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भक्ति आंदोलन के कुछ महान संत

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– सारांश कनौजिया

जब-जब भारतीय समाज अधर्म के रास्ते पर चलने लगता है, संत समाज उन्हें सही दिशा दिखाता है. यही संत समाज का कार्य है. भारत पर आक्रान्ताओं के आक्रमण आज से लगभग 2500 वर्ष पूर्व शुरू हो गए थे. किन्तु उस समय आक्रांता देश को लूटने आते थे. उस समय आक्रमण समाप्त होने के बाद भारतीय समाज वापस अपनी संस्कृति व सभ्यता के आधार पर खड़ा हो जाता था. फिर आक्रांता भारत पर शासन करने के उद्देश्य से आये. इस समय वे अपने शस्त्रों के साथ ही शास्त्र भी साथ लाये. यही नहीं उन्होंने अपने संप्रदाय को भारतीयों पर लादना भी शुरू कर दिया. इसी समय भक्ति आंदोलन ने जन्म लिया. संतों के मार्गदर्शन में भारतीयों को सदमार्ग पर लाने के लिए प्रयास शुरू हुआ.

संत रामानुज

संत रामानुज का जन्म 1060 को हुआ था. रामानुज ने पूरे भारत का भ्रमण किया और अंत में उन्होंने श्रीरंगम में ही बसने का निर्णय लिया. वो वैष्णव संप्रदाय के संत माने जाते हैं. उनकी मान्यता थी कि कर्म, ज्ञान और भक्ति के माध्यम से मोक्ष भी प्राप्त किया जा सकता है. उन्होंने अपने विचारों को श्रीबास्य और गीताभ्यास नामक ग्रंथों में लिखा है. उनका देहांत 1118 को हुआ था.

संत निम्बार्क

संत निंबार्क, संत रामानुज के ही समकालीन थे. वो भगवान कृष्ण और राधा रानी की पूजा करते थे. उन्होंने द्वैतवादी अद्वैतवाद के सिद्धांत का प्रतिपादन किया था. उनके द्वारा वेदांत परिजात-सूत्र व ब्रह्मसूत्र पर आधारित ग्रंथ लिखे. उन्होंने भगवान कृष्ण की भक्ति के कारण उत्तर प्रदेश के मथुरा को अपना निवास स्थान चुना.

संत माधवाचार्य

आदि शंकराचार्य और संत रामानुज के समान ही संत माधवाचार्य भी एक महान संत थे. उन्होंने द्वैत सिद्धांत दिया था. उनके अनुसार मोक्ष के लिए मनुष्य को भगवान् में मिलना ही होता है.

संत वल्लभाचार्य

संत वल्लभाचार्य का जन्म वाराणसी में 1479 में हुआ था. उन्होंने सुधाद्वैत वेदांत और दर्शन को पुष्टिमार्ग के सिद्धांत का प्रतिपादन किया था. उन्होंने अपने इस विचार को जन-जन तक पहुंचाने के लिए रुद्र सम्प्रदाय नामक एक विद्यालय की स्थापना भी की थी. संत वल्लभाचार्य की मृत्यु 1531 में हुआ था.

संत रामानंद

संत रामानंद का जन्म प्रयागराज में 15वीं शताब्दी में हुआ था. उन्होंने कहा था कि भक्ति के लिए यह आवश्यक नहीं है कि आपका जन्म किस जाति अथवा पंथ में हुआ या आप स्त्री अथवा पुरुष हैं. भक्ति करने का अधिकार सभी को है. उनके शिष्यों में कबीर (मुस्लिम बुनकर), रैडसा (मोची), सेना (नई), धन्ना (जाट किसान), साधना (कसाई), नरहरि (सुनार) व पीपा (राजपूत राजकुमार) आदि थे.

भारत का इतिहास इसकी हिन्दू संस्कृति व सभ्यता में छुपा है. यह इतिहास जिन भूभागों से जुड़ा हुआ है, वही इसका भूगोल है. इसलिए हमारा प्रयास है कि हम इस वास्तविक इतिहास और भूगोल से आप सभी को परिचित करा सकें. इसलिए हम आपके सम्मुख कुछ जानकारियां रख रहे हैं.

भारत के हिन्दू मंदिर

हमारे देश में असंख्य प्राचीन व प्रसिद्ध मंदिर हैं. हमारा प्रयास है कि उनमें से कुछ की जानकारी हम आप सभी तक पहुंचा सके.

सोमनाथ मंदिर

विभिन्न आक्रमणों को झेलता हुआ गुजरात का सोमनाथ मंदिर भगवान शिव का पहला ज्योतिर्लिंग है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव के श्राप से मुक्त होने के बाद चंद्र देव ने सर्वप्रथम इसका निर्माण कराया था. उसके बाद कई आक्रांताओं ने इसे नष्ट करने का प्रयास किया, किन्तु फिर किसी न किसी शिव भक्त ने इसका निर्माण दुबारा करवाया.

रामनाथस्वामी मंदिर

तमिलनाडु के रामेश्वर में बना रामनाथस्वामी मंदिर भगवान्  राम का नहीं बल्कि भगवान शिव का मंदिर है. इसे 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है. इस मंदिर में दो शिवलिंग हैं. ऐसी मान्यता  है कि एक का निर्माण देवी सीता और दूसरे का निर्माण भगवान हनुमान ने किया था.

काशी विश्वनाथ मंदिर

ऐसी मान्यता है कि वर्तमान उत्तर प्रदेश में स्थित काशी को भगवान शिव ने ही बसाया था. जब श्रृष्टि समाप्त होगी, तब भी काशी समाप्त नहीं होगी. यहां स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है.

महाकालेश्वर मंदिर

मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर मंदिर का वर्णन विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में मिलता है. भगवान शिव को श्रष्टि का संहारक कहा गया है. इसलिए वो कालों के काल महाकाल हैं. भगवान शिव का यह मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है. यहां की भस्म आरती में सहभागी होने के लिए लाखों भक्त हर वर्ष आते हैं.

श्री अमरनाथ गुफा

ऐसी मान्यता है कि जम्मू-कश्मीर में स्थित श्री अमरनाथ गुफा वही स्थान है, जहां पर भगवान शिव ने माता पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताया था. इस गुफा में प्रत्येक वर्ष सावन के महीने में प्राकृतिक रूप से शिवलिंग प्रकट होता है. इसे देखने के लिए हर वर्ष लाखों भक्त श्री अमरनाथ यात्रा करते हैं. यह संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है.

माता वैष्णो देवी

जम्मू-कश्मीर के कटरा की पहाड़ियों में स्थित माता वैष्णो देवी का मंदिर स्थित है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता देवी आदि शक्ति का ही एक रूप हैं. गुफा में रखे तीन पिंड सभी भक्तों के आस्था के केंद्र हैं.

कामाख्या मंदिर

हिन्दू मान्यताओं के अनुसार सृष्टि की रचना आदि शक्ति से हुई है. शक्तिस्वरूपा देवी सती के 51 शक्तिपीठों में कामाख्या देवी के मंदिर का विशेष महत्व है. सिद्ध पीठ होने के कारण यह स्थान तांत्रिकों के लिए विशेष महत्व रखता है.

वेंकटेश्वर मंदिर

आंध्र प्रदेश के तिरुपति में स्थित भगवान् वेंकटेश्वर का मंदिर आस्था रखने वालों के साथ-साथ वास्तुकला प्रेमियों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है. ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु तिरुमाला के निकट स्वामी पुष्करणी सरोवर के निकट रुके थे. यह माना जाता है कि इसी कारण यहां आने से मोक्ष प्राप्त हो जाता है.

पद्मनाभस्वामी मंदिर

केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम में स्थित भगवान विष्णु का यह मंदिर भक्तों के साथ ही पर्यटकों को भी अपनी ओर आकर्षित करता है. इसकी वास्तुकला मन को मोह लेने वाली है. ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु के विश्राम करने की अवस्था को पद्मनाभ कहा गया है, इसी से इस मंदिर का नाम पद्मनाभस्वामी पड़ा.

 

सिद्धिविनायक मंदिर

प्रथम पूज्य भगवान गणेश का यह मंदिर मुंबई में स्थित है. गणपति के इस मंदिर में आम से लेकर खास तक सभी अपना सर श्रद्धा से झुकाते हैं. ऐसी मान्यता है कि जिन देवी-देवताओं को सबसे जल्दी प्रसन्न करना संभव हैं, उनमें से एक भगवान गणेश भी हैं.

 

श्री जगन्नाथ मंदिर

ओडिशा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर वैसे तो भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है. लेकिन यहां वो अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ विराजमान हैं. जबकि अधिकांश स्थानों पर उनके साथ राधा रानी विराजमान होती हैं. मंदिर के द्वारा आयोजित धार्मिक रथ यात्रा में हर वर्ष लाखों श्रद्धालु पूरे भारत वर्ष से यहां आते हैं.

महाबोधि मंदिर

भारत में जन्मे सभी संप्रदाय, मत, पंथ आदि विचार हिन्दू धर्म के ही अंग हैं. इस विचार से सिख, जैन व बौद्ध भी हिन्दू ही हैं. इस मान्यता के अनुसार बिहार के महाबोधि मंदिर को भी हिन्दू संस्कृति का ध्वजवाहक माना जा सकता है. इसे यूनेस्को ने विश्व विरासत की मान्यता प्रदान की है.

साईं बाबा मंदिर

साईं बाबा ने लम्बा समय महाराष्ट्र के शिरडी में बिताया. वे एक संत थे. कुछ श्रद्धालु उन्हें भगवान का अवतार भी मानते हैं. वे ऐसे संत थे, जिनकी वेशभूषा फकीरों की तरह थी. उनकी सेवा करने वालों में हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही धर्मों के लोग रहे हैं. यद्यपि अब उनके अधिकांश भक्त हिन्दू ही हैं.

लेख सन्दर्भ

https://hindi.mapsofindia.com/

https://bharat.republicworld.com/

History Homepage

फोटो साभार

https://www.findforgk.com/

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