नई दिल्ली. इसरो के चंद्रयान-3 उपग्रह ने बुधवार शाम विक्रम लैंडर को चंद्रमा के दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र में उतारकर इतिहास रचा है। इसके साथ ही यह कारनामा करने वाला भारत पहला देश बना है। हालांकि, चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग करने के मामले में भारत, रूस, अमेरिका और चीन के बाद चौथे नंबर पर है। चांद की सतह पर उतरने के बाद विक्रम लैंडर से रोवर ‘प्रज्ञान’ को बाहर निकाला गया। अंतरिक्ष एजेंसी ने शनिवार को एक और नया वीडियो साझा किया है, जिसमें प्रज्ञान दक्षिण ध्रुव पर रहस्यों की खोज में शिव शक्ति बिंदु के चारों और घूमता हुआ नजर आ रहा है।
चांद की रोशनी में 14 दिन तक शोध करेगा रोवर प्रज्ञान
विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर दोनों ही सौर उर्जा से संचालित हैं। इन्हें चांद की रोशनी वाली जगह पर ठीक से पहुंचाया गया है। 14 दिन तक रोशनी रहेगी तो प्रज्ञान और विक्रम काम कर सकेंगे। लैंडर विक्रम का नाम भारत के अंतरिक्ष तकनीक के जनक विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है।
विक्रम लैंडर की रफ्तार को कम करना था चुनौती
चंद्रमा की सतह पर उतरने से पहले वैज्ञानिकों के लिए विक्रम लैंडर की रफ्तार को कम करना सबसे बड़ी चुनौती थी। इसके लिए विक्रम लैंडर को 125×5 किलोमीटर के ऑर्बिट में रखा गया था। इसके बाद इसे डिऑर्बिट किया गया था। जब इसे चांद की सतह की ओर भेजा गया था तब उसकी गति छह हजार किलोमीटर प्रति घंटे से ज्यादा की थी। इसके कुछ ही मिनटों के बाद रफ्तार को बेहद कम कर दी गई। इसे लैंड कराने के लिए चार इंजनों का सहारा लिया गया था लेकिन दो इंजनों की मदद से विक्रम को लैंड कराया गया।
चंद्रमा की सतह से विक्रम को तस्वीरें भेज रहा प्रज्ञान
विक्रम लैंडर से एक रैंप खुलने के बाद से प्रज्ञान चांद की जमीन पर चल रहा है। यह लगातार विक्रम लैंडर को चांद की सतह से तस्वीरें भेज रहा है। प्रज्ञान रोवर और विक्रम लैंडर एक दूसरे बातचीत कर सकते हैं। लेकिन प्रज्ञान सीधे इसरो के बेंगलुरु स्थित कमांड सेंटर से बातचीत नहीं कर सकता है। लेकिन विक्रम लैंडर कमांड सेंटर और प्रज्ञान दोनों से बातचीत कर सकता है।
14 जुलाई को लॉन्च किया गया था चंद्रयान-3
चंद्रयान-3 को 14 जुलाई 2023 को लॉन्च किया गया था। इसे एलवीएम3-एम4 रॉकेट से आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से छोड़ा गया था। इसकी कुल लागत 615 करोड़ रुपये है। इसरो इससे पहले भी चंद्रमा पर उतरने का प्रयास कर चुका है। इसके लिए उसने चंद्रयान-1 और चंद्रयान-2 को चंद्रमा की ओर भेजा था। चार साल पहले इसरो चंद्रयान-2 को चांद की सतह पर उतारने का प्रयास किया था, लेकिन इसके लैंड होने से कुछ समय पहले ही इसका बेंगलुरु स्थित इसरो के कंट्रोल सेंटर संपर्क टूट गया था।
साभार : अमर उजाला
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