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‘अक्षर’ से ही चमकेगी किस्मत !

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– डॉ० घनश्याम बादल

ज्ञान आदमी के लिए प्रगति के रास्ते खोलता है, पर जब आदमी पढ़ने लिखने जैसी आधारभूत बात ही न जाने तब कैसे वह अपने व परिवार के लिए अच्छे दिनों के सपने देख सकता है । भारत की हालत पर गौर करें तो जानकर दुःख होता है कि आजादी पाने के ७५ साल बाद भी तीस करोड़ लोग निरक्षर हैं, करीब 32 करोड़ लोग नाममात्र को पढ़े लिखे हैं, वह भी बस इतना कि अपना नाम लिख लें या कि अंगूठा लगाने की बजाय हस्ताक्षर कर लें । विश्व व भारत हर साल 8 सितंबर को साक्षरता दिवस मनाता है मगर यह दिन आता है और चला जाता है इसके बारे में जानने या समझने की जरूरत बहुत कम लोग हैं महसूस करते हैं आज फिर से साक्षरता दिवस है तो साक्षरता दिवस के बारे में जानने के लिए इसके भाव को समझना पड़ेगा

साक्षरता से तात्पर्य अक्षर ज्ञान है यानी हिंदी की दृष्टि से स्वर एवं व्यंजन की पहचान बारहखड़ी और क से लेकर ज्ञ तक के अक्षरों को पहचानना साक्षरता है लेकिन वास्तव में  ऐसा नहीं है वास्तव में साक्षरता केवल अक्षरज्ञान या शब्दज्ञान तक सीमित अवधारणा नहीं है । शुरुआती दौर में भले ही ऐसा रहा हो लेकिन आज के परिप्रेक्ष में देखें तो साक्षरता को सीधे-सीधे समझदारी से जोड़ा जाता है । उसी व्यक्ति को आज साक्षर कहा जाएगा जो न केवल लिख सकता है अपितु उसका अर्थ भी न केवल समझ सकता है अपितु उसे अपने सामान्य जीवन में प्रयोग में भी ला सकता है। देश को आजाद हुए ७५ साल हो गए पर ,आज भी आबादी का बहुत बड़ा भाग निरक्षर है जिसके उनके लिए दो जून रोटी जुटाना भी दूभर है । वैसे तो कितनी ही समस्यायें हैं चारों तरफ पर यदि उनकी जड़ में जाएं तो पाएंगें कि सब समस्याओं का मूल है अशिक्षा यानि निरक्षरता और प्रगति का पहला कदम उठता है ज्ञान से जो हम तक आता से साक्षरता से।

पूर्ण साक्षरता का लक्ष्य दूर :

भारत में साक्षरता की दर व लगभग 80 फीसदी आंकी गई थी , जो विश्व की औसत साक्षरता दर 86 फीसदी से काफी कम है। बेहतर साक्षरता दर से जनसंख्या बढ़ोत्तरी, गरीबी और लिंगभेद जैसी चुनौतियों से निपटा जा सकता है।  संविधान में 1965 तक पूर्ण और अनिवार्य शिक्षा का प्रस्ताव रखा गया था पर साढ़े छह दशकों से भी अधिक समय बीत जाने के बावजूद हम अपना लक्ष्य हासिल नहीं कर सके हैं। भारतीय संसद में वर्ष 2002 में 86वां संशोधन अधिनियम पारित हुआ जिसके तहत 6-14 वर्ष के बच्चों के लिए शिक्षा को मौलिक अधिकार का दर्जा दिया गया है। देश में साक्षरता दर बढ़ाने के लिए भारत सरकार के कई कदम उठाने के बावजूद अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी ही है ।

 आंकड़ों में साक्षरता :

एक अनुमान है कि यदि साक्षरता की दर ऐसे ही रही तो उसे पूर्ण साक्षरता दर हासिल करने में 2060 तक इंतजार करना पड़ सकता है। नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक आज 79 करोड 30 लाख वयस्क निरक्षर हैं इनमें से ज्यादातर महिलायें और बच्चे हैं. करीब छह करोड 80 लाख बच्चे स्कूल से बाहर हैं । विश्व के दो करोड़ 80 लाख बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं । विश्व बैंक के अनुसार भारत में 15 साल से ऊपर के 75 फीसदी साक्षर पुरुषों के मुकाबले महज 51 फीसदी महिलाएं ही साक्षर हैं। जबकि चीन में 97 फीसदी पुरुष और 91 फीसदी महिलाएं, व श्रीलंका में 92 फीसदी पुरुष और 89 फीसदी महिलाएं साक्षर हैं ।

साक्षरता कार्यक्रम :

साक्षरता के लक्ष्य को हासिल करने के लिए सर्व शिक्षा अभियान, राष्ट्रीय साक्षरता मिशन, मिड-डे-मिल योजना जैसे कार्यक्रम तो हैं लेकिन इन्हें पूरी तरह से लागू करने में सफलता भी दूर का सपना है । ज्यादा चिंता की बात ये है कि कागज भले ही कुछ भी कहे पर यथार्थ में कुछ और ही है । साक्षरता के नाम पर पहले से साक्षरों को बार बार साक्षर बनाने का काम जब तक चलेगा तब तक देष से अषिक्षा का कलंक शायद ही मिट पाए । केवल भारत की ही नहीं वरन् ,अफ्रीका और दक्षिण एशिया में निरक्षरता व अशिक्षा के पीछे गरीबी एक बड़ा कारण है. इसके अलावा एक अन्य प्रमुख कारण वहां के छोटे-छोटे देशों जैसे सोमालिया, चाड, सूडान, कांगो आदि में लंबे समय से जारी हिंसा भी है।

आगे बढ़ती दुनिया :

आज साक्षरता के मद में दी जाने वाली राशि में शिक्षा का हिस्सा मात्र दो प्रतिशत है. विश्वभर में साक्षरता को बढ़ाने के लिये राजनीतिक प्रतिबद्धता कुछ देशों ने दिखाई है जिनमें वेनेजुएला का नाम पहले पायदान पर है ह्यूगो शावेज जब सत्ता में आये तो उन्होंने सबसे पहले क्यूबा के दो लाख शिक्षकों को अपने देश में आमंत्रित किया ताकि वे उनके देशवासियों को शिक्षित कर सकें. शावेज के इस कदम से आज वेनेजुएला में बहुत बदलाव आया , और लोग तकनीक और कृषि के क्षेत्र में आगे बढ़े ।

‘तारा अक्षर कार्यक्रम’:

साक्षरता की दिशा में स्वयंसेवी संगठन डेवलेपमेंट आल्टरनेटिव ग्रुप का ‘तारा अक्षर’ कार्यक्रम अब तक आठ भारतीय राज्यों में चलाया जा चुका है। जिनमें देश के कई गरीब राज्य भी सम्मिलित हैं जहां  पुरुषों की साक्षरता दर 82.16 फीसदीं व महिलाओं की 65.46 फीसदी ही है । देश की पारिवारिक योजनाओं और जनसंख्या स्थिरता पर महिलाओं की साक्षरता दर कम होने का नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। पर साक्षरता कार्यक्रम ने महिलाओं को विशेष रूप से आकर्षित किया है।

अक्षर ही चमकाएगा किस्मत :

जब तक देश में एक भी व्यक्ति निरक्षर है तब तक न सुख व खुशहाली की कल्पना भी मुश्किल है! विकास की उच्च दर भी निरक्षरता के चलते बेमानी है । आज ‘‘राईट टू एजुकेशन’’ जैसे कानूनों को धरातल पर उतारे जाने की बडी़ ज़रुरत है और कमजोर तबके की शिक्षा पर विशेष बल दिये जाने व साक्षर भारत , सुंदर भारत के नारे को अमली जामा पहनाना ही एकमात्र विकल्प है ।

लेखक वरिष्ठ शिक्षक हैं

नोट : लेखक द्वारा व्यक्त विचारों से मातृभूमि समाचार का सहमत होना आवश्यक नहीं है.

         

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