नई दिल्ली (मा.स.स.). फसल अवशेष प्रबंधन के मुद्दों पर राज्यों के साथ आज केंद्र की मंत्रीस्तरीय अंतर-मंत्रालयी बैठक केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की अध्यक्षता तथा केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव एवं केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री परषोत्तम रूपाला की सह अध्यक्षता में आयोजित की गई। पराली जलाने से रोकने को लेकर बैठक में तीनों मंत्रियों ने अत्यधिक गंभीरतापूर्वक राज्यों के साथ विचार-विमर्श किया। इस दौरान कृषि मंत्री तोमर ने कहा कि इस संबंध में प्रभावित जिलों में संबंधित राज्य सरकार द्वारा कलेक्टरों की जवाबदेही तय करने की जरूरत है, वहीं यादव ने कहा कि राज्यों को तत्काल प्रभावी उपायों पर अमल करना चाहिए। रूपाला ने पंजाब में पराली जलाने की समस्या के लिए विशेष रूप से सक्रियता पर बल दिया।
उच्चस्तरीय समीक्षा बैठक में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश व राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारी व तीनों केंद्रीय मंत्रालयों के उच्चाधिकारियों के साथ ही भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, दिल्ली व एनसीआर में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग, विद्युत मंत्रालय तथा अन्य केंद्रीय मंत्रालयों व विभागों के वरिष्ठ अधिकारी शामिल हुए। बैठक में कहा गया कि राज्यों को केंद्र द्वारा पिछले 4 वर्षों के दौरान पहले से आपूर्तित 2.07 लाख मशीनों व चालू वर्ष के दौरान आपूर्ति की जाने वाली 47 हजार मशीनों का प्रभावी उपयोग सुनिश्चित करने की जरूरत है। फसल अवशेष प्रबंधन पर केंद्रीय योजना के तहत सरकार पहले से ही पंजाब, हरियाणा, उ.प्र. व राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली को पराली जलाने के कारण दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान कर रही है। चालू वर्ष के दौरान केंद्र द्वारा अब तक 601.53 करोड़ रुपये पहले ही जारी किए जा चुके हैं। साथ ही, पिछले चार साल में दी गई राशि में से भी करीब 900 करोड़ रु. राज्यों के पास उपलब्ध है। बैठक में राज्यों को पराली प्रबंधन के लिए भारत सरकार द्वारा प्रदान की गई इस धनराशि का प्रभावी ढंग से उपयोग करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया।
तोमर ने कहा कि राज्यों को पराली के प्रभावी इन-सीटू अपघटन के लिए पूसा संस्थान द्वारा विकसित बायो-डीकंपोजर के व्यापक उपयोग को बढ़ावा देना चाहिए। उन्होंने कहा कि राज्यों की अपेक्षाओं को पूरा करने की दिशा में केंद्र सरकार ने अपने दायित्वों का निर्वहन करने की पूरी कोशिश की है। राज्य सरकारें भी इसी तरह शिद्दत से काम करें तो इसके अच्छे परिणाम आएंगे। विशेषकर, पंजाब के अमृतसर व तरनतारण जिलों में पराली जलाने पर प्रभावी नियंत्रण कर लिया जाए तो 50 प्रतिशत उपलब्धि हासिल हो जाएंगी, क्योंकि इन दो जिलों में सर्वाधिक समस्या विद्यमान है। इन चारों राज्यों में प्रभावी नियंत्रण से अन्य राज्यों में भी समस्या का विस्तार नहीं होगा। योजनाबद्ध तरीके से समग्र प्रयासों से काम करने पर पशुओं के लिए चारे की भी उपलब्धता में आसानी होगी। तोमर ने बताया कि 4 नवंबर को पूसा, दिल्ली में कार्यशाला की जा रही है, जिसमें पंजाब व आसपास के किसानों को इसी निमित्त बुलाया गया है, पंजाब के वरिष्ठ अधिकारी भी इसमें शामिल हों ताकि पूसा डी-कंपोजर को लेकर उनका भ्रम दूर हो सके। तोमर ने कहा कि फसल अवशेष प्रबंधन के लिए पूसा डी-कंपोजर सबसे सस्ता और प्रभावी उपाय है, जिसे बढ़ाना होगा।
पर्यावरण मंत्री यादव ने कहा कि केंद्र द्वारा दी गई दो लाख से ज्यादा मशीनें पर्याप्त है, जरूरी है कि इनका पूरा उपयोग किया जाए, जिससे समस्या का समाधान संभव है। केंद्र द्वारा प्रदूषण के अन्य कारकों को लेकर भी विचार किया गया है। यादव ने विशेषकर पंजाब में पराली जलाने से रोकने के लिए प्रभावी नियंत्रण पर बल देते हुए वहां के मुख्य सचिव को तत्काल समुचित कार्यवाही करने के साथ ही पूसा डी-कंपोजर के उपयोग बढ़ाने पर भी जोर दिया।
बैठक में लक्षित किसानों के लिए उचित आईईसी गतिविधियां लागू करने की जरूरत बताते हुए राज्यों को सलाह दी गई है कि वे सभी आवश्यक संसाधनों को तैनात करके रणनीतिक योजना बनाकर स्थिति से निपटें। बायो डी-कंपोजर के लाभ देखते हुए राज्यों को किसानों के खेतों पर इस तकनीक का बड़े पैमाने पर प्रदर्शन करने की सलाह दी गई है। वर्तमान वर्ष के दौरान राज्यों में 8.15 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र को इस प्रौद्योगिकी के तहत लाने का लक्ष्य रखा है। बायोमास आधारित बिजली संयंत्रों, बायोएथेनॉल संयंत्रों तथा आसपास के उद्योगों से पराली की मांग की मैपिंग के माध्यम से पराली के एक्स-सीटू उपयोग को बढ़ावा देने व प्रचार-प्रसार के साथ ही किसान मेलों, प्रकाशनों, संगोष्ठियों, परामर्शों के माध्यम से सभी हितधारकों की भागीदारी के साथ गहन अभियानों के माध्यम से किसानों की जनजागरूकता के लिए आईईसी गतिविधियां तेज करने का अनुरोध किया गया है। इससे पराली जलाने को प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया जा सकेगा।
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