नई दिल्ली (मा.स.स.). भारत की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करने और आयातित कोयले के स्थान पर घरेलू रूप से खनन किए गए कोयले का प्रयोग कर आत्मनिर्भर भारत का अनुभव कराने के लिए, कोयला मंत्रालय ने वित्त वर्ष 25 में 1.3 बिलियन टन और वित्त वर्ष 30 तक 1.5 बिलियन टन कोयले का उत्पादन करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। लागत प्रभावी, तेज और पर्यावरण के अनुकूल कोयला परिवहन का विकास देश का महत्वपूर्ण लक्ष्य है।
भविष्य में कोयले की निकासी में वृद्धि को ध्यान में रखते हुए, कोयला मंत्रालय कोयला खदानों के पास रेलवे सुविधाओं के माध्यम से कोयले की खदानों से वितरण केन्द्रों तक निर्बाध निकासी (फर्स्ट माइल कनेक्टिविटी) सहित राष्ट्रीय कोयला संचालन के विकास एवं कोयला क्षेत्रों में रेल नेटवर्क को मजबूत करने पर काम कर रहा है।
कोयला मंत्रालय ने खदानों में कोयले के सड़क परिवहन को समाप्त करने के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण विकसित करने की रणनीति तैयार की है और ‘फर्स्ट माइल कनेक्टिविटी’ परियोजनाओं के तहत मशीनीकृत कोयला परिवहन और लोडिंग सिस्टम को अपडेट करने के लिए कदम उठाए हैं। रैपिड लोडिंग सिस्टम वाले कोयला प्रबंधन संयंत्रों (सीएचपीएस) और साइलोस (एसएआईएलओएस) को कोयले के टुकड़े करने, उन्हें निर्धारित आकार देने और कंप्यूटर की सहायता से लदान जैसे लाभ होंगे।
मंत्रालय ने 522 मिलियन टन प्रति वर्ष (एमटीपीए) क्षमता की 51 फर्स्ट माइल कनेक्टिविटी (एफएमसी) परियोजनाएं कोल इण्डिया लिमिटेड (सीआईएल) 44 – सिंगरैनी कोलियरिज कम्पनी लिमिटेड (एससीसीएल) 4 और एनएलसीइंडियालिमिटेड (एनएलसीआईएल) 3 शुरू की हैं, जिनमें से 8 परियोजनाएं (6-सीआईएल और 2-एससीसीएल) हैं। 95.5 एमटीपीए क्षमता को चालू कर दिया गया है। इन 51 परियोजनाओं पर लगभग 18000 करोड़ रुपये खर्च होंगे और ये सभी वित्त वर्ष 2025 तक चालू हो जाएंगी। चूंकि सीआईएल ने कोयले के उत्पादन में नई परियोजनाएं शुरू की हैं, इसलिए वित्त वर्ष 2020-27 के दौरान 317 एमटी क्षमता वाली 17 अतिरिक्त एफएमसी परियोजनाओं को लागू करने का प्रस्ताव किया गया है।
एफएमसी के पर्यावरण और लागत लाभों पर 2020-21 में राष्ट्रीय पर्यावरण अनुसंधान संस्थान (एनईईआरआई), नागपुर के माध्यम से अध्ययन किया गया था। रिपोर्ट ने कार्बन उत्सर्जन में वार्षिक कमी, ट्रकों की आवाजाही के घनत्व में कमी और वार्षिक डीजल खपत और लागत में महत्वपूर्ण बचत होने की बात कही है। एफएमसी परियोजनाओं से मानवीय हस्तक्षेप कम होगा, लदान में कम समय लगेगा और बेहतर गुणवत्ता वाले कोयले का उपयोग किया जा सकेगा। लोडिंग समय कम होने से रेक / वैगन की उपलब्धता में वृद्धि होगी। सड़क नेटवर्क पर दवाब को कम करने से स्वच्छ पर्यावरण और डीजल पर बचत को भी बढ़ावा मिलता है। यह कंपनी, रेलवे और उपभोक्ताओं के लिए एक चौतरफा जीत की स्थिति होगी।