नई दिल्ली. छेड़छाड़, वेश्या और गृहिणी जैसे शब्द जल्द ही कानूनी शब्दावली से बाहर हो सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने लैंगिक भेदभाव या असमानता दर्शाने वाले शब्दों के इस्तेमाल करने से बचने के लिए एक हैंडबुक लॉन्च किया है।
शब्दावली से बाहर हो जाएंगे यह शब्द
कानून शब्दावली में यौन उत्पीड़न, यौनकर्मी और गृहिणी जैसे शब्दों का इस्तेमाल करने का सुझाव दिया गया। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर बहस सुनने के लिए एकत्रित हुए। इसी बीच सुप्रीम कोर्ट ने हैंडबुक को लॉन्च किया। सीजेआई ने कहा, ये शब्द अनुचित हैं और अतीत में न्यायाधीशों द्वारा इसका इस्तेमाल किया गया है। हैंडबुक का इरादा आलोचना करना या निर्णयों पर संदेह करना नहीं, बल्कि केवल यह दिखाना है कि अनजाने में कैसे रूढ़िवादिता का उपयोग किया जा सकता है।
अन्यायपूर्ण शब्दों की शब्दावली
इस हैंडबुक में लैंगिक अन्यायपूर्ण शब्दों की शब्दावली है। साथ ही इसमें वैकल्पिक शब्द और वाक्यांश सुझाए गए हैं जिनका इस्तेमाल किया जा सकता है। एक प्रेस विज्ञप्ति में शीर्ष अदालत ने कहा, हैंडबुक ऑन कॉम्बैटिंग जेंडर रूढ़िवादिता’ का उद्देश्य न्यायाधीशों और कानूनी समुदाय के सदस्यों को महिलाओं के बार में रूढ़िवादिता को पहचानने, समझने और उसका मुकाबला करने के लिए सशक्त बनाना है। इसमें लैंगिक अन्यायपूर्ण शब्दों की एक शब्दाबली है और दलीलों, आदेशों और निर्णयों सहित कानूनी दस्तावेजों में इस्तेमाल के लिए वैकल्पिक शब्दों और वाक्यांशों का सुझाव है।
विज्ञप्ति में कहा गया है कि हैंडबुक महिलाओं द्वारा सामान्य रूढ़िवादिता की पहचान करती है। हैंडबुक महत्वपूर्ण मुद्दों, विशेषकर यौन हिंसा से जुड़े मुद्दों पर प्रचलित कानूनी सिद्धांत को भी समाहित करती है। हैंडबुक का लॉन्च न्यायसंगत समाज की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। यह हैंडबुक 30 पन्नों की है। इस हैंडबुक में शब्द गलत क्यों हैं और वे कानून को और कैसे बिगाड़ सकते हैं, इसके बारे में भी बताया गया है।
क्या है कोर्ट का उद्देश्य?
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि इस हैंडबुक को तैयार करने का मकसद किसी फैसले की आलोचना करना या संदेह करना नहीं, बल्कि यह बताना है कि अनजाने में कैसे रूढ़िवादिता की परंपरा चली आ रही है। कोर्ट का उद्देश्य यह बताना है कि रूढि़वादिता क्या है और इससे क्या नुकसान है। ताकि कोर्ट महिलाओं के खिलाफ आपत्तिजनक भाषा के इस्तेमाल से बच सकें। इसे जल्द ही सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड किया जाएगा।
साभार : दैनिक जागरण
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