नई दिल्ली. भारत के चंद्रयान मिशन ने गुरुवार को एक अहम उपलब्धि हासिल की। चंद्रयान-3 में लैंडर विक्रम को सफलतापूर्वक को प्रोपल्शन मॉड्यूल से अलग कर दिया गया। अब लैंडर विक्रम अकेले चांद की तरफ से बढ़ चला है। लैंडिंग से पहले विक्रम की शुरुआती जांच होगी। लैंडर विक्रम में चार मुख्य थ्रस्टर्स लगे हैं। यह विक्रम को चंद्रमा की सतह पर आसानी से उतरने में सक्षम बनाएंगे। इसके साथ-साथ अन्य सेंसर का भी टेस्ट किया जाएगा। इसके बाद विक्रम 100 किमी x 30 किमी की कक्षा में जाने के लिए अपना रास्ता बनाएगा। ISRO का कहना है कि लैंडर विक्रम 23 अगस्त को चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर 7 दिन तक लैंडर विक्रम चंद्रमा के आस-पास क्या करेगा? आइए समझते हैं।
क्यों विक्रम की स्पीड कम की जाएगी?
इसरो का कहना है कि अब लैंडर विक्रम को डिबूस्ट किया जाएगा। डिबूस्ट से आशय उस प्रक्रिया से हैं जिसमें लैंडर की स्पीड को कम किया जाएगा। इसरो ने ट्वीट में बताया कि लैंडर मॉड्यूल को प्रोपल्शन मॉड्यूल से सफलतापूर्वक अलग कर दिया गया है। 18 अगस्त, 2023 को डिबूस्टिंग की योजना बनाई गई है। यह प्रोसेस शाम करीब 4 बजे शुरू किया जाएगा। इस प्रक्रिया का उद्देश्य लैंडर को एक ऐसी कक्षा में स्थापित किया जा सके जहां पेरिल्यून (चंद्रमा से निकटतम बिंदु) 30 किलोमीटर और अपोल्यून (चंद्रमा से सबसे दूर का बिंदु) 100 किलोमीटर है। इसरो ने कहा कि यहीं से 23 अगस्त को यान की चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र पर सॉफ्ट लैंडिंग का प्रयास किया जाएगा।
लैंडिंग स्पीड का गणित भी समझ लीजिए
लैंडिंग का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा लैंडर की स्पीड को 30 किलोमीटर की ऊंचाई से अंतिम लैंडिंग तक लाने की प्रक्रिया है। ऐसे में लैंडर को हॉरिजॉन्टल से वर्टिकल दिशा में ट्रांसफर किया जाएगा। यह क्षमता वह प्रक्रिया है जहां इसरो को अपनी काबिलियत दिखानी है। इसरो के अध्यक्ष सोमनाथ के अनुसार लैंडिंग प्रक्रिया की शुरुआत में वेग लगभग 1.68 किलोमीटर प्रति सेकंड है, लेकिन यह गति चंद्रमा की सतह के हॉरिजॉन्टल है। यहां चंद्रयान-3 लगभग 90 डिग्री झुका हुआ है। इसे वर्टिकल करना होगा। हॉरिजोन्टल से वर्टिकल दिशा में बदलने की यह पूरी प्रक्रिया गणितीय रूप से एक बहुत ही दिलचस्प गणना है। इसरो ने इसे कई बार इस प्रक्रिया को दोहराया है। यहीं पर हमें पिछली बार (चंद्रयान-2) समस्या हुई थी।
लैंडिंग से पहले अपने लिए जगह तलाशेगा विक्रम
लैंडर विक्रम चंद्रमा पर लैंडिग करने से पहले अपने लिए सुरक्षित जगह तलाशेगा। इसरो के अनुसार विक्रम की लैंडिंग चंद्रमा के साउथ पोल एरिया पर की जाएगी। लैंडर चंद्रमा की सतह से लगभग 100 किमी की ऊंचाई से चंद्रमा पर उतरेगा। सॉफ्ट लैंडिंग एक पेचीदा मुद्दा है। लैंडर विक्रम अपने लैंडिंग के लिए सेफ और रिस्क फ्री क्षेत्र खोजेगा। इसके लिए लैंडिंग से पहले साइट की इमेजिंग की जाएगी। लैंडिंग के बाद छह पहियों वाला रोवर बाहर निकलेगा। यह वहां एक चंद्र दिवस की अवधि के लिए चंद्रमा की सतह पर प्रयोग करेगा। चंद्रमा पर एक दिन धरती के 14 दिनों के बराबर है।
साभार : नवभारत टाइम्स
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