फ्लोरिडा. 15 साल पहले यानी नवंबर 2008 में लॉन्च हुए भारत के पहले चंद्र मिशन चंद्रयान 1 ने वैज्ञानिकों को चांद पर पानी के बड़े संकेत दिए हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार वैज्ञानिकों ने चंद्रमा पर स्थायी रूप से छाया में रहने वाले क्षेत्रों में पहले तलाशी गई बर्फ की उत्पत्ति को समझने के लिए चंद्रयान -1 मिशन के डेटा का उपयोग किया है। नेचर एस्ट्रोनॉमी जर्नल में आई स्टडी से पता चलता है कि पृथ्वी ग्रह की प्लाज्मा शीट में हाई एनर्जी वाले इलेक्ट्रॉन चंद्रमा की सतह पर होने वाले विनाश में योगदान कर सकते हैं। यहां तक कि इनकी वजह से चंद्रमा पर पानी के निर्माण में भी सहायता मिली है।
कैसे होता है निर्माण
प्लाज्मा शीट मैग्नेटोस्फीयर के भीतर फंसे हुए आवेशित यानी चार्ज्ड कणों का एक क्षेत्र है, जो पृथ्वी के चारों ओर अंतरिक्ष का हिस्सा है। यह इसके चुंबकीय क्षेत्र की तरफ से नियंत्रित होता है। मैग्नेटोस्फेयर पृथ्वी को अंतरिक्ष के मौसम और सूर्य से आने वाले रेडिएशन से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सौर हवा इस मैग्नेटोस्फीयर को धकेलती है और इसे नया आकार देती है। मैग्नेटोस्फीयर पृथ्वी को अंतरिक्ष के मौसम और सूर्य से आने वाले विकिरण से बचाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सौर हवा इस मैग्नेटोस्फीयर को धक्का देती है और इसका आकार बदल देती है, जिससे रात के पक्ष में एक लंबी पूंछ सी बन जाती है बिल्कुल वैसी ही जैसा धूमकेतुओं के साथ होता है।
पिछली रिसर्च पर हुआ काम
रिसर्चर्स ने पिछली रिसर्च पर और काम किया। इसमें पता चला कि पृथ्वी के मैग्नेटोटेल में ऑक्सीजन की वजह से चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्र में लोहे को जंग लगा रही है। साथ ही चंद्रमा के पृथ्वी के मैग्नेटोटेल से गुजरने पर सतह के मौसम में बदलाव की जांच करने का निर्णय लिया। ली शुआई जो इस रिसर्च में शामिल थे उन्होंने बताया, ‘यह चंद्रमा की सतह पर पानी के गठन की प्रक्रियाओं का अध्ययन करने के लिए एक नैचुरल लैब मुहैया कराता है। जब चंद्रमा मैग्नेटोटेल के बाहर होता है तो चंद्रमा की सतह पर सौर हवा की वजह से बमबारी होती है। मैग्नेटोटेल के अंदर सौर हवा के प्रोटॉन लगभग न के बराबर होते हैं। ऐसे में पानी के निर्माण की उम्मीद जीरो थी।’
क्या था चंद्रयान 1 का योगदान
रिसर्चर्स ने साल 2008 और 2009 के बीच चंद्रयान-1 मिशन पर चंद्रमा पर मौजूद माइनरोलॉजी मैपर की तरफ से इकट्ठा किए गए रिमोट सेंसिंग डेटा को जांचा। उन्होंने मुख्य रूप से चंद्रमा के मैग्नेटोटेल से गुजरने के दौरान पानी के निर्माण में होने वाले परिवर्तनों ध्यान दिया। दिलचस्प बात यह है कि मैग्नेटोटेल में पानी का निर्माण एक जैसा लगता है, चाहे चंद्रमा उसमें हो या नहीं। यह बता सकता है कि ऐसी निर्माण प्रक्रियाएं या पानी के स्रोत हैं जो सीधे सौर हवा प्रोटॉन से जुड़े नहीं हैं।
साभार : नवभारत टाइम्स
भारत : 1857 से 1957 (इतिहास पर एक दृष्टि) पुस्तक अपने घर/कार्यालय पर मंगाने के लिए आप निम्न लिंक पर क्लिक कर सकते हैं