नई दिल्ली. पिछले एक साल में दिल्ली भारत का सबसे प्रदूषित शहर रहा है। हालांकि वायु गुणवत्ता में मामूली सुधार हुआ है। पीटाआई द्वारा जारी की गई जानकारी के अनुसार, 30 सितंबर तक पीएम 2.5 की मात्रा 100.1 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रही, जो सरकार की सुरक्षित सीमा से तीन गुना अधिक है। वास्तविक समय में IoT-आधारित वायु गुणवत्ता निगरानी उपकरणों का निर्माण करने वाले स्वतंत्र थिंक टैंक क्लाइमेट ट्रेंड्स और टेक फर्म रेस्पिरर लिविंग साइंसेज द्वारा किए गए विश्लेषण से पता चला है कि आइजोल और मिजोरम में पीएम 2.5 स्तर केवल 11.1 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक के साथ भारत की सबसे स्वच्छ हवा है।
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली समेत इसमें चार अन्य शहर फरीदाबाद (89 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर), नोएडा (79.1 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर), गाजियाबाद (78.3 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर) और मेरठ (76.9 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर) भी शामिल हैं। रिपोर्ट के अनुसार, 1 अक्टूबर 2022 से 30 सितंबर 2023 तक सरकार पीएम 2.5 डेटा के विश्लेषण पर आधारित है और राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के तहत कवर किए गए शहरों पर केंद्रित है। जिसका लक्ष्य पार्टिकुलेट मैटर में 2026 तक 40 प्रतिशत की कमी हासिल करना है। विश्लेषण से पता चला कि 99.7 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की औसत पीएम 2.5 सांद्रता के साथ दूसरा सबसे प्रदूषित शहर पटना में पिछले वर्ष की तुलना में वायु गुणवत्ता में 24 प्रतिशत की गिरावट देखी गई।
रिपोर्ट में बताया गया है कि टॉप सात प्रदूषित शहर दिल्ली, पटना, मुजफ्फरपुर, फरीदाबाद, नोएडा, गाजियाबाद और मेरठ हैं। ये सभी शहर सिंधु-गंगा के मैदानी इलाकों का हिस्सा हैं। हालांकि, विश्लेषकों ने कहा कि अध्ययन अवधि के दौरान दिल्ली, फरीदाबाद, नोएडा, गाजियाबाद और मेरठ में पीएम 2.5 की सांद्रता क्रमशः 4 प्रतिशत, 12 प्रतिशत, 12 प्रतिशत, 25 प्रतिशत और 11 प्रतिशत कम हो गई।
निदेशक आरती खोसला ने कहा कि विश्लेषण से पता चलता है कि पिछले कुछ वर्षों में सिंधु-गंगा के मैदानी शहरों में सुधार हुआ है। हालांकि, भारी प्रदूषण भार को देखते हुए इन शहरों में देश में सबसे अधिक पीएम स्तर का अनुभव जारी है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना या दिल्ली के आसपास परिधीय राजमार्गों, हाइपरलोकल विकास जैसे उपाय सकारात्मक कार्य हैं। एयरशेड दृष्टिकोण के माध्यम से वायु गुणवत्ता के मुद्दों को निरंतर तरीके से संबोधित करने के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
साभार : अमर उजाला
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