर्ष में बाद, परतंत्रता की बेढ़ियां काटने में सफल हुआ है। इस बीच भारत के सनातन हिंदू संस्कृति पर बहुत आघात किए गए और अरब आक्रांताओं एवं अंग्रेजों द्वारा इसे समाप्त करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी गई थी। परंतु, भारतीय जनमानस की हिंदू धर्म के प्रति अगाध श्रद्धा एवं महान भारतीय संस्कृति के संस्कारों ने मिलकर ऐसा कुछ होने नहीं दिया।

भारत में अनेक राज्य थे एवं अनेक राजा थे परंतु राष्ट्र फिर भी एक था। भारतीयों का एकात्मता में विश्वास ही इनकी विशेषता है। आध्यात्म ने हर भारतीय को एक किया हुआ है चाहे वह देश के किसी भी कोने में निवास करता हो और किसी भी राज्य में रहता हो। आध्यात्म आधारित दृष्टिकोण है इसलिए हम सभी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। आध्यात्मवाद ने ही भारत के नागरिकों की रचना की है और आपस में जोड़ा है। इसके चार पहलू हैं –

भारतीय मूल रूप से सहिष्णु हैं। यह हम भारतीयों की विशेषता है। भारत कभी भी “केवल” का नहीं रहा, यह सभी का है, ऐसा विश्वास किया जाता है। केवल मेरा ही सच है, बाकी सब झूठ ही है, इस सिद्धांत पर भारत ने कभी भी विश्वास नहीं किया है। भारत सभी को अपने आप में आत्मसात करता है। मुझमें भी ईश्वर, आप में भी ईश्वर। इस सिद्धांत पर विश्वास करता है। भारतीय दर्शन विविधता में एकता एवं अनेकता में एकता देखता है। भारत अनेकता को भेद नहीं मानता है। भारत, नए आने वाले मानव समूहों की विशेषताओं को जीवित रखकर अपने आप में मिला लेता है। यह सामंजस्य भी हिंदू ही हो जाता है, यह भी भारत की विशेषता है।

भारतीय दर्शन में ऐसा माना जाता है कि प्रत्येक मनुष्य ईश्वर का अंश है। प्रत्येक मानव अपने देवत्व को जगाकर नारायण का रूप बन सकता है। यह विशेषता सभी भारतीयों में समान रूप से है, यह मानने वाला भारत ही है। भारत के प्रत्येक घर में कई देवी देवताओं की मूर्तियों का निवास रहता है एवं इनकी समान रूप से पूजा अर्चना की जाती है। इस प्रकार का संग्रहण और इस संग्रहण को समान दर्जा देना भी भारतीयों की विशेषता है। उक्त वर्णित चारों विशेषताओं को आत्मसात करने वाले व्यक्ति को हिंदू कहा जा सकता है और इस दर्शन को हिंदुत्व कह सकते हैं। पारिवारिक, व्यावसायिक, सामाजिक वातावरण में यह भावना झलकनी चाहिए। हिंदुत्व केवल एक कल्पना नहीं है बल्कि यह एक जीवन दर्शन है और जीवन जीने की कला है। आज जब पूरे विश्व में आतंकवाद फैला है ऐसे में पूरे विश्व में ही इस जीवन दर्शन को अपनाने की महती आवश्यकता है।

इस दर्शन में यह भी निहित है कि राजा का यह धर्म है कि उसके राज्य में समाज का प्रत्येक व्यक्ति सम्पन्न बने, चाहे वह किसी भी पूजा पद्धति को मानने वाला हो एवं किसी भी मत, पंथ का हो। धर्म सभी नागरिकों को एक जैसे भाव से देखने की सीख देता है एवं इनके बीच किसी भी प्रकार का भेद भाव नहीं होना चाहिए। जिन लोगों की समाज में अधिक आय है उनके लिए कहा गया है कि वे समाज की भलाई के लिए आगे आएं एवं समाज के लिए सहायता का कार्य करें, यह उनका धर्म है। इसीलिए कहा जाता है कि अपने स्वयं के लिए जब मकान का निर्माण कराया जाता है तो इसे “घर” कहा जाता है परंतु जब समाज के लिए मकान का निर्माण किया जाता है तो इसे “धर्मशाला” कहा जाता है। समाज के लिए किए जाने वाले अच्छे कार्यों में धर्म अपने आप ही जुड़ जाता है। समाज को केवल “देना”, “भिक्षा” अथवा “दान” कहा जाता है और यदि समाज को ससम्मान लौटाया जाता है तो इसे “धर्म” कहते हैं। इस प्रकार धर्म सभी को जोड़ना सिखाता है न कि आपस में बांटना।

अकबर, औरंगजेब और अल्लाद्दीन के समय हिंदुओं को कौन जोड़कर रखे हुए था। 15वीं शताब्दी में भक्ति आंदोलन की दूसरी लहर उत्तर भारत में प्रारम्भ हुई जबकि इसके पूर्व भक्ति आंदोलन की प्रथम लहर दक्षिण भारत में प्रारम्भ हो चुकी थी। आसाम, केरल एवं पंजाब आदि में लगभग एक ही समय पर भक्ति आंदोलन की शुरुआत हुई।  उस समय देश के विभिन्न भागों में भक्ति आन्दोलन सफलता पूर्वक चलाया गया। यह अपने आप में एक अद्भुत आंदोलन था। उस समय स्वतंत्रता संघर्ष कुछ अलग प्रकार से संचालित किया जा रहा था और यह सब भारत के नागरिकों में “स्व” के भाव के चलते ही सम्भव हो रहा था।

भारतीय दर्शन में बौद्धिक समृद्धि को मोक्ष के मार्ग पर आगे बढ़ने की संज्ञा दी गई है। और, बौद्धिक उन्नति एवं आध्यात्मिक उन्नति को भारत का राष्ट्रत्व माना जाता है। यह भी हिंदुत्व ही है। हमारे यहां भारतीय संस्कृति में एकात्मता का सोच है। भारत पूरे विश्व की मंगल कामना करता है एवं “वसुधैव कुटुम्बकम”, “सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय”, जैसे सिद्धांतो पर विश्वास करता है। चाहे किसी भी व्यक्ति की कोई भी पूजा पद्धति क्यों न हो, पूरे भारत में एक जैसा हिंदू दर्शन है। हिंदू दर्शन ही भारत में राष्ट्र तत्व है जो पश्चिम की सोच से अलग है। हिंदू दर्शन एक मौलिक दर्शन है। अतः मौलिक तत्वों को जितना मजबूत करेंगे राष्ट्र विरोधी ताकतें उतनी ही कमजोर होंगी। हिंदू समाज उदार दृष्टि रखकर संगठित रहे। भारतीय इतिहास में कवि रसखान के रूप में एक नहीं बल्कि हजारों की संख्या में इस प्रकार के उदाहरण भरे पड़े हैं।

आज के खंडकाल में तो भारत में बुर्का पहिने महिलाएं जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर अपने बच्चों को श्री कृष्ण के रूप में सजा कर खड़ी दिखाई देती हैं। बहुत बड़े स्तर पर आज मुस्लिम एवं ईसाई महिलाएं कमरों में बंद होकर योग कर रही है। संयुक्त अरब अमीरात के आबू धाबी में एक भव्य मंदिर वहां की सरकार एवं नागरिक मिलकर बना रहे हैं। आज “सर तन से जुदा” जैसे नारे कोई पसंद नहीं कर रहा है। बल्कि संयमित, सौम्य एवं भावुक मुसलमान इसका दबी जुबान में विरोध भी करने लगे हैं। हालांकि भारतीय मुसलमानों से अपेक्षा जरूर है कि आज पूरे विश्व को इस्लाम के भारतीय स्वरूप को पूरी दुनिया को दिखाएं। यह भी सर्वविदित ही है कि भारतीय मुसलमानों के पुर्खे हिंदू ही थे।

इस तथ्य को तो इंडोनेशिया के मुसलमान भी जोर शोर से कहते हैं और इसीलिए उन्होंने इंडोनेशिया में भारतीय दर्शन को आज भी जीवित बनाए रखा है। इंडोनेशिया ही क्यों पूरे विश्व में ही आज भारतीय संस्कृति की स्वीकार्यता बढ़ रही है। बल्कि, आतंकवाद से आज हर नागरिक छुटकारा पाना चाहता है। भारत के केरल सहित विश्व के अनेक भागो में आज एक्स-मुस्लिम के रूप में एक बड़ी जमात उठ खड़ी हुई है।पिछले 1000 साल के खंडकाल में बहुत कम साहित्य आया है जो भारत में राष्ट्रभाव को बढ़ावा दे। परंतु, अब समय आ गया है जब भारत के प्रत्येक नागरिक में राष्ट्रभाव को विकसित किया जाय एवं इस सम्बंध में साहित्य का निर्माण भी बहुत बड़े स्तर पर किया जाना चाहिए।

लेखक वरिष्ठ समाजसेवी हैं

नोट : लेखक द्वारा व्यक्त विचारों से मातृभूमि समाचार का सहमत होना आवश्यक नहीं है.

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